सफलताओं की चाबी

By: Oct 21st, 2017 12:05 am

श्रीराम शर्मा

जीवन में सफलता को पाने के लिए अथक प्रयास करने पड़ते हैं। जीवन की अनेक उलझनों को सुलझाने में, प्रगति पथ पर उपस्थित रोड़ों को हटाने में बहुधा हमारी शक्ति का बहुत बड़ा भाग व्यतीत होता है, फिर भी कुछ ही समस्याओं का हल हो पाता है। उसका कारण है कि हम हर समस्या का हल बाहर ढूंढ़ते हैं जबकि वह हमारे अंदर छिपा रहता है। यदि हम कोई आकांक्षा करने से पूर्व अपने सामर्थ्य और परिस्थितियों का अनुगमन करें तो उनका पूर्ण होना कठिन नहीं है। एक बार के प्रयत्न में न सही, सोची हुई अवधि में न सही, पूर्ण अंश में न सही, आगे-पीछे न्यूनाधिक सफलता इतनी मात्रा में तो मिल ही जाती है कि काम चलाऊ संतोष प्राप्त किया जा सके। पर यदि आकांक्षा के साथ-साथ अपनी क्षमता और स्थिति का ठीक अंदाजा न करके बढ़ा-चढ़ा कर लक्ष्य रखा गया है तो स्थिति कठिन ही है। ऐसी दशा में असफलता व खिन्नता स्वाभाविक है। परिस्थिति के अनुसार मन चलाने की दूरदर्शिता हो तो उस खिन्नता से बचा जा सकता है और साधारण रीति से जो उपलब्ध हो सकता है, उतनी आकांक्षा करके शांतिपूर्वक जीवनयापन किया जा सकता है। सफलता के बड़े-बड़े स्वप्न देखने की अपेक्षा हम सोच समझ कर सुनिश्चित मार्ग अपनाएं और उस पथ पर दृढ़ता व मनोयोग से कर्त्तव्य समझकर चलते रहें तो मस्तिष्क शांत रहेगा, उसकी पूरी शक्तियां लक्ष्य पूरा करने में लगेंगी और मंजिल तेजी से पास आती चली जाएगी। इसके विपरीत यदि मन बड़े-बड़े मंसूबे गांठता व सफलताओं के सुनहरे महल बनाता रहता है, जल्दी से जल्दी बड़ी से बड़ी सफलता के लिए आतुर रहता है तो मंजिल  कठिन हो जाएगी। जो मनोयोग कार्य की गतिविधि सुसंचालित रखने में लगाना चाहिए, वह शेखचिल्ली के सपने देखने में उलझा रहता है। ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते हैं, बेचैनी बढ़ती जाती है और  बेचैन आदमी न किसी बात को ठीक से सोच सकता है और न  कुछ कर सकता है। ऐसे में सफलता की मंजिल अधिक कठिन व संदिग्ध होती जाती है। उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गंवा देता है। एक संत का कथन है मुझे नरक में भेज दो, मैं वहां भी अपने लिए स्वर्ग बना लूंगा। उनका दावा इसी आधार पर था कि निज की अंतः भूमि परिष्कृत कर लेने पर व्यक्ति में ऐसी सूझबूझ की, गुण कर्म स्वभाव की उत्पत्ति हो जाती है जिससे बुरे व्यक्तियों को भी सज्जनता से प्रभावित करने व बुराइयों का अपने ऊपर प्रभाव न पड़ने देने की क्षमता सिद्ध हो सके। कई बार बहुत प्रयास करने पर भी आप असफल रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में भी जो हार न मानें असल में वही सच्चा पुरुषार्थी है।


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