रोहिंग्या मसले पर सांप्रदायिक रंग

By: Oct 2nd, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

कुलदीप नैयररोहिंग्या के पलायन के मामले ने सरकार को शरणार्थियों के मसले पर फिर विचार के लिए विवश किया है तथा एक मानवीय मसले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। चिंताजनक बात यह है कि यह मसला सांप्रदायिक रंग ले रहा है तथा यह हिंदू बनाम मुसलमान मुद्दा बन गया है। पहले से ही ज्वालामुखी पर बैठे पश्चिम बंगाल को स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से पहले ही समझदारी से संभालना होगा…

कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल पर ढाई दशकों तक राज किया। वह सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ निरंतर लड़ते रहे। हैरानी की बात है कि आरएसएस ने कैसे यहां घुसपैठ कर ली और व्यवहार में वह राज्य को अपने एजेंडे पर ले चुका है। वर्तमान में राज्य में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन उसके समर्थक ही स्वीकार कर रहे हैं कि वे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। आरएसएस राज्य के दूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुंच चुका है। उसकी प्रातःकालीन शाखाएं हर पार्क में हो रही हैं। यह कैसे व क्यों हुआ, यह अध्ययन का एक विषय है। साम्यवाद व आदर्शवाद वह हैं, जिनका वाम दल अनुसरण करते रहे हैं। आरएसएस की शिक्षाएं इसके बिलकुल उलट हैं जो कि अनुदारवादी हैं। समृद्ध बंगाली संस्कृति आज आरएसएस व साम्यवादियों के बीच ठूंस दी गई है। ममता पर आरोप है कि उन्होंने उस समय मुसलमानों के तुष्टिकरण का प्रयास किया, जब सरकार ने निश्चित समय से बाहर दुर्गा माता की मूर्तियों के विसर्जन पर पाबंदी लगा दी। खबरों के अनुसार सरकार को आशंका थी कि दुर्गा माता की मूर्तियों के विसर्जन को निकलने वाले जुलूस तथा मुहर्रम के जुलूस को एक साथ निकालने की अनुमति देने से दोनों जुलूस  एक ही मार्ग पर आमने-सामने आ जाएंग। इससे कोई अनहोनी हो सकती है तथा प्रशासन को इससे निपटना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि कलकत्ता हाई कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप किया।

शायद जिस बात ने ममता को पाबंदी लगाने के लिए विवश किया, वह है राज्य के कई जिलों में पिछले कुछ समय से हो रहे सांप्रदायिक दंगों की कड़ी। मुहर्रम के जुलूस के रास्तों को लेकर उठे विवादों ने भी इस मसले को भड़काने का काम किया। इसके अलावा कट्टरवादी हिंदू समूहों, जिनमें बंगाली तथा गैर बंगाली शामिल हैं, के आरोपों ने भी बांग्लादेशी घुसपैठियों तथा इस्लामी आतंकियों के विरोध की जमीन तैयार की। इन सभी बातों ने मिलकर सांप्रदायिक हांडा तैयार किया, जो पहले से ही उबल रहा था। अच्छी बात यह हुई कि पिछले कुछ समय में बांग्लादेश से हिंदू लोग धीरे-धीरे पलायन कर भारत आ चुके हैं। उच्च जातियों के हिंदू, जो कि पश्चिमी पाकिस्तान से देश के आजाद होने से पहले बांग्लादेश का हिस्सा थे, पलायन कर भारत आ चुके हैं। उनके आज भी दो घर हैं, एक बंगाल में तथा दूसरा बांग्लादेश में। उनके बच्चे भारतीय स्कूलों में पढ़ते हैं, उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली है तथा कुछ मामलों में वे भारत के नागरिक भी बन चुके हैं। हालांकि बढ़ता इस्लामी कट्टरवाद और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे निरंतर हमलों के कारण पिछले एक दशक में फिर से पलायन शुरू हुआ है। आजीविका कमाने में विफल आर्थिक रूप से निर्धन लोग सीमावर्ती जिलों में आ गए हैं और छोटे-छोटे काम करके मुश्किल से निर्वाह कर रहे हैं। यह समझ में आना चाहिए कि बंगाली बाहरी मुसलमानों को लेकर मन में आक्रोश रखते हैं। इसी स्थिति को भांपते हुए आरएसएस ने अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए इस मसले का दोहन शुरू किया है।

इसी बीच बांग्लादेश को पलायन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। म्यांमार से मुस्लिम अल्पसंख्यक वहां आ रहे हैं। वहां की सरकार ने मानवीय आधार पर इन शरणार्थियों को आश्रय उपलब्ध करवाया है, परंतु एक सीमा के बाहर वह भी ज्यादा मदद नहीं कर सकती। संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक के अनुसार इस वर्ष अगस्त महीने में म्यांमार से 4,80,000 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में पलायन कर आ चुके हैं। इससे उनकी देखरेख का बोझ बांग्लादेश सरकार पर बढ़ा है। अब तक वहां से सात लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में आ चुके हैं। 1982 के म्यांमार नागरिकता कानून के अनुसार रोहिंग्या लोगों को नागरिकता का हक नहीं दिया जा सकता है। म्यांमार सरकार उन्हें पड़ोसी बांग्लादेश से गैर कानूनी ढंग से आए अप्रवासी मानती है।  रोहिंग्या के पलायन ने नई दिल्ली के समक्ष भी एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है। इन लोगों में से कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों की सीमा से भारत में घुस आए हैं। इन राज्यों की एक लंबी सीमा म्यांमार से लगती है। केंद्र सरकार ने कोर्ट में यह तर्क पेश किया है कि इन लोगों के पाकिस्तानी आतंकवादी गुटों से संबंध हो सकते हैं, इसलिए इन्हें भारत में शरण नहीं दी जा सकती। इसके बावजूद भाजपा सांसद वरुण गांधी ने म्यांमार की हिंसा से बच निकल आए इन रोहिंग्या प्रवासियों को शरण देने की वकालत की है। वरुण गांधी का यह विचार केंद्र सरकार के रुख से मेल नहीं खाता है। वरुण गांधी ने नवभारत टाइम्स में लिखे एक लेख में कहा है कि भारत को इन रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजना चाहिए, बल्कि इनके साथ मानवीय ढंग से व्यवहार करना चाहिए। इस मसले के कारण भारत की सियासी फिजाओं में भी जोरदार बहस चल निकली है। वरुण की पैरवी के प्रत्युत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने कहा है कि उनका यह दृष्टिकोण भारत के हितों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि जो राष्ट्रीय हितों की चिंता करता है, वह कभी ऐसा बयान नहीं देगा। केंद्र सरकार ने हाल में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह कोर्ट को सबूत पेश करेगी।

सरकार के अनुसार कुछ रोहिंग्या आतंकवादियों के पाक समर्थित आतंकवादी गुटों से संबंध हैं। भारत सरकार इन्हें अवैध अप्रवासी मानती है तथा उसका कहना है कि वह इन करीब 40,000 रोहिंग्या लोगों को वापस भेजेगी। सरकार के इस अभियान को चुनौती देते हुए दो रोहिंग्या याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में पक्ष रखा है कि उनका समुदाय शांतिप्रिय है तथा उनमें से अधिकतर का किसी भी आतंकी गुट या गतिविधि से संबंध नहीं है। नई दिल्ली को इस शरणार्थी समस्या का सामना निर्लिप्त भाव से करना है। जम्मू में कश्मीरी पंडित तथा कोलकाता व गुवाहाटी में बांग्लादेशी मुसलमान हैं। ऐसा ही मसला श्रीलंका के तमिलों का है जो तमिलनाडु में शरण लिए हुए हैं। छोटे-छोटे झगड़े पहले से हो रहे हैं तथा गंभीर समस्या पैदा कर रहे हैं। लेकिन रोहिंग्या के पलायन के मामले ने सरकार को शरणार्थियों के मसले पर फिर विचार के लिए विवश किया है तथा एक मानवीय मसले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। चिंताजनक बात यह है कि यह मसला सांप्रदायिक रंग ले रहा है तथा यह हिंदू बनाम मुसलमान मुद्दा बन गया है।

पहले से ही ज्वालामुखी पर बैठे पश्चिम बंगाल को स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से पहले ही समझदारी से संभालना होगा। हिंदुत्ववादी तत्त्वों के हमले से निपटने के लिए सेक्यूलर शक्तियों को एक होना होगा। हमारी विरासत बहुलतावाद है तथा इस सार को जीवित रखना होगा। गैर भाजपा तथा समविचारक शक्तियों को मजबूत होती सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए एक साथ आना होगा। चूंकि सभी क्षेत्रों में हिंदू कट्टरवादियों का प्रभाव बढ़ रहा है, इसलिए यह काम काफी चुनौतीपूर्ण होगा। यदि हम चाहते हैं कि संप्रदायवाद का बिस्तर गोल हो जाए तथा बहुलतावाद का आदर्श फिर कायम हो, तो धर्मनिरपेक्ष ताकतों को जनता से जुड़ना होगा। साम्यवादी यह जता रहे हैं कि वे अकेले ही ऐसी ताकतों का मुकाबला कर रहे हैं। कांग्रेस भी निरंतर यही कर रही है, चाहे वह वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अप्रासंगिक लगती है।

ई-मेलः kuldipnayar09@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App