बच्चों को दिवाली का इतिहास भी बताएं

By: Oct 20th, 2017 12:05 am

(राजेश चौहान, सुजानपुर टीहरा )

भारतीय त्योहारों पर कुछ-कुछ पश्चिमी रंग चढ़ता जा रहा है। दीपावली की चकाचौंध भी अब दीपों के बजाय जगमग बिजली की लाइटों से की जाने लगी है। हम दुनियावी दिखावे में इतने मशगूल हो चुके हैं कि इस मौके पर खुशी का इजहार करने के लिए घरेलू पकवानों से मुंह मीठा करवाने तक का वक्त हमारे पास नहीं बचा। इसका मुख्य कारण यह है कि भौतिकवाद की अंधी दौड़ में इनसान इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास त्योहार मनाने तक का समय नहीं बचा। दीपावली का त्योहार हिंदोस्तान का सबसे बड़ा त्योहार है। इसको अगर स्वदेशी तरीके से मनाया जाए, तो इसको मनाने की खुशी में चार चांद लग जाएंगे। दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाए जाएं, तो बिजली की बहुत बचत होगी। इसी बहाने दीपक बनाने वाले कारीगरों की भी दिवाली हो जाएगी। इस मौके पर अगर घर पर ही खाने-पीने की चीजें बनाई जाएं, तो इनको खाने से सेहत पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पडे़गा। दीपावली पर अपने बच्चों को मात्र मनोरंजन ही नहीं करवाना चाहिए, बल्कि दीपावली के इतिहास के बारे में भी जरूर बताना चाहिए। श्रीरामचंद्र जी की जीवनी बारे बताना चाहिए कि वह किस तरह ताउम्र मर्यादाओं में रहते हुए सिद्धांतों के लिए जीये। इस दिवाली ज्ञान की यह लौ भी बहनी चाहिए, ताकि बच्चों में नैतिकता का दीपक जले। अगर समाज में ऐसी पहल हो, तो इस पर्व की सार्थकता और भी बढ़ेगी।


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