नव भारत निर्माण के संकल्प

By: Oct 26th, 2017 12:05 am

ललित गर्ग

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

हमने आजाद भारत के विकास में कितना सफर तय किया है, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम अब भारत को कैसा बनाना चाहते हैं। हमारा सफर लोकतंत्र की व्यवस्था के साए में निश्चित रूप से संतोषप्रद रहा है, लेकिन अब हमें ऐसा भारत निर्मित करना है, जिसमें सबका संतुलित विकास हो और धन का भौंडा एवं हिंसक प्रदर्शन न हो। नए भारत के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आर्थिक विसंगतियों पर नियंत्रण राष्ट्रीय संकल्प बने…

पैसे के बढ़ते प्रवाह में दो तरह की स्थितियां देखने को मिल रही हैं। एक स्थिति में धन के सर्वोच्च शिखरों पर पहुंचे कुछ लोग जनसेवा एवं जन कल्याण के लिए अपनी तिजोरियां खोल रहे हैं। दूसरी स्थिति में जरूरत से ज्यादा अर्जित धन का बेहूदा एवं भौंडा प्रदर्शन कर रहे हैं। जहां कुछ वैभव संपन्न घराने आदर्श बन रहे हैं, तो वहीं कुछ तिरस्कार की दृष्टि से देखे जा रहे हैं। अर्थ एवं विकास के असंतुलन ने अनेक समस्याएं पैदा की हैं और उन्हीं से आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद पैदा होते हैं। इसी से भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अपराध पनपे हैं। इसी से गुरमीत जैसे उचक्कों का साम्राज्य एक गाली बनकर सामने आया है। हमने आजाद भारत के विकास में कितना सफर तय किया है, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम अब भारत को कैसा बनाना चाहते हैं। हमारा सफर लोकतंत्र की व्यवस्था के साए में निश्चित रूप से संतोषप्रद रहा है, लेकिन अब हमें ऐसा भारत निर्मित करना है, जिसमें सबका संतुलित विकास हो और धन का भौंडा एवं हिंसक प्रदर्शन न हो। नए भारत के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आर्थिक विसंगतियों पर नियंत्रण राष्ट्रीय संकल्प बने। इसके स्पष्ट मापदंड हों, जैसे सबके लिए दो वक्त की रोटी, तन ढकने के लिए वस्त्र एवं सिर पर छप्पर। नया भारत हमारे डीएनए में रचे-बसे मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे और गरीब व अमीर के बीच की दूरियों को पाटा जाए। नए भारत का समाज ऐसा हो, जो तेजी से बढ़ते हुए संवेदनशील भी बना रहे।

ऐसा संवेदनशील समाज, जहां पारंपरिक रूप से वंचित लोग, देश के विकास प्रक्रिया में सहभागी बनें और अपना समग्र विकास करें। ऐसे नए भारत का निर्माण हो, जहां हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीने का हक मिले। भारत का मूल निवासी होने वाले नागरिक को अपने ही देश में परायापन, तिरस्कार, शोषण, मतांतरण, अशिक्षा, सांप्रदायिकता और सामाजिक एवं प्रशासनिक दुर्दशा का शिकार होना पड़े, तो यह एक बड़ी त्रासदी है। भारत में प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय पैंतालीस हजार बताई जाती है। गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लगभग कुल आबादी के पैंतीस प्रतिशत लोगों की सालाना आय पांच से दस हजार रुपए से अधिक नहीं है। दीपावली या होली सरीखे जश्न महानगरों ही, नहीं बल्कि छोटे कस्बों तक में जो प्रदर्शन होते हैं। उनमें संपन्न परिवारों की बात छोड़ दें, तो एक सामान्य आय वाला परिवार भी ऐसे प्रदर्शनों पर हजारों रुपए खर्च करता है। सबसे बड़े धनाढ्यों में शुमार कोई व्यक्ति पांच प्राणियों के रहने के लिए पांच हजार करोड़ की लागत से घर बनाता है, तो कोई करोड़ों रुपए एक शादी में खर्च करके क्या जताना चाहता है? ये लोग इतनी बड़ी रकम से कोई आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकते थे, जैसा कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, वॉरेन बफेट, कम्प्यूटर जगत के बादशाह बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी आदि ने किया है। इन लोगों ने दुनिया से गरीबी दूर करने, सेवा एवं जनकल्याण के लिए, शिक्षा और चिकित्सा के लिए अपने अर्जित धन का विसर्जन किया है। संतुलित समाज निर्माण के सपने को आकार देने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।

पैसे का अहंकार तो शैतान से भी ज्यादा खतरनाक होता है। विषमता गरीबी को बढ़ा कर ही बढ़ सकती है। साथ ही जब हाथ में एकाएक जरूरत से ज्यादा पैसा आता है, तो भौंडापन एवं अहंकार अपने आप बढ़ता है। इस प्रकार के पैसे और उसके कारण जो चरित्र निर्माण होता है, उससे देश मजबूत नहीं बल्कि कमजोर होता है। इस प्रकार बढ़ते नव धनाढ्यों की लंबी सूची और उनके भौंडेपन को किसी भी शक्ल में विकास तो कहा ही नहीं जा सकता। इसी तरह के नव धनाढ्यों और धन का हिंसक एवं भौंडा प्रदर्शन करने वालों के लिए आचार्य श्री तुलसी ने ‘निज पर शासन फिर अनुशासन’ एवं ‘संयमः खलु जीवनम्-संयम ही जीवन है।’ का उद्घोष दिया था। भगवान महावीर ने कहा था कि संसार में लोक कल्याण, विश्व शांतिए सद्भाव और समभाव के लिए अपरिग्रह का भाव जरूरी है। यही अहिंसा का मूल आधार है। परिग्रह की प्रवृत्ति अपने मन को अशांत बनाती है और हर प्रकार से दूसरों की शांति को भंग करती है। लेकिन आज बड़ा राष्ट्र छोटे राष्ट्र को हड़पना चाहता है, हर बड़ी मछली, छोटी मछली को निगल रही है। धनवान व्यक्ति परिग्रह और अहं प्रदर्शन के द्वारा असहायों एवं कमजोरों के लिए समस्याएं पैदा करता है। यह संसाधनों पर कब्जा ही नहीं करता, बल्कि उसका बेहूदा प्रदर्शन करता है, जिससे मानसिक क्रोध बढ़ता है और हिंसा को बढ़ावा मिलता है। महावीर ने इसलिए एक-दूसरे के सहायक बनने की बात कही। उन्हीं के दिए उपदेशों से निकला शब्द है-विसर्जन।

समतामूलक समाज निर्माण के लिए जरूरी है कि कोई भी कितना ही बड़ा व्यवसायी बने, लेकिन साथ में अपरिग्रहवादी भी बने। अर्जन के साथ विसर्जन की राह पर कदम बढ़ाए। डा. अच्यूता सामंता ने कलिंगा विश्वविद्यालय के रूप में उच्च शिक्षा के बड़े गढ़ स्थापित किए तो उससे होने वाली आय को आदिवासी गरीब बच्चों के कल्याण में विसर्जित किया। 12 हजार से अधिक गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने वाले सामंता आज भी एक चट्टाई पर सोते हैं, उनका कोई आशियाना नहीं है। इसी भांति गणि राजेंद्र विजयजी अपनी संतता को सार्थक करते हुए आदिवासी कल्याण के लिए अनेक योजनाएं संचालित कर रहे हैं। उनका भी कोई भव्य आश्रम नहीं है। ऐसे ही प्रयत्नों से हम भारत को विकसित होते हुए देख सकते हैं। गांधीजी ने अहमदाबाद में आश्रम शुरू किया, तब एक समय आर्थिक तंगी के कारण आश्रम बंद करने की नौबत आई। गांधीजी मंथन कर रहे थे और आश्रम बंद होगा, यह बात निश्चित लग रही थी। एक शाम एक सर्वथा अनजाना व्यक्ति आया और रुपयों की एक थैली देकर साबरमती के अंधकार में अदृश्य हो गया। आज तक यह पता नहीं लग सका कि वह व्यक्तिष् कौन था। आश्रम अगर चालू रह सका, तो उस व्यक्ति के कारण। निःस्वार्थ, सहज, सात्विक उपकार ऐसा होता है। सही रूप में विसर्जन, बिना किसी अपेक्षा के।

ऐसा उपकार मनुष्य पर प्रकृति पल-पल करती रहती है। सूर्य, पृथ्वी, वायु, आकाश एवं जंगलों की तरफ से सतत होता रहता है। तभी हमारा जीवन है, हम जिंदा हैं।  रेल या बस में थोड़ा सिकुड़ कर अगर आप किसी के लिए जगह बना देते हैं, तो एक विशेष प्रकार के आनंद और संतोष की अनुभूति होती है। स्मरण कीजिए, भूतकाल में कई बार आपके लिए किसी ने इसी प्रकार जगह बना दी थी। आज आप उनका नाम व चेहरा भी भूल गए होंगे। यह दुनिया भी एक रेल है। यहां भी ऐसे ही किसी अनजान के लिए थोड़ा संकोच करें, बिना किसी अपेक्षा के। पेड़ अगर फल देता है, तो क्या आपसे ‘थैंक्यू’ की भी अपेक्षा करता है? सचमुच देने का सुख अप्रतिम है। कृतज्ञता अहंकार का विसर्जन है। उपकार का आनंद अनुभव करना है, तो आपने जो किया, उसे जितनी जल्दी ही भूल जाएं और आपके लिए किसी ने कुछ किया, उसे कभी न भूलें। यही नए भारत को आदर्श स्थिति प्रदत्त कर सकेगा। आज जरूरत है हर समर्थ आदमी अपने से कमजोर का सहायक बने। तकलीफ तब होती है, जब इसका उल्टा होता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App