डगशाई जेल में हैं 54 कैदी कोठरियां

By: Oct 4th, 2017 12:05 am

1849 ई. में 72, 873 रुपए, जो उन दिनों एक बहुत बड़ी राशि समझी जाती थी, से निर्मित डगशाई जेल में 54 कैदी कोठरियां हैं। इनमें वे एकांत कोठरियां भी शामिल हैं, जो प्रकाश की किरण से भी विहीन थीं और जहां कैदी मुश्किल से खड़ा भी नहीं हो सकता था…

डगशाई जेल

167 वर्ष पुरानी छावनी की शिल्पकला और ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जीवित करने के दृष्टिगत, सेना ने जेल की ऐतिहासिक संगतता को दर्शाने के लिए एक संग्रहालय की स्थापना की है, जहां आइरिश विद्रोह के नेताओं को कैद में रखा गया था। यह संग्रहालय 13 अक्तूबर, 2011 ई. को 9 इन्फेंटरी डिवीजन के जनरल आफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एमके गैडोक ने ब्रिगेडियर पी.एन. अनंतनारायणन, कमांडर 95 इन्फेंटरी ब्रिगेड, असैनिक प्रतिष्ठित जन, स्कूलों के बच्चों और स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में लोगों को समर्पित किया। 1849 ई. में 72, 873 रुपए, जो उन दिनों एक बहुत बड़ी राशि समझी जाती थी, से निर्मित इस जेल में 54 कैदी कोठरियां हैं। इनमें वे एकांत कोठरियां भी शामिल हैं, जो प्रकाश की किरण से भी विहीन थीं और जहां कैदी मुश्किल से खड़ा भी नहीं हो सकता था, ताकि उसे तंग करने के लिए हर प्रकार के आराम से वंचित किया जाए। शिल्पकारों की चतुराई इस तथ्य से नजर आती है कि 1/2 फुट के रोशनदान द्वारा हवा का आगमन होता था और इस खिड़की पर बहुत अधिक अवरोध होता था। जमींदोज छेद थे, जो पाइपलाइन के द्वारा हवा खींचते थे और यह पाइपलाइन बाहर की दीवार में जा कर खुलती थी। यह सुनिश्चित करता है कि कैदी को जेल की कोठड़ी से छूटने के लिए कोई रास्ता था।

डाडासीबा

यह जिला कांगड़ा में स्थित है। यह पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की निवास स्थली थी। सीबा अब पौंग डैम में जलमग्न हो गया है। प्राचीन काल में डाडा को ‘गंधपुर का घटा’ नाम से जाना जाता था। अब गंधपुर डाडासीबा से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। डाडा गांव की स्थापना डाडू राणा द्वारा की गई बताई जाती है और बडवोर गांव बदन सिंह राणा द्वारा(दोनों भाई बलोचिस्तान से आए थे) उन्होंने ‘टांकरी’ और ‘लहडे़’ नामक लिपियों का परिचय भी कराया। ये लिपियां बलोचिस्तान के ‘टाक’ और ‘लैंडीकटोल’ प्रदेशों से संबंध रखती हैं। ये प्रवासी बलोचिस्तान से सिब्बी गांव में आकर बसे और इन्हें ‘सिवैये’ और बाद में ‘सिपहिए’ कहा गया।

दाड़चा

यह लाहुल घाटी में है। यहां पहाड़ों पर चढ़ाई करने वाले सिंगोला तथा बारालाचा होते हुए फर्टसेलट से पद्म तक जाते हैं। यहां से आगे कोई वृक्ष नहीं है। –


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