डा. लैहरू के संगीत की लहर बन गई सैलाब

By: Oct 11th, 2017 12:08 am

newsआज भी डा. सांख्यान पहाड़ी गायन के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। डा. लैहरू राम सांख्यान रेडियो व दूरदर्शन शिमला, जालंधर, जम्मू, दिल्ली, ग्वालियर, मध्य प्रदेश, रोहतक आदि स्टेशनों से लोक संगीत की प्रस्तुतियां देते आ रहे हैं। यही नहीं, हिमाचल प्रदेश में आयोजित होने वाले विभिन्न मेलों, त्योहारों, हिमाचल कला, भाषा एवं संस्कृति अकादमी, भाषा एवं संस्कृति विभाग व कई राज्य स्तरीय कार्यक्रमों व कला मंचों के माध्यम से प्रस्तुतियां दे रहे हैं… 

दूरदर्शन, आकाशवाणी सहित प्रदेश व देश के विभिन्न मंचों से अपनी लोक संगीत की बेहतरीन विधा को अपनी सुरमयी आवाज से प्रदर्शित करने वाले डा. लैहरू राम सांख्यान किसी परिचय के मोहताज नही हैं। डा. सांख्यान बिलासपुर की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हमेशा से हिमाचली व विशेष रूप से बिलासपुरी लोक संगीत को नई पहचान देने में विशेष भूमिका निभाई है। विभिन्न प्रतिभाओं के धनी डा. सांख्यान की इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए ही उन्हें भारत सरकार द्वारा केंद्रीय फिल्म प्रमाणन सेंसर बोर्ड का सदस्य भी नियुक्त किया गया है। डा. सांख्यान जितने बेहतरीन लोक गायक कलाकार हैं उतने ही शानदार लेखक भी हैं। इनकी इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें कई बार प्रदेश के विभिन्न मंचों पर कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।

14 मार्च, 1954 को घुमारवीं उपमंडल के तहत गैहरा गांव में स्वर्गीय लक्खू राम व स्व. बोहरी देवी के घर जन्मे डा. लैहरू राम सांख्यान चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। घर में शुरू से ही संगीत का माहौल रहा। माता-पिता से संगीत की धुनों व पहाड़ी गीतों को सुनते और उनसे ही संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करते-करते उन्होंने पढ़ाई शुरू की। राजकीय हाई स्कूल चलैहली से दसवीं की शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने डीएवी जालंधर से प्री- मेडिकल और राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय कुरुक्षेत्र की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से जीएएसएम की डिग्री प्राप्त की, लेकिन यहां भी संगीत के प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ और कुरुक्षेत्र से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहीं से उनकी गायकी का ऐसा सफर शुरू हुआ, जो आज तक निर्बाध जारी है। आज भी डा. सांख्यान पहाड़ी गायन के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं।

डा. लैहरू राम सांख्यान रेडियो व दूरदर्शन शिमला, जालंधर, जम्मू, दिल्ली, ग्वालियर, मध्य प्रदेश, रोहतक आदि स्टेशनों से लोक संगीत की प्रस्तुतियां देते आ रहे हैं। यही नहीं, हिमाचल प्रदेश में आयोजित होने वाले विभिन्न मेलों, त्योहारों, हिमाचल कला, भाषा एवं संस्कृतिक अकादमी, भाषा एवं संस्कृति विभाग व कई राज्य स्तरीय कार्यक्रमों व कला मंचों के माध्यम से प्रस्तुतियां दे रहे हैं।  इनके  द्वारा गाए गए गीतों की कई कैसेट व वीडियो सीडियों के साथ प्रसिद्ध म्यूजिक कंपनी टी- सीरिज से भी उनके द्वारा गाए गीतों की कई कैसेट व सीडियां रिलीज हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखे व गाए गीतों में प्रमुख रूप से भला बाकिंए छोरिए, गंगी, जगे-जगे मुटेयां रोपे रेया पाणियां, इन छेल छबीली नार धारा बकरियां चरांदी व बलिए चल चलिए सहित कई गीत प्रदेश भर में धमाल मचा चुके हैं।

आकाशवाणी व दूरदर्शन से प्रसारित हो चुके करीब 300 गीत

डा. सांख्यान अभी तक आकाशवाणी से 200 और दूरदर्शन से करीब सौ से अधिक गीतों को अपनी आवाज दे चुके हैं। इनमें से अधिकतर गीत इन्होंने स्वयं लिखे और संगीतबद्ध किए हैं। इनकी अभी तक 20 कैसेट व वीडियो भी संगीत के क्षेत्र में धमाल मचा चुके हैं।

कई बार मिल चुका है बेस्ट सिंगर का अवार्ड

डा. लैहरू राम सांख्यान को गुरु नानक देव डीएवी यूनिवर्सिटी जालंधर से बेस्ट गायक, अंतर आयुर्वेदिक सांस्कृतिक समारोह पटियाला में बेस्ट लोक गायक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बेस्ट कव्वाल घोषित किया जा चुका है। वहीं उत्तरी भारत अंतर विश्वविद्यालय रोहतक में सर्वश्रेष्ठ लोक गायक और अभिनय में भी उन्हें बेस्ट एक्टर के सम्मान से नवाजा जा चुका है।

सरकारी नौकरी में जारी रहा संगीत का सफर

डा. सांख्यान ने सरकारी नौकरी के दौरान भी अपनी गायकी व लेखनी को जारी रखा। आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी के रूप में प्रदेश भर में सेवाएं देने के बाद वह वर्ष 2015 में सेवानिवृत्त हो गए। इन दिनों वह डैहर में अपना निजी क्लीनिक चला रहे हैं।

– कुलभूषण चब्बा, बिलासपुर

जब रू-ब-रू हुए…

हिमाचली संगीत में मिलावट की गुंजाइश नहीं…

संगीत का पहाड़ से रिश्ता महसूस करना हो तो?

पहाड़ी संगीत सुनकर पहाड़ से रिश्ते का स्वतः ही आभास हो जाता है। पहाड़ी संगीत में इतनी मधुरता है कि कोई भी संगीत प्रेमी इसको सुनते हुए ही अपने आप को पहाड़ी वादियों का आनंद लेता हुआ महसूस कर सकता है।

लोक संगीत के माध्यम से हिमाचल किस तरह निरूपित हुआ, क्या आप संतुष्ट हैं?

हिमाचल प्रदेश विभिन्न लोक संगीत के मनकों से पिरोई एक माला है। जिसमें विभिन्न रिवाज, हर क्षेत्र के अपने-अपने लोकगीत व अपनी-अपनी लोक गाथाएं हैं। हर क्षेत्र का लोक संगीत अपनी विशेषता व मधुरता संजोए हुए है। मैं इससे संतुष्ट हूं।

लोक संगीत के वर्तमान स्वरूप में हो रही मिलावट को कैसे देखते हैं?

मैं मिलावट के पक्ष में नहीं हूं। लोक संगीत यथावत अपनी पहचान में रहे। यह अपनी धुन, लय व शब्दों में ही रहना चाहिए। अगर कोई अलग से लिखता व गाता है और लोग भी उसे पसंद करते हैं, तो यह अलग बात है।

कलाकारों के हिमाचली परिदृश्य में आपके पसंदीदा गायक और लेखक?

हिमाचल में बहुत अच्छे लोक गायक रहे हैं, जिनमें कांगड़ी लोक गायक प्रताप चंद शर्मा, स्वर्गीय रोशनी जी और हेतराम तनवर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।

क्या लोक संगीत में हिमाचली लेखक की भागीदारी कम हो रही है?

हिमाचल में प्राचीन लोक संगीत व पारंपरिक लोक गीतों की भरमार है, जिसमें बड़ी मिठास है। यह एक कारण हो सकता है कि हिमाचली लेखकों की भागीदारी कम हो रही है।

कलाकार के प्रति सरकार और समाज के नजरिए को कैसे देखते हैं ?

सच कहूं तो लोक गायकों को अभी तक कोई खास प्रोत्साहन नहीं मिला है। हालांकि समाज से काफी प्यार और प्रोत्साहन मिलता रहा है, लेकिन सरकार से अभी तक नहीं।  हिमाचल प्रदेश में कितने ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों और समारोहों का आयोजन होता है। कलाकार भी खूब मेहनत करता है, लेकिन उसे अपनी मेहनत के अनुरूप आर्थिक मदद नहीं मिल पाती है।

फिल्म प्रमाणन सेंसर बोर्ड तक आप अपनी उपलब्धियों को कैसे देखते हैं?

मैं एक गायक, लेखक व अदाकार हूं। विद्यार्थी जीवन से इस लाइन में काफी कुछ सीखने का मौका मिला है। जितनी काबिलीयत है, उसी हिसाब से कुछ कर पाता हूं। समाज में फैले भ्रष्टाचार, अश्लीलता, देशभक्ति की भावना का न होना, कर्त्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी का न होना तथा गरीबी आदि समस्याओं पर मेरा विशेष ध्यान रहता है।

भारतीय सिनेमा को कितना समझ पाए और बोर्ड औचित्यहीन क्यों समझा जाने लगा है?

भारतीय सिनेमा एक बहुत बड़ी इंडस्ट्री है। इसे पूरी तरह से समझना आसान नही है। जिस तरह से वक्त बदल रहा है, उसी तरह से दर्शकों की डिमांड भी। हालांकि सब कुछ औचित्यहीन नहीं है। कभी कुछ ऐसा आ जाता है, जो काबिले एतराज होता है।

हिमाचली संगीत से निकले कोई तीन बेहतरीन गीत?

मेरी साहिबा, हुस्न पहाड़ों का और बांठणें चली बोलो।

गीत-संगीत के प्रोत्साहन हेतु हिमाचल को क्या कदम उठाने चाहिए?

हिमाचल संगीत के प्रोत्साहन के लिए इसके उत्थान के लिए लगे कलाकारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। रेडियो व दूरदर्शन में हिमाचली समझने वाले होने चाहिए। सही गीत की पहचान हो, अर्थ का अनर्थ न हो। ऐसा पैरामीटर हो कि पहाड़ी संगीत व पारंपरिक धुनोें व गीतों का स्वरूप न बिगड़े।

कोई ऐसा सपना, जिसे पूरा करना चाहते हैं?

हिमाचली संगीत को संजोना, इस पर कार्य करते रहना, लोगों को हिमाचली संगीत के प्रति जागरूक करना और अपनी धरोहर को कायम रखना मेरा सपना है।

गीत-संगीत की आपकी यात्रा का अनुभव क्या आज भी मंजिल खोज रहा है?

दुनिया आगे बढ़ रही है। अपनी पुरानी संस्कृति को बरकरार रखते हुए अगर कुछ नया इससे संबंधित हो, तो इसमें बुरा क्या है।

अगर तमाम बोलियों से हिमाचली भाषा का अस्तित्व कायम करना है?

कोशिश होती रहनी चाहिए। हम जगह-जगह की बोलियों को समझ सकें। ऐसा गीत व संगीत बने, जो सबको पसंद आए और सबकी समझ में भी आए।


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