शब्द वृत्ति

By: Oct 13th, 2017 12:03 am

लाडो रोती कुंभकार की

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

नृत्य कर रही है चीनी,

देशी भूखी, मरने वाली।

जला रही लडि़यां ड्रैगन की,

है अनपढ़ तेरी साली।

वीवो, ओप्पो फुदक रहे हैं,

अपनी जेबें हैं खाली।

लाडो रोती कुंभकार की,

घर में छाई बदहाली।

दस हजार की चिमनी लाया,

अब कचरे में है डाली।

घंटे की भी क्या गारंटी,

चीनी है नखरे वाली।

हर दुकान में ड्रैगन पसरा,

सब में सेंध लगा डाली।

अपने उपवन में अब उल्लू,

चहक रहे डाली-डाली।

बाड़ निगलती है खेतों को,

कुंभकरर्ण अपना माली।

अपना तो दीवाला पिटता,

ड्रैगन के ही घर दिवाली।


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