मोदी के मुकाबले में कांग्रेस के टीपू सुल्तान

By: Oct 28th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

सोनिया कांग्रेस ने वामपंथियों के साथ मिल कर मोदी से लड़ाई को भारत से लड़ाई में तबदील कर दिया है। सोनिया कांग्रेस की राजनीति अब टीपू सुल्तानों के सहारे ही चलेगी। हो सकता है कि बाबर के भारत आगमन का भी जश्न मनाया जाए। कहीं टीपू के बाद कर्नाटक सरकार इस काम में न जुट जाए। सोनिया कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। त्रेता युग के राम के अयोध्या आगमन का जवाब सोनिया कांग्रेस की तरफ से अब इन्हीं टीपुओं और बाबरों के सहारे दिया जाएगा…

कर्नाटक की सोनिया कांग्रेस ने अंततः टीपू सुल्तान को मैदान में उतारा है। हालांकि भारतीयों के लिए यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। कांग्रेस का शुरू से यही इतिहास रहा है। कई दशक पहले उसने दिल्ली की सड़कों का नाम मुगल बादशाहों के नाम पर रखने का अभियान शुरू किया था। तब दिल्ली की सड़कों पर बीसवीं शताब्दी में भी बाबर, हुमायूं, शाहजहां, जहांगीर, अकबर और औरंगजेबों ने कब्जा कर लिया था। गुरु तेगबहादुर जी को श्रद्धांजलि देने के लिए भी औरंगजेब मार्ग से होकर जाना पड़ता था। अब सोनिया कांग्रेस इस मामले में एक बार फिर सबसे अग्रणी मुद्रा में है। वह पंथनिरपेक्षता के नाम पर भारतीयता के विरोध पर उतर आई लगती है। सोलहवीं शताब्दी में बाबर काल में गिराए गए राम मंदिर का मामला, जब बीसवीं शताब्दी में तूल पकड़ने लगा, तो सोनिया कांग्रेस अपने तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों सहित बाबर के पक्ष में खड़ी हो गई और उसकी उदारता के कसीदे ही नहीं पढ़ने लगी, बल्कि अयोध्या के महाराजा रामचंद्र के अस्तित्व से ही इनकार करने लगी। यह मामला इतना आगे बढ़ा कि ये तमाम शक्तियां सुदूर तमिलनाडु के रामेश्वरम में श्रीलंका को रामेश्वरम से जोड़ने वाले रामसेतु को ही नष्ट करने के लिए एकजुट हो गईं।

जब 2017 में अयोध्या में दीपावली महोत्सव का आयोजन हुआ, तो ये सभी शक्तियां इसके विरोध में उतर आईं। लेकिन उनका यह विरोध केवल शाब्दिक विरोध तक सीमित नहीं रहा। इन शक्तियों को राम के मुकाबले एक प्रतीक की तलाश थी, ताकि भारत में उभर रही तथाकथित सांप्रदायिक शक्तियों से मुकाबला किया जा सके। अब लगता है कि इन शक्तियों ने अयोध्या के दिवाली महोत्सव का तोड़ ढूंढ लिया है। दिवाली के सांस्कृतिक महोत्सव के मुकाबले सोनिया कांग्रेस का सांस्कृतिक महोत्सव! सोनिया कांग्रेस की सरकार कर्नाटक में है। अतः यह दायित्व भी कर्नाटक सरकार को ही उठाना था। कर्नाटक सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का फैसला किया है। पिछले साल भी हेगड़े ने टीपू सुल्तान की जयंती का विरोध किया था। उनका सीधा-सीधा आरोप था कि टीपू सुल्तान अत्याचारी था और उसने हजारों हिंदुओं का कत्ल और काडागू के लोगों पर अत्याचार किया था। साथ ही इसे सोनिया कांग्रेस का चुनावी खेल बताया था। इसके विपरीत कांग्रेसी टीपू सुल्तान को स्वतंत्रता सेनानी बता रहे हैं और इन्होंने किसी स्वतंत्रता सैनानी की ही तरह इसे सम्मान देने की भी तैयारी कर ली है।

टीपू सुल्तान अठारहवीं शताब्दी में मैसूर रियासत का शासक रहा था। टीपू सुल्तान अरब के सैयद वंश से ताल्लुक रखता था। शुरुआती दौर में अरबों ने हिंदोस्तान पर हमले किए थे और भारत के कुछ हिस्सों पर कब्जा भी कर लिया था। कालांतर में अरबों के स्थान पर मध्य एशिया से आए तुर्कों व अन्य कबीलों ने कब्जा कर लिया, लेकिन इक्का-दुक्का स्थानों पर अरबों ने भी अपना कब्जा बनाए रखा। वर्तमान मैसूर में सैयद वंश के टीपू सुल्तान के राज्य की यही कहानी है। ये सभी इस्लामी राज्य दुनियावी बादशाहत का एक फर्ज जीते हुए इलाके के लोगों को इस्लाम मजहब में खींच कर लाना भी मानते थे। उसके लिए ये किसी सीमा तक भी जाने को तैयार रहते थे। टीपू सुल्तान का राज्य भी इसी कोटि में आता था। इस्लामी शासन के अवसान काल में हिंदोस्तान पर कब्जा करने के लिए इंग्लैंड और फ्रांस में होड़ मची हुई थी, तो टीपू इंग्लैंड के स्थान पर फ्रांस के पक्ष में हो गया, इसलिए कुछ वामपंथी इतिहासकारों ने उसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लोहा लेने वाला स्वतंत्रता सेनानी बना दिया।

मामला अयोध्या की दिवाली का आ खड़ा हुआ। दिवाली तो हर साल आएगी, इसलिए एक बार फिर टीपू सुल्तान की ही पुकार हुई। टीपू सुल्तान का एक और गुण है। उसका जन्मदिन दिवाली के आसपास ही 10 नवंबर को आता है। इक्ष्वाकु वंश के श्रीराम। अयोध्या के राजा। अरब के सैयद वंश के टीपू सुल्तान। मैसूर पर कब्जा करके उसके राजा। सोनिया कांग्रेस की कर्नाटक सरकार ने निर्णय किया है कि वह हर साल दिवाली के तुरंत बाद टीपू सुल्तान के जन्मदिन का सांस्कृतिक महोत्सव मनाया करेगी। भारत के महानायक श्रीराम चंद्र और सोनिया कांग्रेस के महानायक अरबी सैयद वंश के टीपू सुल्तान! क्या मुकाबला है! कर्नाटक सरकार टीपू सुल्तान की जयंती मनाने और उसे भव्यता प्रदान करने के लिए अनेक उपक्रम शुरू कर रही है। राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने दो एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया है और पांच एकड़ के लिए प्रयासरत है।

 टीपू सुल्तान के किले की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। गनीमत है कि अरब देशों से किसी को उद्घाटन के लिए नहीं बुला लिया गया। ऐसा भी नहीं है कि सोनिया कांग्रेस की कर्नाटक सरकार ने अपना यह अनोखा राग अयोध्या की दिवाली की भव्यता और उसमें उमड़े जन समूह के उल्लास से झुंझला कर छेड़ दिया हो। सोनिया कांग्रेस ने वामपंथियों के साथ मिल कर मोदी से लड़ाई को भारत से लड़ाई में तबदील कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी अरसे से यह मांग करती आ रही है कि जम्मू-कश्मीर में अलग झंडा समाप्त किया जाना चाहिए। सोनिया गांधी की कर्नाटक सरकार ने तुरंत मांग कर डाली कि कर्नाटक को अपना अलग झंडा रखने की अनुमति दी जाए। उसका स्वरूप और औचित्य बताने के लिए राज्य सरकार ने बाकायदा एक कमेटी का गठन कर दिया है। सोनिया कांग्रेस की राजनीति अब टीपू सुल्तानों के सहारे ही चलेगी। हो सकता है कि बाबर के भारत आगमन का भी जश्न मनाया जाए। कहीं टीपू के बाद कर्नाटक सरकार इस काम में न जुट जाए। सोनिया कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। त्रेता युग के राम के अयोध्या आगमन का जवाब सोनिया कांग्रेस की तरफ से अब इन्हीं टीपुओं और बाबरों के सहारे दिया जाएगा। अलग झंडे की मांग कर ही दी है। आगे आगे देखिए होता है क्या!

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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