लक्ष्मी प्राप्ति का अचूक उपाय श्री सूक्त
…गतांक से आगे
श्री सूक्तम :
गंधद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीम सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियं ॥ 9॥
( जिनका प्रवेशद्वार सुगंधित है, जो दुराधर्षां तथा नित्य पुष्ठा हैं और जो गोमय के बीच निवास करती हैं, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मी देवी का मैं अपने घर में आह्वान करता हूं। )
मनसः काम मकुतिम वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमनस्य मई श्री श्रयतां यशः ॥ 10॥
( मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो, गो आदि पशुओं एवं विभिन्न अन्नों-भोग्य पदार्थों के रूप में या यश के रूप में श्री देवी हमारे यहां आगमन करें।)
कर्दमेन प्रजा भूता मई संभव कर्दम। श्रीयम वासय में कुले मातरम पद्ममालिनीम् ॥ 11॥
( लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि आप हमारे यहां उत्पन्न हों तथा पद्मों की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी देवी को हमारे कुल में स्थापित करें।)
आपः सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे। नि च देवीम मातरम श्रियम वासय में कुले॥ 12॥
(जल स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करे। लक्ष्मी पुत्र चिक्लीत आप भी मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मी देवी का मेरे कुल में निवास कराएं।)
आर्द्रां पुष्करणीम् पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्। चंद्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वाह॥ 13॥
(हे अग्ने! आर्द्र स्वभाव, कमल हस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान शुभ्र कांति से युक्त स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी का मेरे यहां आह्वान करें।)
आर्द्रा यः करिणीम् यष्टिं सुवर्णाम् हेममालिनीम्। सुर्याम् हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वाह।। 14॥
( हे अग्ने! जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलंबन प्रदान करने वाली यष्टि रूपा, सुंदर वर्ण वाली, सुवर्णमालधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिए आह्वान करें।)
ताम म आवाह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्याम् हिरण्यम प्रभूतं गावो दाशयो श्वान विंदेयं पुरुषानहम॥ 15॥
( हे अग्ने! कभी नष्ट न होने वाली उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिए आह्वान करें, जिनके आगमन से बहुत सा धन, गउएं, दास, अश्व और पुत्रादि हमें प्राप्त हों।)
यः शूचीः प्रयतो भूत्वा जुहुयादज्या मन्वहम्। सूक्तम पंचदसर्च च श्रीकामः सततं जपेत्॥ 16॥
( जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियां दे तथा इन पंद्रह ऋचा वाले श्री सूक्त का निरंतर पाठ करें।)
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