लिखना महिला का संवैधानिक अधिकार है

By: Oct 8th, 2017 12:05 am

आसान नहीं है एक महिला का लेखिका बनना। जिंदगी के अंधसागर में गोते खाती, कुछ लिखने के लिए एक सूखी जमीन का टुकड़ा तलाशती है, अपने सुख और आराम के क्षणों को चुराती है, तब कहीं महिला ‘एक लेखिका’ बनती है। एक महिला के पास लिखने के लिए बहुत कुछ है, कमी है तो सिर्फ  वक्त की। समय रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाता है, फिर भी महिला लिख रही है। अकसर सृजनशील महिलाएं सहयोग के नाम पर अधिकतर यही कहती हैं कि उन्हें परिवार का या पति का भरपूर सहयोग रहता है, तभी वे सृजन कर पाती हैं। मगर वह सहयोग किस तरह का है, यह कोई भी महिला स्पष्ट तौर पर नहीं बता पाती। मेरी दृष्टि में अगर कोई सृजनशील महिला घर की तमाम जिम्मेदारियों को परंपरागत तौर पर निभाते हुए व दफ्तर की दोहरी जिम्मेदारियों के बाद लेखन में भी सक्रियता के लिए परिवार का योगदान मानती हैं तो मैं ऐसे शाब्दिक योगदान को खारिज करती हूं। मात्र ‘लिखने से न रोकना’ परिवार का किसी भी लेखिका के लिए योगदान कदापि नहीं हो सकता क्योंकि लिखना पुरुष की ही तरह महिला का भी संवैधानिक अधिकार है। हां, अगर उसे घर की जिम्मेदारियों से मुक्त कर लिखने के लिए बेफिक्र वक्त दिया जाता है तो मैं मानूंगी कि परिवार व सामाजिक परिवेश उसका साथ निभाते हुए लेखन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। पर ऐसा सहयोग किसी विरली महिला को ही मिलता होगा।

मैं स्वयं घर-परिवार, दफ्तर, समाज की जिम्मेदारियों के बाद बचा वक्त लेखन को देती हूं। पति व बच्चे निरंतर लिखते रहने को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही मेरी सृजनात्मक उपलब्धियों से उत्साहित भी रहते हैं। बचपन से स्वप्रेरणा से लिखती आई हूं। ‘स्त्री विमर्श’ एक मुख्य स्वर बनकर उभरा है। फिर भी अधिकांश लेखिकाओं के लिए घर और दफ्तर के बाद ही लेखन तीसरा मोर्चा है जहां उसे पूर्वाग्रहों से दो-चार होना पड़ता है। अकसर एक लेखक वर्ग, स्त्री लेखन को नकारात्मकता से भरा मानते हैं। जबकि मैं उसे नकारात्मक नहीं मानती, वे वास्तविक चीजों को अपनी सृजनात्मकता में लाती हैं। महानता के नाम पर स्त्रियों को समाज ने आज तक बर्बाद ही किया है। स्त्री को इसी महान बनाने की आड़ में उसका शोषण होता रहा है। इसके अलावा भी समकालीन लेखिकाओं के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं।

बात चाहे आंचलिकता की हो, मौलिकता की हो, उसका लेखन भावुकता से भरा है तो उसमें वैचारिकता की कमी दर्शाई जाती है। यदि तातर्क हो उसमें रूखापन दिखता है, अभिव्यक्ति सांकेतिक हो तो उसमें बोल्डनैस की कमी दर्शाई जाती है और अगर उसका लेखन बोल्ड है तो उसे उसके चारित्रिक दोष की तरह देखा जाता है। लेखिका के चिंतन को स्त्रीवादी होने का तगमा भी अकसर लगता है। अपनी बात कहूं तो मैं स्वयं को स्त्रीवादी लेखिका नहीं मानती। वास्तव में मैं किसी भी तरह के ‘वाद’ के पक्ष में नहीं हूं। आंचलिकता अतीव महत्वपूर्ण होती है। आंचलिक गीत, कथा-कहानियां, किंवदंतियां हमारे इतिहास को सहेज कर रखती हैं और अपनी संस्कृति को समृद्धशाली बनाती हैं। हालांकि स्त्री हर मुद्दे पर आज बेबाकी से लिख रही है, मगर इतिहास गवाह है कि मीरा से लेकर महादेवी वर्मा तक की लेखिकाओं को अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की कीमत अपने निजी जीवन पर सार्वजनिक बहस से चुकानी पड़ी है। तस्लीमा नसरीन को जहां बेघर होना पड़ा, गौरी लंकेश को वहीं अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा। एक चुनौती महिला के समक्ष यह भी है कि उसके लेखन का पुरुषीकरण किया जाता है। महिला लेखिकाएं भी महिला वीरता की गाथा करते पुरुषों से तुलना करने से न चूक पाईं। उदाहरण के तौर पर झांसी की रानी पर वीर रस की सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रचलित व सुप्रसिद्ध पंक्तियां किसने नहीं गुनगुनाई होंगी :

बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

भोगे हुए व देखे या समझे हुए यथार्थ को ईमानदारी से निर्द्वंद्व, निःसंकोच कह पाने के लिए स्त्री को सम्मान, देवी, त्याग जैसे महिमामंडन के तिलिस्म को तोड़ना होगा जिसके लिए मैं समझती हूं कि अभी वक्त लगेगा। कुछ भी हो, नारी का लिखना अत्यंत आवश्यक है। वह लिखेगी, तभी उसके मन का लावा वाष्प रूपी शब्दों में बाहर निकलेगा। तभी उसकी वास्तविक स्थिति परिलक्षित होगी। पुरुष, नारी को वैसे भी अपनी ही दृष्टि से समझता है। पुरुष के लिए नारीत्व अनुमान है, परंतु नारी के लिए अनुभव।

-कंचन शर्मा, मंडी

परिचय

* नाम : कंचन शर्मा

* जन्म : मंडी

* पुस्तकें : 1. काव्य संग्रह ‘रवितनया’ 2. ‘भारत एक विमर्श’ समसामयिक मुद्दों पर आधारित पुस्तक

* सम्मान : 1. राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविद द्वारा हिंदी में मौलिक लेखन के लिए ‘राजभाषा गौरव सम्मान’ 2. 2 अक्तूबर 2017 को स्वच्छता के लिए उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सम्मान, 3. विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा ‘हंगरी’ में ‘साहित्य गौरव पुरस्कार’ 4. काव्य संग्रह ‘रवितनया’ के लिए इलाहाबाद में सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान, 5. अहिंसा रत्न सम्मान, यति सम्मान, पारस रत्न सम्मान मध्यप्रदेश, यूपी व छत्तीसगढ़ की संस्थाओं से


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