ज्वालामुखी में गिरी थी सती की जिह्वा

By: Oct 4th, 2017 12:05 am

ज्वालामुखी मंदिर का स्वरूप वैसे तो आधुनिक है, परंतु इस पीठ का प्राचीन होना जलंधर-महात्म्य में वर्णित है। पौराणिक कथा के अनुसार सती की जिह्वा यहीं गिरी थी। इसलिए इसे इक्कावन महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में देवी की कोई प्राचीन मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है…     

हिमाचल में प्रचलित धर्म

जबकि  कांगड़ा में शक्ति की पूजा अधिक प्रचलित मालूम पड़ती है। यहां प्राचीन काल से ही शक्ति पीठों की स्थापना का सिलसिला चलता आ रहा है। इस समय भी यहां पर प्रतिष्ठित शक्ति पीठों की पराकाष्ठा देखते ही बनती है। हरिपुर में देशमुखी देवी की प्रतिमा सातवीं शताब्दी की व कांगड़ा के किले में निर्मित अंबिका देवी की मूर्ति  गुप्तोत्तर काल की प्रतीत होती है। कोट कांगड़ा के एक भाग भवन नामक स्थान में भी एक मंदिर के होने की सूचनाएं मिलती हैं। इसे भवानी मंदिर कहा जाता था, परंतु एक अभिलेख में इसे ज्वालामुखी देवी के नाम से प्रतिष्ठित किया गया है। कहते हैं कि इस मंदिर में काशी से आए विद्वान पंडित निवास करते थे और यज्ञविधियों का अध्ययन करते थे। कांगड़ा के कटोचवंशीय नरेशों का इसे संरक्षण मिलता रहा। ऐसी भी किंबदंती है कि यहां पर अश्वमेध यज्ञ किया गया था और इस मंदिर में देवी की मूर्ति की स्थापना हुई थी। ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में यह शाक्तपीठ जगत प्रसिद्ध था। यहां लोग पूरे भारतवर्ष में हजारों की संख्या में आते रहे हैं। देवी के दर्शनों को आने वाले श्रद्धालु देवी के लिए सोने तथा हर प्रकार की अन्य कीमती वस्तुएं प्रदान करते रहे। जिससे यह मंदिर अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध हो गया। अतएव 1009 ई. में महमूद गजनवी ने इस मंदिर को लूटा और इस मंदिर को ध्वस्त कर यहां पर एक मस्जिद भी बनाई। कालांतर में इस मंदिर को पुनः बनाया गया, परंतु इसका सही रूप पुनः स्थापित नहीं किया जा सका। यह मंदिर मध्यकाल में हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बना रहा, जिससे मंदिर की मर्यादा सदैव बनी रही। इस मंदिर को अनेक बार लूटा गया। कश्मीर नरेश शहाबुद्दीन ने (1163-86ई.) जब कांगड़ा पर आक्रमण किया, तो इस मंदिर को भी लूटा। इसी तरह फिरोजशाह तुगलक ने 1365 ईस्वी में इसे लूटा, शेरशाह सूरी के सेना नायक श्त्वासखान ने 1540 ईस्वी में इस पर आक्रमण किया। फिर भी यह मंदिर मिटता और पुनः स्थापित होकर विकास के पथ पर चलता रहा। महाराजा रणजीत सिंह की देवी में गहरी आस्था थी। अतः उस समय भी इस मंदिर को संरक्षण मिला, जिससे इसका विकास चलता रहा। ज्वालामुखी मंदिर इस क्षेत्र का दूसरा प्रमुख शक्तिपीठ है, जो कांगड़ा से 40 किलोमीटर दूर ब्यास घाटी में स्थित है। मंदिर का स्वरूप वैसे तो आधुनिक है, परंतु इस पीठ का प्राचीन होना जलंधर-महात्म्य में वर्णित है। पौराणिक कथा के अनुसार सती की जिह्वा यहीं गिरी थी। इसलिए इसे इक्कावन महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में देवी की कोई प्राचीन मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है।


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