दुनिया के लिए सिददर्द बना उत्तर कोरिया

By: Oct 17th, 2017 12:02 am

वाशिंगटन— पूरी दुनिया उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों को लेकर चिंतित है। बताया जा रहा है कि बहुत जल्द पूरा अमरीका उसकी जद में होगा, पर खतरा यहीं तक सीमित नहीं है। प्योंगयांग ने बड़े ही गोपनीय तरीके से एक साइबर प्रोग्राम तैयार कर लिया है जो लाखों डालर चुरा रहा है। इससे दुनिया के कई देशों में उथल-पुथल की स्थिति है। पिछले साल उत्तर कोरिया के हैकर्ज ने न्यूयार्क फेडरल रिजर्व से एक अरब डालर चुराने को कोशिश की थी। अच्छी बात यह थी कि हैकर्ज की एक गलती ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया। बांग्लादेश सेंट्रल बैंक के एक अकाउंट से वे डिजिटल तरीके से चोरी करने की कोशिश कर रहे थे, बैंकर्ज को विद्ड्रॉल रिक्वेस्ट पर शक हुआ क्योंकि फाउंडेशन की स्पेलिंग गलत लिखी गई थी। बताया जा रहा है कि किम जोंग-उन की टीम ने 81 मिलियन डालर की चोरी कर ली थी। पिछले मई में उत्तर कोरिया का ओर से बड़ा साइबर अटैक हुआ था। उस समय 22 साल के एक ब्रिटिश हैकर ने इस अटैक को विफल कर दिया था। हैकर्ज ज्यादा रकम तो नहीं चुरा पाए, लेकिन दुनिया के कई देश इससे प्रभावित हुए थे। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस भी कुछ समय के लिए ठप हो गई थी। अमरीका और ब्रिटेन के सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि उत्तर कोरिया की 6,000 हैकर्ज की टीम काम कर रही है और लगातार उनकी स्थिति मजबूत होती जा रही है। परमाणु परीक्षणों को लेकर तो उत्तर कोरिया पर कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए हैं पर उसके साइबर अटैक को रोकने के लिए कोई उपाय या दंड नहीं दिया गया है। अधिकारियों का कहना है कि वास्तविक हमले के लिए अपनी हैकिंग क्षमताओं को उत्तर कोरिया बढ़ा रहा है।

हैकिंग बना एक बड़ा हथियार 

पश्चिम के विश्लेषक नॉर्थ कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के आगे उसकी साइबर ताकत को नजरअंदाज कर रहे हैं, जबकि वे यह भी मानते हैं कि हैकिंग प्योंगयांग के लिए एक बड़ा हथियार बन चुका है। वह भले ही दुनिया में अलग-थलग हो जाए पर उसकी साइबर ताकत को कोई खतरा नहीं होगा। नॉर्थ कोरिया के हैकर्ज देश के बाहर से भी काम करते हैं।

बन रहा आय का स्रोत

नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के पूर्व उप निदेशक क्रिस इंगलिस ने कहा कि साइबर उनके लिए ताकत की तरह है। इसमें लागत कम लगती है और इसमें काफी हद तक पहचान उजागर भी नहीं हो पाती है। यह उनके लिए आय का स्रोत बनता जा रहा है। इससे दुनिया के देशों के सरकारी और प्राइवेट-सेक्टर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए खतरा पैदा हो गया है।


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