भारत का इतिहास

By: Oct 4th, 2017 12:05 am

प्रक्रिया नियम समिति की बैठकें

गतांक से आगे-

11 दिसंबर, 1947 को संविधान सभा के अध्यक्ष ने घोषणा की कि जगजीवन राम, शरत चंद्र बोस, एफआर एंटनी, अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, टेकचंद, रफी अहमद किदवई जेएडी, सूजा एन गोपाल स्वामी अय्यंगर पुरुषोत्तम दास टंडन जी बारदलो ई, बी पट्टाभि सीतारमय्या, केएम मुंशी एमसी खन्ना हरनाम सिंह और श्रीमती जी दुर्गाबाई निर्विरोध नियम समिति के सदस्य निर्वाचित हो गए थे। प्रक्रिया नियम समिति की बैठकें डा. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई और उन्होंने 21 दिसंबर 1946 को अपनी रिपोर्ट संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत की। संविधन सभा ने प्रक्रिया नियम समिति की रिपोर्ट पर 21, 22 और 23 दिसंबर, 1946 को विचार किया। सभा की ये बैठकें संपूर्ण सदन की समिति के रूप में बंद कमरे में हुईं। इस समिति स्तर के बाद 23 दिसंबर के अपराह्न में संविधान-सभा का पूर्ण अधिवेशन हुआ और उसने संपूर्ण सदन की समिति द्वारा पारित नियमों को स्वीकार कर लिया। संविधान सभा ने जिन प्रक्रिया नियमों को अपनाया, उनकी संख्या 68 थी और वे 12 अध्यायों में विभक्त थे। पहले अध्याय में कहा गया था कि नियम तुरंत प्रभावी हो जाएंगे। इसी अध्याय में जो परिभाषाएं दी गई थीं, उनमें स्थायी सभापति का पदनाम बदलकर अध्यक्ष कर दिया गया था। अनुभाग की परिभाषा करते हुए कहा गया था कि वह मंत्रिमंडल मिशन के वक्तव्य में निर्दिष्ट संविधान सभा का अनुभाग है। दूसरे अध्ययय में सदस्यों के प्रवेश तथा स्थानों के खाली करने का विवेचन था। तीसरे अध्याय में अध्यक्ष के रिक्त पद की पूर्ति की पद्धति बताई गई थी और उसके कार्यों का निरूपण किया गया था। नियम 10 के अधीन अध्यक्ष को अधिकार दिया गया था कि वह अनुभाग की पहली बैठक बुला सकता है और अनुभाग के सदस्यों में से एक व्यक्ति को सभापति नियुक्त कर सकता है। जब तक अनुभाग अपना सभापति निर्वाचित न कर ले, तब तक यह सभापति अनुभाग की बैठकों का सभापतित्व कर सकता है। चौथे अध्याय में  संविधान सभा के पांच उपाध्यक्ष होने थे। शेष दो उपाध्यक्षों का निर्वाचन संविधान-सभा को करना था। पांचवें अध्याय में संविधान-सभा के कार्यालय संगठन का विवरण दिया गया था। छठे अयाय में संविधान सभा के कार्यक्रम की रूपरेखा दी हुई थी। सभा के कार्य संचालन तथा प्रक्रिया का नियमन सभा के नियमों, स्थायी आदेशों और प्रस्तावों द्वारा तथा समय-समय पर सभापति द्वारा दी गई व्यवस्थाओं द्वारा होना था। नियम  20 ने संविधान सभा की प्रभुसत्ता का स्पष्ट रूप से निर्धारण कर दिया था।


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