शब्द वृत्ति

By: Oct 14th, 2017 12:01 am

दिवाली भारत की है

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

बाहर से चमचम है चीनी,

अंदर नकली जाली है।

धन है लक्ष्मी, मत फेंको तुम,

ड्रैगन गंदी नाली है।

खाओ मत या छेद करो मत,

यह स्वदेश की थाली है।

चीनी तिलिस्म का कोई छोर नहीं,

अति लुभावनी, पर खाली है।

जिसने भी अपना अपनाया,

वाह-वाह करवा ली है।

दीये बाती वाले, मिट्टी के,

घर की रखवाली है।

माल सदा बरतें स्वदेश का,

छिपी इसमें खुशहाली है,

देशभक्त हैं जापानी,

उनके चेहरे पर लाली है।

घर का पैसा, घर में रखो,

क्यों गंदी आदत पाली है।

क्यों निकालते हो दीवाला,

भारत की दिवाली है।


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