योगी का राजनीतिक आरोहण

By: Oct 9th, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

कुलदीप नैयरअगर भाजपा यूपी में विकास करती है, तो भी 2019 का आम चुनाव सांप्रदायिक धु्रवीकरण के जरिए जीतने की कोशिश होगी। यही कारण है कि देश की राजनीति में चर्चित हो चुके योगी की नियुक्ति संभव हुई। उनके नाम पर हिंदू तथा ओबीसी मतों को हासिल किया गया है। गोरखपुर से सन 1998 से पांच बार सांसद रह चुके योगी 2014 में महंत बनाए गए थे। गोरखपुर मठ दशकों से राजनीतिक मामलों में भागीदारी करता रहा है। अब तक जो बात प्रमुखता से सामने नहीं आई, वह यह है कि किस तरह नब्बे के दशक के अंत तक योगी प्रख्यात हो गए थे…

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि वह गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में ड्यूटी करने के लिए एक माह में पांच दिन का अवकाश लेंगे। टेलीविजन नेटवर्क ने उनके भाषण का यह भाग एक बार प्रसारित किया। या तो भारतीय जनता पार्टी ने यह स्टोरी बंद करने के लिए चैनलों को बाध्य किया अथवा मुख्यमंत्री ने स्वयं इतना शर्मिंदा किया कि उन्होंने यह वक्तव्य वापस ले लिया। यही कारण है कि यह स्टोरी प्रिंट मीडिया में नहीं छपी। योगी ने जो कहा था, वह यह था कि वह मुख्य पुजारी के रूप में काम करते रहेंगे तथा धार्मिक कर्त्तव्य राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जारी रखेंगे। लेकिन यह केवल लोगों को बहलाने के लिए है। अन्यथा वह मुख्यमंत्री के साथ-साथ मुख्य पुजारी भी बने हुए हैं। हालांकि परेशान करने वाली जो स्पष्ट चीज है, वह यह है कि हिंदू व मुसलमानों के बीच खाई और बढ़ रही है। सांप्रदायिक तनाव का वातावरण बन गया है। आधे से ज्यादा उत्तर प्रदेश पुलिस के पहरे में है, क्योंकि अधिकतर स्थानों पर दंगे जैसी स्थिति है। जहां तक केंद्र की भाजपा सरकार का प्रश्न है, उसने स्थिति पर चिंता प्रकट की है। दुर्भाग्य से, मुख्यमंत्री योगी खुले रूप में महंत की ड्यूटी दे रहे हैं और जैसा कि वह चाहते हैं, वह मुख्यमंत्री के रूप में भी काम कर रहे हैं। स्थिति विकट है और विपक्षी पार्टियों ने ठीक ही आलोचना की है कि योगी ने मुख्यमंत्री कार्यालय का भगवाकरण कर दिया है। स्पष्ट रूप से आएसएस का इतना तगड़ा समर्थन है कि मुख्यमंत्री उससे दूर हट सकते हैं जो संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण है, परंतु इससे भौंहें नहीं तरेरनी चाहिएं। हम सभी जानते हैं कि योगी की मुख्यमंत्री के रूप नियुक्ति राजनीतिक पर्यवेक्षकों के लिए हैरान करने वाली थी।

चुनाव प्रचार के दौरान स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यतः विकास के एजेंडे की बात की थी। इस तथ्य कि सांप्रदायिक भाषणों के जरिए हिंदू वोट हासिल की कोशिश की गई, के बावजूद यह सत्य था। इस दौरान कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा अथवा घटना भी नहीं हुई, जैसा कि इससे पूर्व 2014 के राष्ट्रीय चुनाव में हुआ था। उस वक्त जो साफ हुआ था, वह यह था कि वादे के अनुकूल अगर भाजपा यूपी में विकास करती है, तो भी 2019 का आम चुनाव सांप्रदायिक धु्रवीकरण के जरिए जीतने की कोशिश होगी। यही कारण है कि देश की राजनीति में चर्चित हो चुके योगी की नियुक्ति संभव हुई। उनके नाम पर हिंदू तथा ओबीसी मतों को हासिल किया गया है। गोरखपुर से सन 1998 से पांच बार सांसद रह चुके योगी 2014 में महंत बनाए गए थे। गोरखपुर मठ दशकों से राजनीतिक मामलों में भागीदारी करता रहा है। अब तक जो बात प्रमुखता से सामने नहीं आई, वह यह है कि किस तरह नब्बे के दशक के अंत तक योगी प्रख्यात हो गए थे। क्षेत्र की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले ऊंची जाति के माफिया को बदलकर धीरे-धीरे ऐसा किया गया। इस माफिया का राजनीतिक दलों से गहरा संबंध था, परंतु इनका कोई सांप्रदायिक गठजोड़ नहीं था। इस माफिया के हश्र के कारण योगी को स्थान मिला। अब जाति आधारित माफियाकरण धार्मिक अपराधीकरण में बदल गया है। राजपूत होने के कारण योगी को यह लाभ भी मिल जाता है कि उच्च जातियों का उन्हें समर्थन मिल जाता है। इसके अलावा ओबीसी तथा दलितों से गठजोड़ करके संतुलन बनाया गया है। इस तरीके से उन्हें 26 की उम्र में गोरखपुर से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया तथा इससे आगे एक इतिहास है। प्रमुख शक्ति बनने तथा राजनीति के सांप्रदायिकरण के लिए क्षेत्र में योगी के अलावा भाजपा के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसी कारण वह पहले लोकसभा चुनाव जीती और बाद में राज्य विधानसभा का चुनाव भी उसने जीत लिया।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह का मानना था कि राज्य में कोई विकासकारी चेहरे वाला नेता आगे लाया जाए, परंतु आरएसएस ने मोदी व शाह को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार किया। योगी ही राज्य का नेतृत्व क्यों करें, इसको लेकर कई कारण हैं। भाजपा का गैर-ब्राह्मण-हिंदुत्व मजबूत करने का प्रयास 2000 में देखा गया। ऐसा न केवल यूपी में किया गया, बल्कि देश कई राज्यों में किया गया। जबकि अस्सी और नब्बे के दशक में भाजपा को ऊंची जाति वाली हिंदू पार्टी के रूप में देखा जाता था, नब्बे के दशक में यूपी में पार्टी के साथ गैर यादव ओबीसी तथा गैर जाट दलितों को जोड़ने का प्रयास हुआ। इनका राज्य की जनसंख्या में एक बड़ा हिस्सा है तथा इन पर समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव रहा है। मुख्यमंत्री को गोरखपुर अस्पताल में बच्चों के मौत तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आंदोलन कर रहे छात्रों के मसलों को तुरंत सुलझाना चाहिए। हाल ही में राज्य में भारत की विरासत माने जाने वाले ताज महल को पर्यटक आकर्षणों की सूची से हटा दिया गया है, जिससे विवादों के अध्याय में बढ़ोतरी हुई है। अंशकालीन प्रधानमंत्री होने का हमारा कड़वा अनुभव रहा है। उन्होंने अपने दलों के बहुत कुछ किया तथा देश की समस्याओं के समाधान के लिए बहुत कम समय दिया। इस बात को योगी व भाजपा को याद रखना होगा क्योंकि उन्होंने राज्य में चुनाव विकास के वादे पर जीता है। मुख्यमंत्री कार्यालय अगर अस्थायी प्रबंधन की तरह दिखने लगे, तो यह सबसे बुरी बात है। एक माह में पांच दिनों के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय छोड़कर गोरखपुर मठ में दल-बल के साथ रहना उचित नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है कि धार्मिक कार्यों के लिए सार्वजनिक धन का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र की अवधारणा को जो क्षति हुई है, उसके लिए कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की जानी चाहिए। इससे भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि योगी पहले एक मुख्यमंत्री हैं अथवा एक महंत?

ई-मेलः kuldipnayar09@gmail.com


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