मूर्ख राजा और चतुर मंत्री

By: Oct 1st, 2017 12:05 am

एक समय की बात है दियत्स नाम की नगरी एक नदी किनारे बसी हुई थी। वहां का राजा बहुत ही मूर्ख और सनकी था। एक दिन राजा अपने मंत्री के साथ संध्या के समय नदी के किनारे टहल रहा था। तभी उसने मंत्री से पूछा, मंत्री बताओ यह नदी किस दिशा की ओर और कहां बहकर जाती है।

महाराज, यह पूर्व दिशा की ओर बहती है और पूर्व की ओर स्थित देशों में बहकर समुद्र में मिल जाती है, मंत्री ने उत्तर दिया। यह सुनकर राजा बोला, यह नदी हमारी है और इसका पानी भी हमारा है, क्या पूर्व में स्थित देश इस नदी के पानी का उपयोग करते हैं।

जी, महाराज, जब नदी उधर बहती है, तो करते ही होंग, मंत्री ने उत्तर दिया। इस पर राजा बोला, जाओ नदी पर दीवार बनवा दो और सारा का सारा पानी रोक दो, हम नहीं चाहते हैं कि पूर्व दिशा में स्थित देशों को पानी दिया जाए। लेकिन, महाराज इससे हमें ही नुकसान होगा। मंत्री ने उत्तर दिया। नुकसान! कैसा नुकसान। नुकसान तो हमारा हो रहा है, हमारा पानी पूरब के देश मुफ्त में ले रहे हैं और तुम कहते हो कि नुकसान हमारा ही होगा। मेरी आज्ञा का शीघ्र से शीघ्र पालन करो। राजा गुस्से में बोला।

मंत्री तुरंत कारीगरों को बुला लाया और नदी पर दीवार बनाने का काम शुरू करवा दिया।  कुछ ही दिनों में  दीवार बन कर तैयार हो गई,  राजा बहुत खुश हुआ। पर उसकी मूर्खता की वजह से कुछ समय बाद नदी का पानी शहर के घरों में घुसने लगा। लोग अपनी परेशानी लेकर मंत्री के पास आए। मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह सब कुछ ठीक कर देगा।

मंत्री ने एक योजना बनाई। महल में एक घंटा बजाने वाला आदमी रहता था। वह हर घंटे पर समय के अनुसार घंटा बजा देता था, जिससे सभी को समय का पता चल जाता था। मंत्री ने उस आदमी को आदेश दिया कि वह आज रात को जितना समय हो उसका दोगुना घंटा बजाए। आदमी ने ऐसा ही किया। जब रात के तीन बजे तो उसने 6 बार घंटा बजाया, जिसका अर्थ था कि सुबह के 6 बज गए हैं।

घंटा बजते ही सभी लोग उठ गए। राजा भी उठ गया और बाहर आ गया। वहां पर मंत्री मौजूद था, राजा ने मंत्री से पूछा, मंत्री अभी तक सुबह नहीं हुई है क्या और सूरज अभी तक निकला क्यों नहीं है। मंत्री ने उत्तर दिया, महाराज सुबह तो हो चुकी है, परंतु सूरज नहीं निकला है, क्योंकि सूरज पूरब की ओर से निकलता है, शायद पूरब के देशों ने सूरज को रोक दिया है क्योंकि हमने उनका पानी रोक दिया था, इसलिए अब हमारे राज्य में कभी सूरज नहीं निकलेगा।

राजा बहुत चिंतित हुआ और बोला, क्या अब कभी भी हमारे देश में सूरज नहीं निकलेगा।  हम सब अंधकार में कैसे रहेंगे। इसका उपाय बताओ मंत्री।

महाराज, यदि आप नदी का पानी छोड़ दें, तो शायद वे भी सूरज छोड़ देंगे। मंत्री ने उत्तर दिया।

राजा ने तुरंत मंत्री को हुक्म दिया कि वह नदी पर बनाई गई दीवार को तुड़वाए।  मंत्री ने राजा की आज्ञा का पालन किया और कारीगरों को आदेश दिया कि दीवार को तोड़ दिया जाए। कारीगरों ने दीवार तोड़ दी और जैसे ही दीवार टूटी सचमुच सूर्योदय का समय हो चुका था और दिव्यमान सूरज चारों तरफ  अपनी लालिमा बिखेर रहा था! सूरज को उगता देख राजा बहुत खुश हुआ और मंत्री को इनाम दिया और कहा, तुम्हारी वजह से आज हम फिर सूरज को देख पाए हैं। अब हमारे राज्य में कभी अंधेरा नहीं रहेगा। मंत्री ने मासूम सा मुंह बनाकर जवाब दिया, महाराज, यह तो मेरा फर्र्ज था।

शिक्षाः इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मूर्ख के साथ अगर हम चतुराई न बरतें तो हम भी मूर्ख ही कहलाएंगे।


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