सुलाह में हर बार बदलती है मतदाताओं की पसंद

By: Oct 16th, 2017 12:05 am

पालमपुर – प्रदेश को दो बार मुख्यमंत्री देने का गौरव प्राप्त कर चुके सुलाह विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की पसंद बदलती रही है। यहां के मतदाताओं ने आज तक शांता कुमार के अलावा किसी भी प्रत्याशी को लगातार दो बार जीत दर्ज करने का अवसर नहीं दिया है। दो चुनावों को छोड़ अब तक राजपूत या ब्राह्मण प्रत्याशी ही प्रमुख दलों व मतदाताओं की पहली पसंद रहे हैं। 1977 में स्थापित सुलाह क्षेत्र में पहली बार हुए चुनाव में जनता पार्टी के शांता कुमार ने माकपा के विधि चंद को पराजित किया और प्रदेश में पहली बार बनी गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री बने। 1980 के चुनाव में कांग्रेस के मान चंद राणा को हराकर भाजपा के शांता कुमार ने सीट पर कब्जा बनाए रखा और विपक्ष के नेता चुने गए। 1985 के चुनाव में शांता की जीत का सिलसिला टूटा और मानचंद राणा ने पहली बार यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। 1990 के चुनाव ने फिर यही दोनों उम्मीदवार आमने सामने थे। शांता कुमार ने अपनी हार का बदला चुकाया व फिर से यहां भाजपा का परचम लहरा दिया और दोबारा मुख्यमंत्री बने। शांता कुमार की सरकार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। 1993 में मानचंद राणा ने अपनी हार का बदला ले लिया और शांता कुमार को करीब साढ़े तीन हजार मतों से शिकस्त दी। कांग्रेस सरकार बनने पर मानचंद राणा को कृषि मंत्री बनाया गया, पर 1995 में उनके निधन से यहां उपचुनाव करवाने पड़े। कांग्रेस की तरफ  से मैदान में उतारे गए बुजुर्ग नेता कंवर दुर्गा चंद के मुकाबले भाजपा ने युवा विपिन परमार को टिकट दिया। दुर्गा चंद करीब तीन हजार वोटों से विपिन परमार को पटखनी देने में कामयाब हुए। 1998 के चुनावों में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला व पहली बार ओबीसी समुदाय के जगजीवन पाल को भाजपा के विपिन परमार के मुकाबले उतारा गया। कांटे की टक्कर हुई व 15,690 वोट लेकर परमार ने जगजीवन पाल (15565 मत) को मात्र 125 मतों से हराकर पहली बार विधानसभा में कदम रखा। 2003 में फिर इन्हीं दोनों उम्मीदवारों में मुकाबला हुआ और जगजीवन पाल ने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर बदला ले लिया। जगजीवन पाल को करीब 24 हजार मत पड़े और उन्होंने 11,980 मतों के अंतर से जीत हासिल की। एक उम्मीदवार को लगातार दूसरी बार जीतने न देने का क्रम सुलाह की जनता ने 2008 में बनाए रखा और जगजीवन पाल को हराकर विपिन परमार दूसरी बार विधायक बने। 2012 के चुनावों में सुलाह के मतदाताओं ने एक बार फिर अपना रुख कायम रखते हुए जगजीवन पाल की झोली में जीत डाल दी।


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