निबंध प्रतियोगिता

By: Oct 11th, 2017 12:08 am

निम्न तीन निबंधों को श्रेष्ठ चुना गया हमारा विषय था

बाबाओं की संगत से बढ़ते खतरे

प्रथम

सुनील कुमार सरकाघाट, मंडी

सुनील कुमारभारत वह देश है जहां राम कृष्ण परम हंस, स्वामी विवेकानंद, महावीर जैन और बुद्ध जैसी महान आत्माओं का जन्म हुआ। राजनीति धर्म, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों में भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया, उसकी गूंज अभी भी दुनिया में गूंज रही है। इन्हीं संतों की बदौलत हमें भातर पर गर्व है। आज यहां कुछ ऐसे लोगों को धर्म गुरु माना जाता है, जो खुद भूल गए हैं कि सच्चा संन्यास और साधना क्या है। हमारे ऋषि मुनियों ने चार आश्रम की स्थापना की ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वान प्रस्थ और संन्यास। ये आश्रम इसलिए स्थापित किए, ताकि गृहस्थ और संन्यासी में फर्क किया जा सके, लेकिन आजकल गृहस्थ ही खुद को संन्यासी या संत मानने लगे हैं। वे सभी सुख- सुविधाओं के बीच रहकर उन्हें भोगते हुए खुद को संत या संन्यासी बताते हैं।

लोग ऐसे तथाकथित संतों से दीक्षा लेकर उन्हें अपना गुरु मानते हैं। ये ऐसे गुरु घंटाल हैं जो लोगों को देते कुछ नहीं, बल्कि लोगों के पास जो है, उसे भी छीन लेते हैं। सवाल यह उठता है कि इतने बाबा आते कहां से हैं और अगर आते भी हैं तो उनके पास इतने अनुयायी कहां से आते हैं? इसका जवाब यह है कि आस्था की आंधी में तर्कों के तीर अकसर हवा हो जाते हैं। तमाम राजनीतिक दलों के नेता गण जिस प्रकार बाबाओं के सामने नतमस्तक होते हैं, वे जाने-अनजाने में भारतीय समाज को उस बाबा तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। मार्ग दर्शन देने वाले ही दिग्भ्रमित करने का कार्य करते हैं। बेशक राजनीतिक दल और नेता पूर्णरूप से जिम्मेदार हैं बाबाओं की बढ़ती प्रसिद्धि और लोक प्रियता के लिए। यह देश की विडंबना ही है कि एक तरफ देश आईटी सेक्टर, सेटेलाइट लांचिग जैसे विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विश्व में झंडे गाड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ अंधभक्तों की फौज पैदा हो रही है, जो भावनाओं के ज्वार में हिंसा पर उतारू हो जाती है।

किसी कानून को मानने को तैयार नहीं है, जिसे विश्वास दिलाने के लिए पुलिस को बल का प्रयोग करना पड़ता है। उन्हें बताना पड़ता है कि उनकी श्रद्धा का केंद्र कानून तोड़ने का अपराधी है। उस पर भी आम जनता की तरह देश के कानून लागू होते हैं। धार्मिक मदांधता की तरह ही नक्सलवाद भी देश के कई राज्यों में फैला हुआ है। देश में नक्सलवाद पनपने के जो कारण रहे हैं, वही कारण कमोवश अंधभक्ति के भी हैं। दोनों में सतही तौर पर आस्था या विचारधारा नजर आए, किंतु सच्चाई इससे कोसों दूर है। यह भी निश्चित है कि ढोंगी फरेबी बाबाओं को कानूनी सजा मिलने से समस्या का समाधान नहीं होगा। ऐसे ढोंगी बाबा लोगों को भ्रम जाल में फंसा कर तब तक अपना कारोबार बढ़ाते हुए, ऐसे ही कानून के लिए सिर दर्द बनते रहेंगे, जब तक इसका समाधान बराबरी के तीव्र बुनियादी विकास और मानव अधिकारों की सुरक्षा से नहीं किया जाता।

द्वितीय

सुमन शर्मा बसाहन, सिरमौर

सुमन शर्मा बसाहन, सिरमौरभारत एक धर्म प्रधान देश है, यहां पर विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इत्यादि। परंतु हिंदू धर्म के लोगों की संख्या सर्वाधिक (लगभग 80 प्रतिशत) है। हिंदू धर्म के अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। हिंदू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परंपराओं का सम्मिश्रण मानते हैं। हिंदू धर्म के लोग विभिन्न देवी-देवताओं को मानते हैं। इसके अलावा हिंदू धर्म के गुरुओं को भी अहम स्थान दिया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि गुरु के बिना मोक्ष प्राप्ति असंभव है।

‘गुरु’ इनसान और भगवान के मध्य मजबूत कड़ी है, जो अपने ज्ञान रूपी भंडार से इनसान को सिंचित करती है और भगवान के नजदीक जाने का मार्ग उपलब्ध करवाती है। स्वामी विवेकानंद और उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस से भी परिचित होंगे। यह गुरु-शिष्य का जीवंत उदाहरण रहा है। इसी तरह अनेक हैं, परंतु कुछ ढोंगी बाबाओं ने इस प्रवृत्ति को ही बदल कर रख दिया। दौलत-शोहरत की चाह रखने वाले बाबाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण है कि ‘भारत के लोग’ विशेषकर महिलाएं धर्म के प्रति संवेदनशील हैं। उनकी इसी संवेदनशीलता का ये ‘ढोंगी बाबा’ गुरु बनकर नाजायज फायदा उठाते हैं।

दूसरा बड़ा कारण है-लोगों की निरक्षरता। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत, जबकि महिला साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है। यही आंकड़े अगर गांवों के संदर्भ में देखे जाएं, तो ग्रामीण साक्षरता दर केवल 71 प्रतिशत (2011 के अनुसार) है। यह भी एक कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांव के लोग ढोंगी बाबाओं के चंगुल में आसानी से आ जाते हैं। अभी हाल ही में हुए बाबा राम रहीम षड्यंत्र में भी ज्यादा तादाद गांव के लोगों और महिलाओं की ही थी। सीबीआई विशेष अदालत द्वारा बाबा राम रहीम को अपनी दो शिष्याओं के बलात्कार के जुर्म में सजा सुनाई गई। अंधविश्वासी जनता बाबा का विरोध करने की बजाय बाबा का संरक्षण व समर्थन करने हेतु सड़क पर उतर आई और अपना विरोध जताते हुए भड़की जनता ने कई गाडि़यों को जलाया और करोड़ों की संपत्ति का नाश कर दिया था।

इस अंधविश्वास और अनपढ़ता के चलते कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं जब लोगों ने अनपढ़ता और अंधविश्वास का परिचय दिया हो। इससे पूर्व भी आसाराम बापू और नित्यानंद स्वामी जैसे अनेक बाबाओं ने लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है और लोगों द्वारा इन्हीं ढोंगी बाबाओं का साथ दिया गया।  अगर समय रहते लोग जागरूक नहीं होंगे, तो भविष्य में ऐसे कई और ढोंगी बाबा जन्म लेते रहेंगे। इन ढोंगी बाबाओं को राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया जाता है, जो कदाचित सही नहीं है। इस प्रकार का संरक्षण इनकी कुरीतियों को बढ़ावा देता है। सरकार को ऐसे बाबाओं के मामले में सख्ती से पेश आना होगा और इनके दीक्षा समारोह में भी पैनी नजर रखनी होगी। साथ ही हमारी शिक्षित युवा पीढ़ी को भी सशक्त कदम उठाना चाहिए और अपने बुजुर्गों को ढोंगी बाबाओं की असलियत को समझना चाहिए। लोकतांत्रिक देश भारत का चौथा स्तंभ है-मीडिया। मीडिया ऐसे बाबाओं के भंडाफोड़ में जनता और सरकार का साथ दे सकता है। हमें इन बाबाओं से सतर्क रहने की आवश्यकता है तभी हमारी जनता बाबाओं के बढ़ते खतरे से महफूज रह सकेगी।

तृतीय

बाबू राम दियोट, कांगड़ा

बाबू राम दियोट, कांगड़ाभारत ऋषि, मुनियों और तपस्वियों की भूमि है। इस भूमि पर महात्मा बुद्ध, महावीर और आदि गुरु शंकराचार्य ने जन्म लिया। जिन्होंने पूरे संसार को त्याग, शांति और आध्यात्मिकता का संदेश दिया, जिन्हें ये दुनिया सदियों तक याद रखेगी। 18वीं और 19वीं सदी में अनेक समाज सुधारक हुए, जिनमें राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, दयाल दास और ज्योतिराव गोविंद राव फुले इत्यादि हुए, जिन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। आज कुकर्मी बाबाओं की बाढ़ सी आ गई है, जिसमें आसाराम, नारायण साई, रामपाल, राधे मां, गुरमीत राम रहीम प्रमुख हैं। आज भारत आजाद हुए 70 वर्ष हो चुके हैं। आज भी हमें संचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से सूचना मिलती है कि बाबाओं को साध्वियों के यौन शोषण के आरोप में 20 वर्ष की कैद। ऐसी खबर सुनकर, पढ़कर, देखकर हमारे जहन में अनेक प्रश्न उठते हैं-

(1) क्या भगवान पैसा लेकर ही अपनी संतान की इच्छा पूरी करता है?

(2) क्या बेटा, बहू और सास-ससुर अपने रिश्तों को अच्छी तरह से निभा रहे हैं?  (3) क्या हम आज इतने अधीर हो गए हैं कि हममें धैर्य रहा ही नहीं है?

(4) क्या एक साधारण व्यक्ति जो ईश्वर जैसी वेशभूषा पहनता है, क्या वह भगवान हो सकता है?

(5) क्या हमारी इच्छाएं असीमित हो गई हैं?

(6) क्या हम प्राणी में ईश्वर का अंश मानते हैं?

(7) क्या हम भ्रष्टाचार में कहीं संलिप्त तो नहीं हैं?

(8) क्या हममें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हुआ है?

(9) क्या हम ‘कर्माणि मा अधिकारेषु मा फलेषु कदाचन’ पर विश्वास करते हैं?

(10) क्या हम भेड़चाल में तो नहीं चल रहे हैं?

ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर के बारे में हम सबको गहराई से सोचना होगा। जिस दिन इन प्रश्नों के उत्तरों पर हम सब अमल करेंगे, तो उस दिन हम यह कह सकते हैं कि कोई भी राजनेता, अभिनेता, खिलाड़ी और सामान्य मानव और विशेषकर महिला इन बाबाओं की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण का शिकार नहीं होगी। हम थोड़े से दुख में ही धैर्य खो बैठते हैं और बाबाओं के तंत्र-मंत्र में विश्वास करने लगते हैं, जो हमारे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण का कारण बनता है। दुख किसके जीवन में नहीं आते। बस बात है, तो सब्र की। अगर हमें ऐसा कोई बाबा दिखे तो उनका विरोध करें। विभिन्न सामाजिक संगठन ढोंगी बाबाओं के विरुद्ध आवाज उठाएं। सरकार की ओर से ऐसे बाबाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।


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