महिला आजादी से खतरे में इस्लाम !

By: Oct 14th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

आजकल हिंदोस्तान में इस्लाम हर मामले में जल्दी ही खतरे में पड़ जाता है। जब औरतों ने कहा कि तीन बार तलाक चिल्ला देने से विवाह टूट नहीं सकता, तब मौलवियों ने उनकी गर्दन पकड़ी और कहा तुम्हारी इन बातों से इस्लाम खतरे में पड़ गया है। जब सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के वकील पति से कहा कि तुमने अपनी विवाहित औरत को छोड़ दिया है, इसलिए उसको गुजारा भत्ता दो, तो मौलवी एक साथ चिल्लाए कि इससे इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। अब यदि 45 साल की उम्र से ज्यादा आयु की कम से कम चार औरतों को एक साथ मक्का जाने की अनुमति दी जा रही है, तो इस्लाम फिर खतरे में पड़ गया है…

दुनिया भर के लोग जो इस्लाम मजहब में विश्वास रखते हैं, मक्का में जाकर उस स्थान के दर्शन करना चाहते हैं, जहां लगभग चौदह सौ साल पहले अरबों में हजरत मोहम्मद ने एक नई क्रांति का सूत्रपात किया था। इसे वे हज यात्रा कहते हैं। मुस्लिमों के सबसे बढ़े तीर्थ स्थल सऊदी अरब के पास मक्का के करीब स्थित रमीजमारात में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के साथ ही हज को पूरा माना जाता है। हज यात्रा का यह सबसे चुनौतीपूर्ण और खतरनाक पड़ाव माना जाता है। इस हज यात्रा में मुसलमानों के अलावा, शिया समाज व अफ्रीकी देशों के लाखों कृष्णवर्णी लोग भी भाग लेते हैं। भारत से भी हर साल वे लोग, जो इस्लाम से प्रभावित हैं, इस हज यात्रा में जाते हैं। भारत सरकार हज पर जाने वाले ऐसे तीर्थयात्रियों को किराए में कुछ रियायत भी देती है। यह रियायत गरीब यात्रियों को ही मिलती होगी, ऐसा माना जा सकता है। लेकिन असल मुद्दा किराए में रियायत का नहीं है। इस यात्रा में पुरुष और महिलाएं दोनों ही जाती हैं। इसमें कोई बुरी बात नहीं है। परमात्मा के घर में तो स्त्री और पुरुष दोनों बराबर ही हैं, लेकिन जिन्होंने इस्लाम का गहराई से अध्ययन कर लिया है और जो अपना पल-पल का जीवन शरीयत के अनुसार जीते हैं, ऐसे मुल्ला-मौलवियों ने भारत सरकार को सख्त ताकीद कर रखी थी कि यदि किसी औरत को मक्का जाने की अनुमति देती है, तो इसी शर्त पर देनी चाहिए कि ऐसी स्त्री के साथ परिवार का कोई पुरुष जरूर होना चाहिए।

आज तक भारत सरकार भी मौलवियों के इस दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करती रही। उसने मौलवियों से नहीं कहा कि आधुनिक युग में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसा संभव नहीं है। वैसे भी जब औरतें सारी दुनिया में अकेले घूमती हैं, दुनिया भर के काम धंधों में दखलअंदाजी रखती हैं, तो मक्का वे अकेली क्यों नहीं जा सकतीं? हिंदोस्तान की सड़कों पर रोज लाखों ऐसी औरतें, जिनके पुरखों ने कभी इस्लाम मजहब को अपना लिया था, अकेली घूमती हैं। अकेली औरत मक्का नहीं जा सकती, आखिर इसके पीछे तर्क क्या है? उनके पास तर्क कोई नहीं है, लेकिन जिद पक्की है। उनका कहना है, इस्लाम मुसलमान औरत को बगैर किसी मर्द के बाहर निकलने की अनुमति नहीं देता। जब भी वह बाहर निकले, तो उसके साथ परिवार का कोई पुरुष जरूर होना चाहिए, चाहे वह उसका बेटा ही क्यों न हो। आखिर इस देश का संविधान किसी स्त्री के साथ यह अमानवीय व्यवहार कैसे कर सकता है? इसे देखते हुए भारत सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से हज नीति निर्धारित करने के लिए एक कमेटी का गठन किया। उस कमेटी ने निर्णय लिया है कि यदि 45 साल की उम्र से ज्यादा आयु की कम से कम चार औरतें एक साथ मक्का जाना चाहें, तो उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। इस समिति में अफजल अमानुल्लाह, पूर्व न्यायाधीश एसएस पारकर, कैसर शमीम, कमाल फारुकी, संयुक्त सचिव जे आलम सदस्य शामिल थे। समिति के संयोजक अफजल अमानुल्लाह ने नई हज नीति की मुख्य बिंदुओं के बारे में बताते हुए कहा कि नई हज नीति को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें कम खर्चे में हज यात्रा, यात्रियों की सुरक्षा, सभी राज्यों के मुसलमानों को हज यात्रा का लाभ मिले, इसका विशेष ध्यान रखा गया है। जनसंख्या के मुताबिक भारत के कोटे से एक लाख 70 हजार लोग यात्रा कर सकते हैं।

समिति की इस सिफारिश से मुल्ला मौलवियों में हड़कंप मचा हुआ है, जैसे कबूतरों के दड़बे में कोई बिलाव घुस आया हो। मौलवियों का कहना है कि इससे हिंदोस्तान में इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। आजकल हिंदोस्तान में इस्लाम हर मामले में जल्दी ही खतरे में पड़ जाता है। जब औरतों ने कहा कि तीन बार तलाक चिल्ला देने से विवाह टूट नहीं सकता, तब मौलवियों ने उनकी गर्दन पकड़ी और कहा तुम्हारी इन बातों से इस्लाम खतरे में पड़ गया है। जब सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के वकील पति से कहा कि तुमने अपनी विवाहित औरत को छोड़ दिया है, इसलिए उसको गुजारा भत्ता दो, तो मौलवी एक साथ चिल्लाए कि इससे इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। सरकार भी न्याय और धर्म का रास्ता छोड़ कर मौलवियों के साथ हो गई। अब फिर कमेटी कह रही है कि यदि 45 साल की उम्र से ज्यादा आयु की कम से कम चार औरतें एक साथ मक्का जाना चाहें, तो उन्हें इसकी अनुमति दी जाए, तो इस्लाम फिर खतरे में पड़ गया है। मौलवी इस्लाम की रक्षा के लिए उसके इर्द-गिर्द कुंडली मार कर खड़े हैं, लेकिन इस्लाम को आखिर औरत से ही इतना खतरा क्यों रहता है?

महाराष्ट्र में इस्लाम के उलेमाओं की एक जमात बनी हुई है। उनके सचिव तो बहुत ही घबरा गए हैं। उसने कहा मोदी सरकार को इस्लाम को समझने का प्रयास करना चाहिए। उसे दुख है कि सरकार इस्लाम को गहराई से समझने के बजाय औरतों को सब प्रकार की सुविधाएं देकर इस्लाम को खतरे में डाल रही हैं। किसी ने उलेमा को पूछ लिया होगा कि भाई जब स्त्री और पुरुष बराबर हैं, तो स्त्री को अकेले हज पर जाने में क्या आपत्ति है? तो उलेमा और आग बबूला हो गए। उनका कहना है कि यदि ऐसा है, तो पुरुष को भी बच्चा पैदा होना चाहिए और उसे भी साढ़े चार महीने गर्भ धारण करना चाहिए।  वैसे तो उलेमा को इस्लाम का पारखी ही माना जाता है, लेकिन यदि उलेमाओं की नजर में स्त्री-पुरुष समानता का अर्थ गर्भ धारण करने तक ही सीमित है, फिर तो उनकी समझ पर सचमुच संशय होता है। तब तो उनकी इस्लाम और शरीयत की समझ भी इसी प्रकार की कच्ची-पक्की होगी। लेकिन भारतीयों को इस्लाम और शरीयत समझाने का दावा करने वाले ये मुल्ला-मौलवी और उलेमा आखिर कौन हैं?

प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम, जो स्वयं भी इस्लाम के विद्वान माने जाते थे, ने एक बार कहा था कि भारत के मुसलमानों में से 95 प्रतिशत तो हिंदुओं की औलाद ही हैं। शेष पांच प्रतिशत वे हैं, जिनके पूर्वज अरब, ईरान और मध्य एशिया से आए थे। मौलाना का तो कहना था कि वह भारतीय संस्कृति में घुल-मिल गए हैं, लेकिन लगता नहीं कि वे अभी घुल-मिल गए हों। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इस प्रकार की तर्कहीन बातें भारतीय उलेमा तो कर नहीं सकते। ये उलेमा-मौलवी उन्हीं पांच प्रतिशत लोगों में से तो नहीं, जिनका संकेत मौलाना आजाद ने किया है। हो सकता है अरब में हालात इस प्रकार के उन दिनों रहे हों कि वहां औरत का अकेले निकलना खतरे से खाली न हो, लेकिन भारत में इस प्रकार का खतरा नहीं है। मौलवी तो अभी तक अरब का दीया भारत में जलाए हुए हैं। अंत में यही उलेमा अरब के सहारे फिर गर्दन तान कर चिल्ला रहा है, भारत सरकार नियम बना भी दे, लेकिन सऊदी अरब की सरकार मर्द के बिना किसी औरत को वीजा नहीं देगी।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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