सत्य का जीवंत ज्ञान

By: Oct 21st, 2017 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

बपतिस्मा का अर्थ है, आध्यात्म्कि जीवन में सीधा प्रवेश। यदि तुमको वास्तविक बपतिस्मा मिलता है, तो तुम जानते हो कि तुम शरीर नहीं हो, वरन आत्मा हो। यदि तुम दे सकते हो, तो मुझे वह बपतिस्मा दो। यदि नहीं, तो तुम ईसाई नहीं हो। तथाकथित बपतिस्मा प्राप्त होने के बाद तो तुम पूर्ववत ही रहते हो। केवल यह कहने का क्या अर्थ है कि तुमको ईसा के नाम में बपतिस्मा दिया गया है। कोरी बकबक अपनी मूर्खता से संसार को निरंतर क्षुब्ध करना। सदा अज्ञानांधकार में लिपटे हुए, फिर भी अपने को बुद्धिमान और विद्वान समझते हुए, मूर्ख इधर-उधर लड़खड़ाते अंधे द्वारा मार्ग-दर्शित अंधे के समान बार-बार चक्कर काटते हैं। इसलिए यह मत कहो कि तुम ईसाई हो, बपतिस्मा और इसी प्रकार की अन्य बातों की डींग मत करो। निश्चय ही सच्चा बपतिस्मा होता है, जैसे आरंभ में जब ईसा पृथ्वी पर आए और उन्होंने उपदेश दिया। वे प्रबुद्ध, वे महान आत्माएं, जो समय-समय पर पृथ्वी पर आती रहती हैं, उनमें हमारे प्रति ईश्वरीय  दर्शन का उद्घाटन करा देने की शक्ति रहती है। यही सच्चा बपतिस्मा है। तुम देखते हो कि प्रत्येक धर्म में फार्मूलों और कर्मकांडों से पहले सार्वभौम सत्य का बीज रहता है। समय की यात्रा में सत्य बिसर जाता है, मानों बाह्यों रूपों और अनुष्ठानों  ने उसका गला घोंट दिया हो। रूप रह जाते हैं, हम केवल मंजूषा को पाते हैं, जिसमें से आत्मा उड़ गई है। तुम्हारे पास बपतिस्मे का रूप है, पर बपतिस्मे के जीवंत तत्त्व को बहुत थोड़े ही जगा सकते हैं। रूप से काम नहीं चलेगा। यदि हम जीवंत सत्य का जीवंत ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें उसमें सच्चाई के साथ दीक्षित होना होगा। यही आदर्श है। गुरु मुझे सिखाए और प्रकाश में पहुंचाए, मुझे उस शृंखला की एक कड़ी बनाए, जिसकी वह स्वयं एक कड़ी है। साधारण मनुष्य गुरु बनने का दावा नहीं कर सकता। गुरु ऐसा मनुष्य होना चाहिए, जिसने जान लिया है, दैवी सत्य को वास्तव में अनुभव कर लिया है और अपने को आत्मा के रूप में देख लिया है। केवल बातें करने वाला गुरु नहीं हो सकता। एक सच्चा गुरु शिष्य से कहेगा, जा और अब पाप न कर और शिष्य अब पाप नहीं कर सकता-उस व्यक्ति में पाप करने की शक्ति नहीं रहती। मैंने इस जीवन में ऐसे मनुष्यों को देखा है। मैंने बाइबिल और इस प्रकार के सब ग्रंथ पढ़े हैं, वे अद्भुत हैं। पर जीवंत शक्ति तुमको पुस्तकों में नहीं मिल सकती। वह शक्ति, जो एक क्षण में जीवन को परिवर्तित कर दे, केवल उन जीवंत प्रकाशवान आत्माओं से ही प्राप्त हो सकती है, जो समय-समय पर हमारे बीच में प्रकट होती रहती है। केवल वे गुरु होने के योग्य हैं। तुम और मैं केवल थोथी बकबक है, गुरु नहीं। हम अपनी बातों से अवांछनीय कंपन उत्पन्न करके संसार को अधिक क्षुब्ध कर रहे हैं। हम आशा करते हैं, प्रार्थना करते हैं और संघर्ष करते जाते हैं और वह दिन आएगा, जब हम सत्य पर पहुंचेंगे और हमें बोलने की आवश्यकता नहीं रहेगी।


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