तो आरुषि का कातिल कौन ?

By: Oct 14th, 2017 12:02 am

बेशक दूसरा पक्ष या सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में जाएं, बेशक नए सिरे से जांच कराई जाए या अंतरराष्ट्रीय फोरेंसिक एजेंसियों को भी शामिल किया जाए, लेकिन 14 साल की किशोरी आरुषि की हत्या का रहस्य खुल सकेगा, यह तय नहीं है। सीबीआई के पूर्व निदेशक एपी सिंह का कहना है कि एजेंसी ने जो जांच करनी थी, कर चुकी। अब नौ सालों के बाद क्या जांच होगी? सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए। बहरहाल एक निचली अदालत ने आरुषि के मां-बाप, डा. नूपुर और राजेश तलवार, को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर उम्र कैद की सजा सुनाई थी, तो उससे बड़ी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें ठोस सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। हाई कोर्ट का मानना था कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को उम्र कैद की सजा नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिपादित विधि संहिता के मुताबिक, यह केस संदेह का लाभ देने के लिहाज से एकदम सही है। सीबीआई की ओर से प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी में तारतम्यता भी नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि तलवार दंपति ने ही हत्या की है। हाई कोर्ट ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और निष्कर्षों में भी खामियां पाईं। पुलिस और सीबीआई की रपटों में विरोधाभास थे। जांच एजेंसियां साबित ही नहीं कर पाईं कि आरुषि की हत्या उसी के मां-बाप ने की थी। नतीजतन कत्ल के नौ साल और चार महीने के बाद भी सवाल यथावत बना है कि आखिर आरुषि को किसने मारा? घर में चार ही प्राणी थे-मां-बाप, खुद आरुषि और घरेलू नौकर हेमराज। उनमें से आरुषि और हेमराज की हत्याएं कर दी गईं। बाहर से कोई तीसरा भी आ सकता था और फिर अपना काम करके लौट भी सकता था, इस संभावना से न्यायिक पीठ ने भी इनकार नहीं किया है, लेकिन इस कोण से जांच नहीं की गई और सच सत्यापित भी नहीं हो सका। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील एवं सांसद केटीएस तुलसी का मानना है कि सीबीआई और पुलिस के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है कि हरेक मामले का सच सामने लाया जा सके। पुलिस और सीबीआई का मानना था कि आरुषि का कत्ल उसके मां-बाप ने नहीं किया, लिहाजा सीबीआई ने अदालत में क्लोजर रपट दी थी, लेकिन अदालत ने उसे खारिज कर दिया और केस आगे चला। संदेह की सुई तलवार दंपति की ओर गई और सीबीआई कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी। तलवार पति-पत्नी को नवंबर, 2013 में हत्या का दोषी करार दिया गया। राजेश और नूपुर तलवार को 1,418 दिन जेल के सीखचों के पीछे गुजारने पड़े। राजेश मानसिक तौर पर टूट और थक चुके हैं। आखिर इस बेवजह की सजा का हिसाब कौन देगा? बेशक इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद तलवार दंपति तो जेल से बाहर आ गए, लेकिन कुछ सवाल आज भी अनसुलझे और अनुत्तरित हैं। बुनियादी सवाल तो यही है कि यदि मां-बाप ने नहीं मारा, तो आरुषि की हत्या किसने की? आरुषि के कमरे में कौन गया? नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया और उसे छत पर कौन ले गया? आरुषि की हत्या पहले की गई या हेमराज की? हेमराज के कमरे से जो गिलास मिला है, उस पर दो लोगों के फ्रिंगर प्रिंट किनके हैं? हत्या के हथियार कहां हैं? आरुषि के खून से सने कपड़ों का क्या हुआ? क्या कई स्तरों पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई या पुलिस और सीबीआई ने कोताही बरती? बहरहाल यह इस सदी का सबसे पेंचदार और रहस्यमय कत्ल है। अमानवीय तो है ही, लेकिन इनसानी रिश्तों की भी व्याख्या करता है। सीबीआई ने जो कहानी गढ़ी थी, सवाल उसके नाकाम होने का नहीं है, दरअसल सवाल आरुषि और हेमराज को इनसाफ न मिलने का है। यह दोहरा हत्याकांड कई कारणों से चर्चित रहा, लेकिन ऐसा मामला साबित हुआ, जिसमें राष्ट्रीय स्तर की खुफिया और जांच एजेंसी ने देश भर में अपना भरोसा खोया है। यह शर्मनाक तथ्य है। सीबीआई कई आपराधिक मामलों में नाकाम साबित हुई है, जबकि ऐसे मामले पुलिस के स्तर पर निपट जाने चाहिएं। अब नौ सालों के बाद ऐसा लगता नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट दोबारा इस मामले में दखल देकर जांच शुरू कराएगा। तो फिर आरुषि और हेमराज को इनसाफ कैसे मिलेगा?


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