धन-धान्य के धन्वंतरि

By: Oct 14th, 2017 12:10 am

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। इस दिन खरीददारी की जाती है और लक्ष्मी का विशेष रूप से पूजन कर आगामी समय में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। एक सुखद संयोग यह भी है कि इस दिन आयुर्वेद के पितामह माने जाने वाले भगवान धन्वंतरि का जन्म दिन होता है, इसीलिए इस तिथि को उत्तम-स्वास्थ्य की कामना के साथ भगवान धन्वंतरि का भी पूजन किया जाता है। यह सुखद संयोग है कि धन और स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध हैं। उत्तम स्वास्थ्य न हो तो धन आता ही नहीं और यदि आ भी जाए तो टिक नहीं पाता। स्वास्थ्य को संभालने में ही धन का अधिकांश हिस्सा खर्च हो जाता है। संभवतः इसी कारण भारतीय परंपरा स्वास्थ्य को सर्वोत्तम धन मानती है। ‘उत्तम सुख निरोगी काया’ का मुहावरा इसी कारण लोगों में प्रचलित है। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं। आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वंतरि समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज इस शुभ तिथि पर धन्वंतरि भगवान का पूजन कर धन्वंतरि जयंती मनाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बरतन खरीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है। ऐसी मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि  काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। उन्होंने चिकित्सा के अलावा फसलों का भी गहन अध्ययन किया है। पशु-पक्षियों के स्वभाव, उनके मांस के गुण-अवगुण और उनके भेद भी उन्हें ज्ञात थे। मानव की भोज्य सामग्री का जितना वैज्ञानिक व सांगोपांग विवेचन धन्वंतरि और सुश्रुत ने किया है, वह आज के युग में भी प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण है। धन्वंतरि जयंती के दिन धनतेरस का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।


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