अघंमी वाणी का उच्चरण
धन-धन श्री गुरु रविदास महाराज जी जन्म के समय से ही अघंमी शक्तियों से व सर्वकला संपूर्ण थे। सतगुरु स्वामी ईशर दास महाराज जी श्री गुरु आदि प्रगाश गं्रथ जी में फरमान करते हैं कि ‘गुरु रविदास आए हरि जोत, तेती कोट गुरु संग खलोत’ भाव कि श्री गुरु रविदास महाराज जी रब्बी नूर हैं और तेती कोटी देवी-देवता गुरु जी के अधीन हैं व गुरु की आज्ञा से ही कार्य करते हैं। श्री गुरु रविदास महाराज जी कलियुग के अंधेरे में फैली जात-पात,ऊंच-नीच, वैर-विरोध, ईर्ष्या, निंदया इत्यादि बुराइयों को खत्म करने को संसार में आए थे। उन्होंने बाल अवस्था में पांच वर्ष की आयु में अघंमी बाणी का उच्चारण करना आरंभ कर दिया। गुरु जी ने सबसे पहले राग सोरठ में शबद ‘जऊ तुम गिरबर तऊ हम मोरा’ उच्चारण किया। गुरु जी जब बालकों के साथ खेलते तो वह एक जगह बैठ कर सुरत शब्द का मेल कर सोंह शबद का जाप करते। गुरु जी बाल अवस्था में ही सत्संग व शबद विचार करने लगे तो लोगों ने बड़ी हैरानी प्रकट की कि यह बालक छोटी उम्र में ही इतनी अघंमी वाणी का उच्चारण कर रहा है। गुरु जी की आध्यात्मिक शक्ति व ज्ञान को देख बहुत लोग गुरु जी के शिष्य बनने लगे। गुरु जी के पहले सेवक जीवन दास व उनकी सुपत्नी भानी जी थे। सबसे पहले इन दोनों ने गुरु जी से नाम की दात प्राप्त की और सुरत शबद की कमाई करने लगे । जैसे ही गुरु जी का जस बढ़ता गया व दुखियों के दुखों का निवारण व कोढि़यों के कोढ़ दूर होने लगे, लोगों की आस्था गुरु जी पर बढ़ती गई और लोग गुरु जी से गुर मंत्र लेने लगे। गुरु जी ने सोंह शब्द का जाप जपाया। बाल उम्र में ही बहुत लोगों ने गुरु जी को अपना गुरु बनाया। गुरु रविदास जी ऐसी जुगत नाम जपने की बताते थे कि शब्द का जाप मुख, होंठ, जिहवा हिले बिना होना चाहिए जिसे ‘अजपा जाप’ कहा जाता है। ‘सोंह’ शब्द रूपी ऐसा जहाज है, जिसमें जो भी जीव आकर बैठेगा वह इस संसार सागर से पार हो जाएगा। गुरु जी ने श्री गुरु आदि प्रगाश ग्रंथ जी की बाणी में यह पूर्ण रूप से स्पष्ट किया है कि ‘सोंह’ ही मुक्ति का मार्ग है। संसार में जो भी जीव-जंतु हैं सब में सोंह का प्रकाश है, सभी सोंह का जाप कर रहे हैं। सोंह का अर्थ है सो-परमात्मा यानी आदि पुरख, हं-मैं यानी जो तू है, वो मैं हूं जो मैं हूं वो तू है, तेरे मेरे में कोई अंतर नहीं है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भी गुरु रविदास महाराज जी ने फरमान किया है ‘तोही मोही तोही अंतर कैसा’। और श्री गुरु आदि प्रगाश ग्रंथ जी में फरमान किया है-
सोंह सोंह जप लैं सोंह सोंह जाप,
सोंह सोंह जपदे लव लवेंगे आप।
सोंह सोंह जप तू जप तू जप तू श्वास मलाए,
एक भी श्वास सखना ना जावत कहे रविदास समझाए।
वाणी श्री गुरु आदि प्रगाश ग्रंथ जी में से सोंह जै गुरुदेव जी।
-दास-दीप बिंजी।
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