शब्दवृत्ति

By: Oct 10th, 2017 12:02 am

राधे-राधे !

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

माता की चुनरी सजी, झूमे थानेदार,

स्वागत में भी नप गए, कैसा अत्याचार।

कैसा अत्याचार, कहां दिन अच्छे आए?

हाथ जोड़कर खड़े, मगर सस्पेंड कराए।

मां को कुर्सी भेंट की, खाकी है दिलदार,

नेता कुर्सी छीनते, करते हैं तकरार।

स्वागत, इज्जत जो हुई, गलत हुई क्या बात,

सबको चाबुक पड़ गए, सबको दी सौगात।

मान दिया, इज्जत करी, किया कुशल व्यवहार,

राधा तारें कष्ट से, नैया कर दे पार।

देशभक्ति है रुधिर में

निगहबान नभ भेदते, वायु वेग को मात,

देशभक्ति है रुधिर में, बहती है दिन-रात।

सैनिक जीवन दे रहे, नमन कर रहा देश,

नाप लिया संपूर्ण नभ, कहां बचा कुछ शेष।

शत्रु देश दो हैं, मगर भिड़ने को तैयार,

हॉक, सुखोई चीर कर, देंगे उनको मार।

सबक दिया लाहौर में घुसकर बारंबार,

अब इस्लामाबाद को, फूंको सौ-सौ बार।


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