रैगिंग का खेल

By: Oct 9th, 2017 12:02 am

(रूप सिंह नेगी, सोलन )

शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की समस्या किसी समय आम बात हुआ करती थी। तब रैगिंग के नाम पर जूनियर्ज को शारीरिक व मानसिक तौर पर इतना प्रताडि़त किया जाता था कि कई बच्चों को पढ़ाई तक छोड़नी पड़ती थी। कुछ युवा तो उस बेइज्जती को झेल नहीं पाने के कारण आत्महत्या तक करने मजबूर हो जाते थे। उन तमाम प्रतिकूल अनुभवों के आधार पर सरकारों व न्यायालयों के संज्ञान से रैगिंग को रोकने के लिए शिक्षण संस्थानों में सख्त नियम लागू किए गए। इन नियमों के प्रभाव से शिक्षण संस्थानों में  रैगिंग पर काफी हद तक नकेल कसी जा चुकी है। लगता है कि निजी संस्थानों में अभी तक रैगिंग पर नकेला कसा जाना बाकी है। हाल में शिमला स्थित एक निजी शिक्षण संस्थान में कथित तौर पर रैगिंग का मामला सामने आना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। हालांकि यह देखा जाना राहत की बात है कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के मामले काफी हद तक थम गए हैं। दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग के मामलों का न थमना दुखद व निंदनीय है। निजी शिक्षण संस्थानों को मात्र निर्देश जारी करना ही काफी नहीं होगा, बल्कि सख्त कार्रवाई करने का समय आ गया है। सरकार व संबंधित संस्थाओं को उन निजी शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद्द करनी चाहिए, जो रैगिंग रोक पाने में असमर्थ हों। इसके साथ ही विभिन्न संस्थानों में गठित एंटी रैगिंग समितियों की भी स्पष्ट जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए, ताकि रैगिंग के मामलों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App