2012 के चुनावों में भारी पड़े थे पांच आजाद

By: Oct 22nd, 2017 12:03 am

पालमपुर – 2012 के विधानसभा चुनावों में आजाद प्रत्याषियों ने कइयों के खेल बिगाड़ दिए थे। अपनी-अपनी पार्टी में मजबूत दावेदारी के बावजूद टिकट न मिलने और समर्थकों की चाहत पर प्रदेश भर में अनेक नेता आजाद उम्मीदवारी के तौर पर चुनावी समर में कूद गए थे। इनमें से जहां पांच लोग विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब रहे, वहीं पांच अन्य ने प्रमुख दलों के उम्मीदवारों को पछाड़ कर सीधी टक्कर दी। जो पांच उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे थे, उनमें से चार ने कांग्रेस और एक ने भाजपा के प्रत्याशी को मात दी थी। एससी आरक्षित इंदौरा विस क्षेत्र से मनोहर धीमान ने कांग्रेस के उम्मीदवार कमल किशोर को सात हजार के करीब मतों से हराया, तो कांगड़ा से पवन काजल ने कांग्रेस के सुरेंद्र काकू को करीब पांच सौ वोटों से शिकस्त दी थी। सुजानपुर सीट से राजेंद्र सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी अनिता वर्मा को लगभग 14 हजार मतों से परास्त किया, तो पावंटा साहिब सीट से किरनेश जंग ने भाजपा के सुखराम को आठ सौ मतों से हराकर विधानसभा का रुख किया था। चौपाल सीट से बलबीर सिंह वर्मा ने कांग्रेस के सुभाष मंगलेट को लगभग छह सौ मतों से हराया था। वहीं पांच उम्मीदवार ऐसे भी थे, जो पिछले चुनावों में जीत तो दर्ज न कर सके, लेकिन उन्होंने पार्टी उम्मीदवार को जमकर टक्कर दी और दूसरे स्थान पर रहे। नूरपुर सीट से चाहे राकेश पठानिया कांग्रेस के अजय महाजन से करीब तीन हजार मतों से हार गए थे, लेकिन उन्होंने मतदाताओं में अपनी पकड़ का एहसास करवा दिया था। देहरा सीट से योगराज भाजपा के रविंद्र रवि से करीब 15 जार मतों से हारे थे, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। नगरोटा बगवां से अरुण कुमार ने कांग्रेस के दिग्गज नेता जीएस बाली को कड़ी टक्कर देते हुए भाजपा के उम्मीदवार को पीछे सरका दिया था। सुंदरनगर से रूप सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार सोहन लाल से करीब नौ हजार मतों से हार गए थे, तो दून से दर्शन सिंह कांग्रेस प्रत्याशी राम कुमार से परास्त हुए थे। दोनों प्रमुख दलों द्वारा टिकट काटे जाने से नाराज उम्मीदवारों ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर अपनी ताकत का एहसास करवाया। वहीं पार्टियों के गणित बिगाड़ने में भी अहम भूमिका निभाई। हालांकि चुनावों के बाद कुछ जीते हुए आजाद उम्मीदवारों ने मौका देखते हुए सत्तासीन पार्टी का साथ देना मुनासिब समझा था।

 


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