सोशल मीडिया के दौर में झूठ की राजनीति खत्म

By: Oct 11th, 2017 12:15 am

मुश्किल होती सियासत पर सरवीण चौधरी की राय

newsशाहपुर— राजनीति के बदलते परिवेश के साथ नेताओं को भी बदलना पड़ेगा। आधुनिकता के दौर में नई पीढ़ी उन्हीं लोगों को अधिमान देती है, जो हर विषय पर अपडेट रहते हैं। मतदाता शिक्षित व जागरूक हो गए हैं। अब पार्टी की लकीर के बजाय नेता के विजन को जनता ज्यादा प्राथमिकता देती है। विधायकों की सुविधाएं बढ़ी हैं तो लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। बेशक इसके लिए नेता स्वयं ही कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। सिस्टम को सुधारने व कानून बनाने तथा इसे ईमानदारी से लागू करवाने के स्थान पर व्यक्तिगत मसलों को दलगत राजनीति के आधार पर सेटल करवाने की परिपाटी ऐसी पड़ी है कि अब यह कवायद नेताआें के लिए सिरदर्दी का आलम बन गई है। मेरे घर को रास्ता, डंगा लगाना, मेरे बेटे-बेटी या रिश्तेदार को नौकरी, गृह निर्माण के लिए आर्थिक मदद, पढ़ाई के लिए खर्चा, वॉशिंग मशीन, साइकिल, इंडक्शन कुकर तथा अनेक प्रकार की सौगातों की सूची दिन व दिन बढ़ने लगी है। कुल मिलाकर नेताआें ने अपने लिए बड़ी मुसीबत मोल ले ली है। यानी कि अब राजनीति में बने रहना आसान नहीं है। जिस तरह जनता की मांगें बढ़ी हैं तो नेता के लिए भी सियासत में मुश्किलें बढ़ी हैं। यह कहना है शाहपुर की विधायक एवं पूर्व मंत्री सरवीण चौधरी का। विधायक के अनुसार अब लोग विचारधारा के साथ-साथ विधायक द्वारा करवाए गए कार्यों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। नई पीढ़ी विधायक के विजन और काम करने के तरीके का पूरा अध्ययन करती है। युवा पीढ़ी व्यक्ति के व्यवहार और छवी व कार्यप्रणाली को देखती है। आधुनिकता के दौर में अब बड़ा बदलाव आ गया है। युवा अपने मोबाइल पर फोटो और वीडियो दिखाकर अपने माता-पिता सहित मोहल्ले के लोगों को भी नेता व उनके द्वारा करवाए गए कार्यों की वास्तविकता से अवगत करवा रहा है। सोशल मीडिया के दौर में झूठ की राजनीति करने वाले लोग अधिक देर तक नहीं टिक सकते हैं। न ही किसी को डरा-धमका कर अधिक देर तक काम चलाया जा सकता है।

वोट बैंक की कठिनाइयां

सरवीण चौधरी का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ता हो या मतदाता, सब अपना काम करवाना चाहते हैं। वोट बैंक की राजनीति में यह सबसे बड़ी चुनौती है। अब लोग सार्वजनिक कार्यों की बजाय व्यक्तिगत कार्यों की तरफ अधिक ध्यान दे रहे हैं। सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और पानी सहित शैक्षणिक संस्थान हर गांव तक पहुंचाना उनकी प्राथमिकता रही है। समाज के पिछड़े एवं जरूरतमंद लोगों के बीच जाना व काम करना, उन्हें अधिक आनंद देता है।

अब बदले की भावना से काम नहीं

सरवीण कहती हैं कि अब आम लोगों व कर्मचारियों को डरा-धमाका कर राजनीति नहीं की जा सकती। जनता जागरूक हो गई है और लोग पढ़े-लिखे हैं। ऐसे में सबका साथ और सबका विकास के नारे पर ही काम करना होगा। जो लोग बदले की भावना से काम करते हैं, ऐसे नेताओं को जनता स्वीकार नहीं करती है। बदलते परिवेश के साथ अपने आप को भी बदलना आवश्यक है।


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