चौथी जलेब शान से निकले नरसिंह

By: Oct 5th, 2017 12:10 am

ढोल-नगाड़ों की थाप पर ढालपुर के चारों ओर घूमते हुए राजा की चानणी पहुंचे आनी के आराध्य

भगवान रघुनाथ

newsकुल्लू — देवसमागम यानी अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में चलने वाली नरसिंह भगवान की जलेब सांस्कृतिक धरोहर है। कुल्लू दशहरे के साथ राजा की जलेब (राजा की शोभा यात्रा) का विशेष महत्त्व है। रथयात्रा के दूसरे दिन से ही रघुनाथ के अस्थायी कैंप के साथ राजा की चानणी से चलकर यह जलेब ढालपुर मैदान के चारों ओर से होती हुई पुनः राजा की चानणी के पास समाप्त हो गई। जलेब के चौथे दिन जिला कुल्लू के दूरदराज क्षेत्र आनी के देवी-देवताओं ने भाग लिया और बाह्य सराज के लोग यात्रा में खूब नाचे।

स्वर्गलोक में बदली अठारह करडू की सौह

कुल्लू  — अंतराष्ट्ररीय दशहरा उत्सव के दौरान अठारह करडू की सौह में सैकड़ों देवी-देवता विराजमान हैं, पर बिजली महादेव के अस्थायी शिविर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। बिजली महादेव के अस्थायी शिविर में हर रोज घाटी से भक्त यहां दर्शन को पहुंच रहे हैं, इतना ही नहीं देश-विदेश के सैलानी भी बिजली महादेव के दर्शन पाकर अपनी मनोकामना पूर्ण कर रहे हैं। विदेशी भक्त तो अपने कैमरों में भगवान बिजली महादेव के रथ की सुंदर छवि को कैद कर रहे हैं। दशहरा उत्सव के पांचवें दिन ढालपुर में देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में सुबह से भक्त अपने-अपने देवी-देवताओं के दर माथा टेकते रहे और सुख-शांति का आशीर्वाद लेते रहे।

असाध्य रोगों को भगाती हैं देवधुनें

दशहरा उत्सव में प्रतिदिन ढालपुर में सैकड़ों देव-देवताओं के अस्थायी शिविरों में दर्जनों वांद्य यंत्रों की धुन बजने से पूरा ढालपुर मैदान पुरातन धुनों से सराबोर हो रहा है। पुरातन वाद्य यंत्रों से जो धुन निकलती है, उस धुन से लोगों के कई रोग बिना इलाज के ही दूर हो जाते हैं। पंडित विद्यासागर ने इस विषय पर बताया कि पुरातन धुन के बजने से दैवीय शक्तियां इकट्ठी हो जाती हैं, जिससे असाध्य रोग से कोई भी ग्रसित हो तो ये धुनें कान में पड़ते ही उन रोगों से निजात मिल जाती है। यह भारतीय संगीत अनुसंधान के विशेषज्ञ द्वारा भी शोध किया गया है कि यदि कोई असाध्य रोग से ग्रसित हो तो उसे एक अंधेरे और एकांत कमरे में बंद करके इन वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियों को बजाया जाए तो कई रोगों की छुटकारा मिल जाता है।

इन देवी-देवताओं ने लिया जलेब में भाग

जलेब यात्रा में आनी के कोठी के चोतरू नाग, ठहारवी के टकरासी नाग, कोट के कोट भुझारी, कुंइश के ब्यासऋषि और देहुरी के देवता खुड़ीजल ने भाग लिया। इस जलेब में खास यह देखने को मिला कि जहां राजा की पालकी को चार कंधों पर उठाकर परिक्रमा की गई। वहीं, बाह्य सराज के चारों देवता के रथों को भी चार कंधों में उठाया गया था। यह जलेब काफी आकर्षण का केंद्र रही।

यह है भगवान नरदेव की जलेब का इतिहास

जनश्रुति के अनुसार राजा की रियासत के समय सुरक्षा की दृष्टि से यह जलेब निकाली जाती थी। देवताओं के जलेब में जाने का अभिप्रायः आसुरी शक्तियों का आक्रमण दशहरा में सम्मिलित देव समाज पर न हो। दशहरा पर्व में पुरातन समय में कुल्लू के राजाओं की जो भूमिका थी वह आज भी उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति- रिवाजों को परंपरागत ढंग से निभा रहे हैं।


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