रोहतांग सुरंग संघर्ष के गुमनाम नायक

By: Oct 12th, 2017 12:02 am

डा. चंद्र मोहन परशीरा

 लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने 27 मई, 1999 के दिन अर्जुन गोपाल को संदेश भिजवाया कि उनकी सरकार ने रोहतांग सुरंग के निर्माण को स्वीकृति दे दी है। उन्होंने अगले वर्ष लाहुल आकर इस सुरंग की स्वीकृति की विधिवत घोषणा करके लाहुल वासियों को जीवन की एक नई सुबह भेंट की…

स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने मनाली की तरफ से लाहुल को जोड़ने के लिए किसी वैकल्पिक मार्ग की आवश्यकता को माना। उन्होंने रोहतांग तक रोप-वे की इच्छा व्यक्त की थी, मगर चीन के साथ देश युद्ध में उलझ गया और इस विषय पर अधिक चर्चा नहीं हो सकी। उनके पश्चात इंदिरा गांधी ने रोहतांग के भीतर टनल खोदने की मांग को अधिमान दिया था, लेकिन वह प्रयास भी किसी परिणाम तक नहीं पहुंच पाया। समय आगे बढ़ता गया और एक दिन लाहुल-स्पीति के अर्जुन गोपाल उर्फ ताशी दावा, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अग्रणी कार्यकर्ता थे, ने अपने मित्र ट्रांस हिमालय के प्रख्यात इतिहासकार छेरिंग दोरजे तथा गौशाल गांव के अभय चंद राणा से सुरंग के विषय पर बात की। छेरिंग दोरजे ने रांची विश्वविद्यालय के प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर डा. राम दयाल मुंडे से इसकी चर्चा की, जिन्होंने उन्हें और अधिक प्रेरित किया तथा भविष्य की योजना बनाने में सहायता की। उन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बन चुके थे और संघ के विदेश विभाग का कार्य देखने वाले चमन लाल अटल जी और अर्जुन गोपाल दोनों के घनिष्ट मित्र थे। उन्हीं से अर्जुन गोपाल ने अपनी सारी बात की और रोहतांग सुरंग के विषय को लेकर अटल जी से भेंट कराने की प्रार्थना की।

अटल जी से इन लोगों की पहली भेंट अविस्मरणीय थी। इसके पश्चात चमन लाल ही अटल जी से अर्जुन गोपाल और उनके दो साथियों की विभिन्न बैठकों के आयोजन कराने के निमित बने। उन्होंने सुझाव दिया कि इतने बड़े कार्य के लिए व्यक्तिगत आग्रह के स्थान पर किसी संस्था का निर्माण करके मिलना चाहिए, तो तुरंत ही अर्जुन गोपाल ने गौशाल गांव के श्रवण कुमार से आग्रह किया कि वह एक सामाजिक संस्था के निर्माण कार्य में लगें। इसके फलस्वरूप शीघ्र ही ‘लाहुल-स्पीति और पांगी जनजातीय सेवा समिति’ के नाम से एक संस्था बनाई गई। इस संस्था में अर्जुन गोपाल अध्यक्ष, छेरिंग दोरजे महासचिव और गौशाल गांव के अभय चंद राणा कोषाध्यक्ष बने। शेष कुछ लोगों को सदस्य बनाया गया। अटल बिहारी वाजपेयी से इन तीनों की दूसरी बैठक इसी संस्था के नाम से हुई तथा पहला पत्राचार भी इसी संस्था के नाम से किया गया। चमन लाल  ध्यान रखते थे कि इन्हें अटल जी से तब मिलाया जाए, जब उनके पास इनके लिए अधिक से अधिक समय हो। अटल जी अत्यंत गंभीरता के साथ इनकी बातें सुनते थे। पार्श्व में उन्हीं दिनों कारगिल युद्ध की पटकथा दूर पाकिस्तान में लिखी जा रही थी। इसी बैठक में इन तीनों ने अटल जी से कहा कि सुरंग का निर्माण सामरिक रूप से भारत को सुरक्षित कर सकता है। ऐसा सुनते ही अटल जी ने स्वयं उस समय के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज को फोन किया और इन तीनों से मिलने का आग्रह किया। ये तीनों वहीं से जार्ज फर्नांडीज के पास चले गए। छेरिंग दोरजे ने रक्षा मंत्री को संपूर्ण स्थान का मानचित्र खींच कर दिखाया। जार्ज फर्नांडीज व्यक्तिगत रूप से चीन की नीतियों के कड़े विरोधी थे और उन्होंने भी तुरंत ही इनकी बातों पर संज्ञान लिया।

इन तीनों का यह संघर्ष निरंतर चार वर्षों तक चलता रहा और इस दौरान यह छह बार अटल जी से मिले। चमन लाल जी समय निर्धारित करते और यह अपनी बात रखते तथा अटल जी से शीघ्रता का निवेदन करते। इसी दौरान सुरंग के विरोध में भी कई स्वर उठे, जिनसे एक बार तो यह कार्य असंभव सा दिखने लगा। अर्जुन गोपाल ने भी हिम्मत नहीं हारी और अपने दोनों साथियों को लेकर रक्षा मंत्रालय और बीआरओ के कई अधिकारियों से वार्तालाप किया। कुल मिलाकर टनल का यह संघर्ष केवल दिल्ली जाकर गर्मी में तपने और अटल जी से मुलाकात तक सीमित नहीं था, अपितु कई दिशाओं में यह संघर्ष अग्रसर रहा था। निःसंदेह परिवार अपने आप में एक बड़ा विषय था, जिसे छोड़ कर तीनों कई-कई दिनों तक घर से बाहर रहते थे। दूसरी समस्या यात्राओं में आने वाले खर्च से जुड़ा था, क्योंकि इनमें से कोई भी धन्ना सेठ नहीं था। समय के साथ इन तीनों को अन्य प्रबुद्ध लोगों का भी साथ मिला। ठोलोंग के ही विख्यात चित्रकार सुख दास गुरु भी एक बार इनके साथ दिल्ली अटल जी से मिलने गए। राम नाथ साहनी ने दारचा सुम्दो से लेकर जांस्कर तक के मार्ग को खोलने के लिए अटल जी से पत्राचार किया। अंत में यह सद्कार्य सफल हुआ और प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने 27 मई, 1999 के दिन अर्जुन गोपाल को संदेश भिजवाया कि उनकी सरकार ने सुरंग को स्वीकृति दे दी है और फिर उन्होंने अगले वर्ष लाहुल आकर इस सुरंग की स्वीकृति की विधिवत घोषणा करके लाहुल वासियों को जीवन की एक नई सुबह भेंट की। निसंदेह अर्जुन गोपाल के मार्गदर्शन, जिजीविषा, दूरदर्शिता और उनके प्रारंभिक दोनों साथियों के तप से अब कुछ ही दिनों में रोहतांग सुरंग खुलने वाली है। अंततः वह सुबह आ रही है, जिसका वर्षों से इंतजार था। मुझे आशा है कि जिस दिन सुरंग खुलेगी सरकारी और राजनीतिक शोर गुल से परे लाहुल की जनता सुरंग के द्वार पर छेरिंग दोरजे तथा अभय चंद राणा का अभिषेक करेगी। आदरणीय अर्जुन गोपाल ईश्वर में लीन हो चुके हैं, इसलिए यह लाहुल की जनता पर छोड़ देते हैं कि वह उस दिन उनका सम्मान कैसे करती है। रोहतांग सुरंग के बड़े लक्ष्य को साधने के लिए बिना एक पैसे का चंदा लिए, अपने सीमित साधनों से इन तीन लोगों ने लाहुल से निकल कर दिल्ली जैसी महानगरी में विभिन्न प्रकार के कष्ट सहते हुए हम लोगों के लिए जो विराट कार्य किया है, उसके लिए हम सदैव इनके आभारी रहेंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App