विलुप्त हो रही भरमौर की विचित्र परंपराएं

By: Oct 14th, 2017 12:05 am

गद्दी पुरुषों द्वारा पारंपिरक वेशभूषा चोली-डोरा पहनकर डंडारस नृत्य करना भी प्रायः विलुप्त होने की दहलीज पर आ पहुंचा है। मणिमहेश यात्रा धार्मिक यात्रा न होकर पिकनिक स्पॉट ज्यादा बनती जा रही है…

आज हर वर्ग के युवा लोग धन एकत्रित करने के चक्कर में अपने संस्कारों से मुंह फेर रहे हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक विरासतें, संस्कार, पकवान, पहरावे एवं व्यवसाय विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। सदियों से चली आ रही मणिमहेश यात्रा एवं भरमौर जातर को ही लें तो सिर्फ औपचारिकताएं मात्र ही रह गई हैं। इन प्रसिद्ध साप्ताहिक मेलों में महिलाओं द्वारा पारंपरिक परिधान में डंगी व धुरैई औपचारिकता मात्र हो रही है, प्रत्येक गांव की महिलाओं द्वारा डाला जाने वाले हेबड़ा मात्र दादी-नानी की कहानियों में रह गया है। हेबड़ा एक गांव की महिलाओं द्वारा दूसरे गांव के लोगों को चिढ़ाने व व्यंग्य कसने के लिए किया जाता था, जो आज विलुप्त हो गया है। गद्दी पुरुषों द्वारा पारंपिरक वेशभूषा चोली-डोरा पहनकर डंडारस नृत्य करना भी प्रायः विलुप्त होने की दहलीज पर आ पहुंचा है। मुख्यालय भरमौर से सटे गांव संचूई, मलकौता, पनसेई, सेरी, मोसन एवं भरमौर के लोग पहले लगभग हर मेले में बारी-बारी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे, जबकि संचूई-मलकौता के गांव के लोग इकट्ठे होकर भरमौर के पुरुष डंडारस को धकेल कर मंच से हटाकर स्वयं नृत्य करते थे, जिसको लेकर कई बार खून-खराबा देखने को मिलता था। दोनों पक्षों (भरमौर बनाम संचूई-मलकौता) से इसके बारे में जब जानकारी ली तो पता चला कि मंच स्थान पर नाचने के लिए मलकौता निवासियों ने अपना जनेऊ पहनना छोड़ दिया था, इसलिए मंच पर नृत्य करना उनका हक समझा जाता है, परंतु अब स्थानीय प्रशासन एवं आपसी सहयोग के चलते प्रथा को लगभग बंद कर दिया गया है। स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि मुख्यालय एवं साथ लगते गांवों के लोगों को कम से कम बड़े मेले को आमंत्रित करे। प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा एक धार्मिक यात्रा न होकर पिकनिक स्पॉट ज्यादा बनती जा रही है। दूर-दूर से यात्री आते तो हैं, परंतु नशे का ज्यादा इस्तेमाल एवं शराब के ठेके पर बढ़ती बिक्री दर से यह चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐतिहासिक चौरासी मंदिर समूह में समस्त देवी-देवताओं का निवास है। विश्व प्रसिद्ध धर्मराज का मंदिर भी यहां व्यवस्थित है। सातवीं सदी का बना अद्भुत काष्ठ कला से निर्मित लक्षणा देवी (महिषासुर मर्दिनी) मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित पत्थर के शिलालेख को धो कर गर्भवती महिलाओं को पिलाने से बिना दर्द प्रसाव होते हैं। ऐसी मान्यता आज भी बरकरार है। प्रसिद्ध मणिमहेश मंदिर के सामने स्थापित चार फुट ऊंची मूर्ति नंदी महाराज के दाहिने काम में अपनी इच्छा या कामना करने पर कहते हैं कि भगवान शिव को अवश्य यह कामना पूरी करनी पड़ती है। नंदी महाराज के नीचे से निकलकर आज भी श्रद्धालु लोग आरोग्यता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार में विराजमान अष्टधातु की चार फुट ऊंची मूर्ति के आगे लोग आज भी खोई हुई वस्तु की पुनः प्राप्ति की कामना करते हैं। नरसिंह मंदिर में रखे अष्टधातु के शंख में उकेरे गए 84 मंदिरों के दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। 84 मंदिर समूह को आज व्यावसायिक फायदे के लिए विभिन्न प्रकार की दुकानों द्वारा ढक लिया जाता है, जिससे कई बार कई मंदिर श्रद्धालुओं को नजर ही नहीं आते। स्थानीय पंचायत एवं प्रशासन को चाहिए कि इन समस्याओं पर ध्यान देते हुए प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए उचित कदम उठाए।

-कृष्ण सिंह पखरेटिया, संचूई (भरमौर)


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