दिवाली का पर्व मुबारक !

By: Oct 20th, 2017 12:02 am

आज दीपावली है। कई धर्मों, संप्रदायों का पर्व! अमीर-गरीब का साझा पर्व! उजाले सभी को चाहिएं, लिहाजा कार्तिक की अमावस्या में भी उजालों का पर्व! आपसी स्नेह, रिश्तों, भावनाओं को जोड़ता एक पर्व! दुनिया को समरसता का पाठ पढ़ाने वाला पर्व! निराशाओं को चीर कर नई आशाओं, आह्लाद, उल्लास और जोश का संचार करने वाला पर्व! जाने-अनजाने अपने आंगन, घर और दुकान-दफ्तर की सफाई, नए रंगों की पुताई के जरिए ‘स्वच्छता’ के भाव को सार्थक करने वाला पर्व! नई सुगंधों, नए सुर-ताल और उन पर थिरकते, नाचते कदमों और गीतों का पर्व! जीवन के अमावस का पटाक्षेप कर नए शुक्ल-पक्ष के अभिनंदन की शुरुआत का पर्व! आखिर कितने विशेषण दें, कितने रूपक रचें, कितनी उपमाएं दें! बेशक दीपावली एक अनूठा, व्यापक, बहुविध और नई संचेतनाओं का ऐसा त्योहार है, जिसकी कोई तुलना ही नहीं है। हमारी ओर से दीप पर्व की असंख्य शुभकामनाएं! मुबारकें और विशेष बधाइयां…! लेकिन हमारी बात यहीं तक समाप्त नहीं होती। इस बार अयोध्या में दिवाली का विशेष आयोजन होगा। उसके जरिए भगवान राम के त्रेता कालखंड को जीवंत करने की कोशिश होगी। अयोध्या में राम की पैड़ी पर और इर्द-गिर्द 1,71,000 दीपक प्रज्वलित किए जाएंगे। आकाश से हेलीकाप्टर के जरिए राम और जानकी अयोध्या में उतरेंगे मानो पुष्पक विमान से आ रहे हों! पुष्पक विमान की प्रतिकृति दिखाई जाएगी। राम की पैड़ी पर राम, सीता, लक्ष्मण के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर अद्भुत स्वागत किया जाएगा। सवाल है कि उसका विरोध क्यों किया जाए? ऐसा करना सांप्रदायिक कैसे हो सकता है? फिर तो दिवाली मनाने का उल्लास और जुनून ही बेमानी हो जाएगा। जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को दीपावली के दिन ही ‘महानिर्वाण’ प्राप्त हुआ था। भगवान राम लंकेश रावण पर विजय प्राप्त कर, बुराई पर अच्छाई की जीत, दानवत्व पर देवत्व की जीत के बाद, अयोध्या अपने घर लौटे थे। यह एक प्राचीन, परंपरागत और ऐतिहासिक घटना है। इसका विरोध क्यों किया जाए? दिवाली के दिन और उसी के संदर्भ में सांप्रदायिक विद्वेष उभरने लगता है, तो दिवाली के भाव-रंग फीके पड़ने लगते हैं। हमें सांप्रदायिक भावों और सत्यों पर तटस्थ और ईमानदारी के साथ सोचना चाहिए, तभी दीपावली सार्थक मनेगी। इसी तरह कई प्रकार के लैंगिक, जातीय, रीति-रिवाज, नस्ली, बलात्कार, भ्रूण हत्या, कुपोषण, सामाजिक-शारीरिक-मानसिक शोषण के अमावस आज भी हमारे बीच बरकरार हैं, तो फिर नैसर्गिक उजाले कैसे होंगे? ये भी प्रतीकात्मक रावण ही हैं। रावण व्यक्ति की बात नहीं कर रहे हैं। दुर्गुणों की प्रतिमूर्ति रावण की चर्चा हो रही है। इन बुराइयों और दुर्भावों से निजात पाएंगे, तो दिवाली मनाने की खुशी और भी बढ़ेगी। दीपावली अर्थव्यवस्था का पर्व भी है। औसत व्यक्ति और परिवार कई दिनों पूर्व ही घर को साफ करने, सजाने की प्रक्रिया में जुट जाते हैं। मां अपने हाथों से कुछ मिठाइयां, बूरे के लड्डू, गुझिया, मट्ठियां आदि बनाती थीं। इनमें बाजार भी शामिल होता था, क्योंकि अतिरिक्त खरीददारी करनी पड़ती थी। घरों के साथ-साथ बाजार भी सजते हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर सजाए जाते हैं मानो कोई दैवीय समारोह होना है। उत्सव की खुशियों का बाजार में विस्तार जितना दिवाली पर देखने को मिलता है, वैसा किसी और पर्व पर नहीं दिखता। बाजार में इतनी भीड़ किसी अन्य त्योहार पर नहीं होती। कई कारोबारी तो साल भर का व्यापार तक करने में कामयाब होते हैं, लिहाजा दिवाली बाजार और उसके जरिए अर्थव्यवस्था का त्योहार भी है। बेशक जीएसटी और नोटबंदी के कारण दिल्ली के बड़े, राष्ट्रीय बाजार इस बार कुछ उजाड़ से रहे हैं, लेकिन वे निराश नहीं हैं। ऐसी निराशा को तोड़ने का पर्व है-दीपावली। खूब मनाओ, दोस्तों के घर जाओ, गले लगाओ, मिठाई खिलाओ, खाओ। जो लोग दरिद्र हैं, एक दीया भी मुश्किल से जला पाएंगे, उनमें भी मिष्ठान्न बांटो, उनमें भी दरिद्रता का भाव आज के दिन नहीं रहना चाहिए। दीपावली को भावार्थ में अपने जीवन में उतारो, भौतिकवाद और दुरार्ग्रहों से दिवाली के सही मायने मद्धिम पड़ जाते हैं।


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