चाय वाले गांव में मोदी

By: Oct 10th, 2017 12:02 am

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार अपने गांव में लौटे नरेंद्र मोदी…उसी गांव में पले-बढ़े और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे…जिस स्कूल में मोदी पढ़े थे, उस स्कूल के बच्चे भी प्रधानमंत्री से खुद को जोड़ कर एक सपना पालने लगे हैं-मोदी की तरह बड़ा और महान बनने का ! प्रधानमंत्री ने स्कूल के गेट पर घुटनों के बल बैठ कर माटी को माथा टेका और मिट्टी को तिलक के तौर पर माथे लगाया…मिट्टी के प्रति प्रतिबद्धता…गांव में आज भी वह रेलवे स्टेशन है और चाय का खोखा भी, जिस पर मोदी के पिता चाय बनाया करते थे और बालक मोदी यात्रियों को चाय पिलाया करते थे। उस खोखे को यथावत सहेज कर रखा गया है…एक लोकतांत्रिक शिलालेख कि गरीब का बच्चा भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है! अपनों के बीच लौटने का गदगद और भावुक एहसास! स्कूली बच्चों ने एक चाय वाले ग्रामीण के प्रधानमंत्री बनने तक के सफरनामे को चित्रों में समेट कर पेश किया। भावुक लम्हे! वडनगर में आम आदमी, बूढ़ा, युवा, महिला ने हाथ मिला कर, पगड़ी पहना कर, स्मृति चिन्ह भेंट कर, पांव छू कर या गले मिल कर, आंखों में पानी चमका कर या लड़खड़ाती जुबान में मोदी के प्रति अगाध प्यार, स्नेह, आदर बयां किए। गांव तक पहुंचने का छह किलोमीटर का फासला रोड शो के जरिए कवर किया, ताकि अधिक से अधिक लोगों से जुड़ाव संभव हो सके, हाथ जोड़ कर अभिवादन किया जा सके और साबित किया जा सके कि अंततः आपका प्रतिनिधि आपके ही बीच में है। संपादकीय टिप्पणी लिखने का कारण सिर्फ यही नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने पैतृक गांव आए थे। कारण एक प्रधानमंत्री का अपनी जनता से अभूतपूर्व जुड़ाव है, भावनात्मक तादात्म्य है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री भी भावुक होते रहे। सवाल यह है कि बीते 30-35 सालों में किस प्रधानमंत्री के प्रति इतना भावुक और स्नेहिल जन सैलाब उमड़ता रहा? किस प्रधानमंत्री ने वाहन के एक डंडे के सहारे खड़े रहकर लंबे-लंबे रोड़ शो किए? किस प्रधानमंत्री ने माथे पर माटी का तिलक रचाया? कौन प्रधानमंत्री इतना सांस्कृतिक, सामाजिक और समतावादी लगा? बेशक गुजरात में भी चुनाव का माहौल है। आने वाले दो माह के दौरान वहां विधानसभा चुनाव होने हैं। संभवतः इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी भी ताबड़तोड़ उद्घाटन और शिलान्यास कर रहे होंगे! 16 अक्तूबर को भी प्रधानमंत्री गुजरात प्रवास पर होंगे। लेकिन प्रधानमंत्री ने ‘इंद्रधनुष’ टीकाकरण कार्यक्रम का जिक्र किया। उसे जन आंदोलन करार दिया। प्रधानमंत्री ने देश भर में स्वच्छता अभियान की सफलता का उल्लेख किया। खुले में शौच मुक्त होने पर गुजरात को बधाई दी। माता मृत्यु दर की बात की और कहा कि अब अस्पतालों में हर माह की नौ तारीख को गर्भवती महिला का मुफ्त इलाज किया जा रहा है। दवाएं सस्ती मिल रही हैं। क्या ऐसे मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते और वोट हासिल होते हैं? बेशक प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि अर्थव्यस्था किसानों और गरीबों के कुछ मुद्दों, रोजगार के सवालों को उन्हें ही संबोधित करना है और देश को स्पष्टीकरण देना है, लेकिन क्या ये मुद्दे किसी राजनेता को अपने पैतृक गांव लौटने से रोक सकते हैं? दरअसल बुनियादी मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का है। एक पुराना तथ्य गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी गुजरात के थे, लेकिन उन्हें न तो ऐसा स्वागत मिला और न ही उन्होंने गुजरात के लिए कुछ खास किया। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि विकास आज भी उनका पहला सरोकार है। पिछले 10 सालों में ऐसी सरकार रही है, जो विकास से नफरत करती थी और आज विकास को ‘पागल’ करार दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बेशक कुछ चोर-लुटेरे उनके खिलाफ षड्यंत्र करते रहें, आलोचनाओं का जहर पिलाते रहें, लेकिन बाबा भोलेनाथ ने उन्हें ‘जहर’ पीना सिखा दिया है। बहरहाल देश का राजनीतिक परिदृश्य दिलचस्प होता जा रहा है। अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तीन दिनों के गुजरात प्रवास पर जा रहे हैं। तय है कि वह मोदी विरोध के मुद्दे ही उछालेंगे। देखना यह है कि अंततः जनता किस पक्ष में जाती है। वही लोकतंत्र का अंतिम यथार्थ है।


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