मिट्टी के दीयों की बात ही अलग

By: Oct 15th, 2017 12:05 am

अंधेरे पर उजाले के प्रतीक दिवाली पर्व पर पहले हर घर में मिट्टी के दीये ही जलाए जाते थे, लेकिन अब मिट्टी के दीये की जगह लाइटों, मोमबत्ती और पता नहीं क्या-क्या चाइनीज  चीजों ने ले ली है। पहले कुम्हारों को एक महीना पहले दिवाली के लिए हजारों की संख्या में दीये बनाने का काम पड़ जाता था, लेकिन अब उनके पास भी काफी समय खाली पड़ा है क्योंकि इन चाइनीज चीजों ने उनको भी खाली बैठा दिया है। देखा जाए तो जो मजा अपनी देशी चीजों में ही होता है, वह चाइनीज लाइट में कहां मिट्टी के दीयों की खुशबू ही ऐसी होती है कि वह हमें अपनी माटी की याद दिला देती है। हमें अपनी देशी चीजों को बढ़ावा देना चाहिए। ड्रैगन लाइटों की आमद तो है, मगर इसकी बिक्री जोर नहीं पकड़ रही। ऐसा नहीं है कि इस वर्ष रोशनी के इस पर्व पर ड्रैगन लाइटों (चाइनीज लाइट) को कोई पूछ नहीं रहा है, लेकिन चाइनीज आइटमों के बहिष्कार को लेकर चल रही मुहिम के बीच मिट्टी के दीये की बिक्री पिछले सालों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा है। कुम्हार भी इस वर्ष साधारण के साथ-साथ फैंसी दीये बनाकर बाजार में पहुंचे हैं। आप एक या दो दिन पहले मिट्टी के दीये खरीद लें और उनको एक खुले बरतन में पानी में भिगो कर रख दें और जिस दिन दिवाली हो उस दिन पानी से निकाल कर सुखा लें इससे दीये ज्यादा तेल नहीं सोखते और काफी देर तक जलते रहते हैं।

दिवाली के दिन क्यों खेला जाता है जुआ

दिवाली का त्योहार हमारे देश में प्रमुख त्योहार है। इस दिन प्रत्येक घर में दीपक जलाकर हम इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन सबसे हैरान करने वाली प्रथा है कि इस दिन लोग रात को जुआ खेलते हैं। हालांकि जुआ खेलने की प्रथा एक सप्ताह तक चलती है, लेकिन इस दिन जुआ खेलने का एक अलग ही महत्त्व है।

जुआ खेलने की परंपरा

पुरानी परंपराओं की बात की जाए तो इस दिन जुआ खेलना शुभ माना जाता है। लोग खुलेआम घरों से बाहर  कौडियों से जुआ खेलते थे। जुआ खेलने में हार और जीत का शुभ-अशुभ जानने की भी प्रथा थी।

जब भगवान शंकर पराजित हुए

जो जीत जाता था वह जान जाता था कि आने वाला साल उसके लिए शुभ होगा। अब कौडियों का स्थान ताश ने ले लिया है। पौराणिक मान्याताओं की बात की जाए तो जुए के खेल को भगवान शिव और माता पार्वती से भी जोड़ा जाता था, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। इस पौराणिक मान्याताओं को जहां खुशी के लिए खेला जाता था, आज वही घर बर्बाद करने का कारण हो गया है। पहले तो जुआ दिवाली के समय ही खेला जाता था, लेकिन अब तो हर दिन लोग जुए की दिवाली खेलते हैं।  इसी कारण कई घर बर्बाद हो रहे हैं।


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