सरकारी फैसलों की तफतीश

By: Oct 2nd, 2017 12:05 am

इस बहस के मायने भले ही लोकतांत्रिक हैं, लेकिन इनसे किसी सरकार की नैतिकता का सांचा स्पष्ट नहीं होता। चुनाव के दो पाटों के बीच सरकार और विपक्ष को समझें, तो हिमाचली जनापेक्षाएं नजर आएंगी। विपक्ष के सभी कारतूस चल रहे हैं और चुनावी इबारत में हिमाचल की मानसिकता पर अधिकार पाने के क्रमांक में  भाजपा के मुद्दे बढ़ रहे हैं। दूसरी ओर मुद्दई को पस्त करने के लिए सत्ता पक्ष हर दिन अपने इश्तिहार टांग रहा है, तो सरकारी मशीनरी की सक्रियता पर विपक्ष की आपत्तियों को भी मशक्कत करनी पड़ रही है। यह अजीब चुनावी प्रतिस्पर्धा है और इसलिए पहली बार आमने-सामने होने का हर दिन अलार्म की तरह उठाता, जगाता और खबरदार भी करता है। चुनावों में सरकार विरोधी लहरों के संगम पर विपक्ष की संभावना अगर तैरती है, तो इस बार भाजपा के चबूतरे का यह शोर जनता के बीच असहमत सा क्यों है। जो सरकार लगातार हर दिन कुछ उद्घाटन या शिलान्यास पट्टिकाएं चुन लेती हो या जिसने अपनी सत्ता के श्रम में गांव तक कालेज, अस्पताल, तहसील या उपतहसील का बैनर लगाया हो, उसके खिलाफ विरोध को एकत्रित करना इतना सरल नहीं। यह दीगर है कि घोषणाओं का असर हिमाचल की आर्थिक चिंताओं की व्यग्रता है, लेकिन जनता अर्थशास्त्र की तरह इच्छाएं नहीं पालती। जनता के लिए विकास के मायने सरकार से नजदीकी हैं तो क्या वीरभद्र सरकार निरंतर यह प्रयास कर रही है, ताकि आम जनता को सनद रहे कि कुछ हो रहा है। प्रतिपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल द्वारा उठाए गए प्रश्नों का सीधा उत्तर नैतिकता से है। यानी ऐन चुनाव से पूर्व लिए गए फैसलों का औचित्य कितना निर्लिप्त है। इसलिए ट्री टूरिज्म के नाम पर आए फैसले को भाजपा शक की निगाहों से देख रही है। जाहिर है ऐसे निर्णय एक व्यापक नीति के तहत लिए जा सकते हैं, लेकिन चुनाव पूर्व होते अमल की राजनीतिक तफतीश तसल्ली से होगी। कुछ अन्य निर्णयों के गुरुत्त्वाकषर्ण पर भाजपा का एतराज स्वाभाविक है, लेकिन सियासी अखाड़े में न उगलते बनता है और न ही निगलते। ये ऐसे फैसले हैं जो नौकरी पैदा कर गए या कर्मचारी हितों में आगे  बढ़ गए। सरकार को इस समय केवल आदर्श आचार संहिता ही रोक सकती है, वरना मंत्रिमंडल की हर बैठक अगली का संकेत दे जाती है। इसे इत्तफाक नहीं कहा जा सकता कि हिमाचल सरकार की उद्घाटन-शिलान्यास मुहिम का जोरदार जवाब देने के लिए बिलासपुर की मोदी  रैली का विस्तार करते हुए भाजपा इसके सुर ऊना व कांगड़ा के मील पत्थरों से जोड़ रही है। ट्रिपल आईटी व कंदरोड़ी इस्पात उद्योग की पट्टिकाओं पर देश के प्रधानमंत्री हस्ताक्षर करेंगे, तो केंद्र सरकार भी अपने कक्ष से हिमाचल के नसीब जगाएगी। चुनाव के दरम्यान बदल रहा मंच, राजनीति की नई कहावतें बता रहा है। ऐसे में मोदी की रैली, विकास पथ पर सियासत के लक्षणों को पुष्ट ही करेगी। इसमें दो राय नहीं कि भारत के संघीय ढांचे में राज्य के उद्गार काफी हद तक केंद्र के मार्फत ही सामने आते हैं, फिर भी हिमाचली सरकारों ने सदैव अपने दायरे में सफलता समेटी। देश की पहली इलेक्ट्रिक बस चलाने के बाद अगर छोटी गाड़ी की सवारी में बिजली का इस्तेमाल प्रदेश में शुरू हो रहा है, तो हिमाचल का परिवहन विभाग सरकार का अलंकरण ही कर रहा है। फैसलों की जिस जमीन पर वीरभद्र सरकार अपने पांच साल पूरे कर रही है, वहां विकास को समझना होगा। अगर विकास मुद्दा न होता, तो प्रधानमंत्री बिलासपुर न आते।


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