शब्दवृत्ति
दीपोत्सव पूजन
(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
गणपति को पूजें प्रथम, श्री का हो आह्वान,
हरि के संग दें निमंत्रण, सफल हों सब काम।
कृपा दृष्टि कमला करें, भक्तों का उद्धार,
धनकुबेर की हो दया, भरे रहें भंडार।
धनतेरस सुख बांटता, करता स्वास्थ्य प्रदान,
धन्वंतरि हों अवतरित, कर दें रोग निदान।
मिट्टी के दीपक जलें, मिट्टी से जुड़ जाएं,
कुंभकार जीवंत हों, वे भी पर्व मनाएं।
नन्हा सा निर्मल दीया, तम है अति बलवान,
क्या जुनून, क्या हौसला, मोड़ दिया तूफान।
महाशक्ति ब्रह्मांड की, लक्ष्मी जी का रूप,
दर्शन देगी रात्रि में, खिल जाएगी धूप।
श्री देवी श्री बांटकर, भर देतीं उल्लास,
अति विपन्न, अति दीन को, हो जीने की आस।
सुख-समृद्धि, सौभाग्य की, दीप्तिमय मुस्कान,
चरण बनाएं, पूज लें, मां का हो गुणगान।
ताश-जुआ दुर्भाग्य है, है निषिद्ध यह खेल,
मां रूठेंगी सो अलग, अंदर जाएं जेल।
वन से चौदह वर्ष में, लौटे हैं श्रीराम,
दीप जलें, स्वागत करें, बांटें हम मिष्ठान।
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