अभ्यास से पशु भी सुधर जाते हैं

By: Nov 11th, 2017 12:05 am

मन किसी एक लक्ष्य पर टिक जाए, यही एकाग्रता का अर्थ है। जिसका मन एक लक्ष्य पर टिक नहीं पा रहा, जिसमें भटकाव है, इसका अर्थ है कि साधना की तैयारी-श्रद्धा, संकल्पशक्ति, लक्ष्य की स्पष्टता में कहीं कमी है…

भारतीय साधकों ने साधना के लिए मन को साधना अनिवार्य बताया है। उन्होंने एकाग्रता पर भी चिंतन किया है। मन किसी एक लक्ष्य पर टिक जाए, यही एकाग्रता का अर्थ है। जिसका मन एक लक्ष्य पर टिक नहीं पा रहा, जिसमें भटकाव है, इसका अर्थ है कि साधना की तैयारी-श्रद्धा, संकल्पशक्ति, लक्ष्य की स्पष्टता में कहीं कमी है। ऐसा होना साधक के लिए शुभ लक्षण नहीं। श्रद्धा और भक्ति से तन्मयता आती है और ऐसी साधना से ही आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है जो अभीष्ट की प्राप्ति कराए। चित्तवृत्ति को एकाग्र करने के लिए चाहिए सतत व लंबा अभ्यास और एकनिष्ठा। संसार के बड़े-बड़े कठिन तथा नितांत असंभव कार्य भी अभ्यास से पूर्ण हो जाते हैं। अभ्यास से मनुष्य ही नहीं, पशु भी आश्चर्यजनक रूप से प्रवृत्ति के विरुद्ध कार्य करने लगते हैं। वैसे चिरसंचित बहिर्मुखी संस्कार इस कार्य में बाधक होते हैं। फिर भी दृढ़तापूर्वक अभ्यास करते चले जाने से वे शांत ही नहीं होते, समाप्त तक हो जाते हैं। वस्तुतः योग दर्शनकार चेतावनी देते हैं कि यह अभ्यास बहुत समय तक लगातार सही विधि से किया जाए, तभी उसमें दृढ़ता आती है। अभ्यास और वैराग्य के मिले-जुले प्रयत्न से चित्त की वृत्तियों का निश्चय ही निरोध होता है और मन एकाग्र होता है। यही तंत्रसिद्धि का मार्ग है।

प्राणायाम

तंत्र साधना का परमावश्यक अंग है-प्राणायाम। प्राण का अर्थ है जीवनी शक्ति। श्वास-प्रश्वास उसका मोटा रूप है और आयाम का शाब्दिक अर्थ है-व्यवस्थित, नियमन करना। मन जीवनी-शक्ति का उपयोग इंद्रियों के साथ मिलकर करता है। मन चूंकि सीधे काबू में नहीं आता और छिटक जाता है, इसलिए प्राण के द्वारा मन का निरोध करने की युक्ति ऋषियों ने सुझाई है। साधक अपने इष्टदेव या देवी का ध्यान करता है। उस पर अपने मन को जमाने का प्रयास करता है। मन चंचल है, इधर-उधर भटकना उसका स्वभाव है। उसी एकाग्रता में ही तो शक्ति का रहस्य छिपा है। वही साधना की कुंजी है। प्राणायाम से धीरे-धीरे एकाग्रता बढ़ती है। शास्त्रों का भी यही मत है कि मन प्राणाधीन है। जिस प्रकार पशु रस्सी से बंधा रहता है, उसी प्रकार चित्त प्राण से बंधा हुआ है, मन को वश में करना असंभव रहता है। केवल प्राणायाम ही मन को वश में करने का सर्वोत्तम उपाय है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, ‘‘ज्योति प्राणायाम द्वारा ध्यान करने से ज्योति में समा जाती है, जीव परमात्मा में मिल जाता है।’’ योगदर्शन में भी कहा गया है कि प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से मन की चंचलता नष्ट होकर धारणा की योग्यता आ जाती है, इसलिए प्राणायाम से साधक मानसिक विकास करता है और आध्यात्मिकता की ओर गमन करता है।

ध्यान

तंत्रसिद्धि की प्राप्ति अथवा तंत्र साधना की सफलता के लिए ध्यान की एकाग्रता की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान तो बिना ध्यान के निश्चल हुए कदापि नहीं हो सकता। ध्यानपूर्वक विचार से ही हम किसी वस्तु के मूल स्वरूप और उसकी वास्तविकता को सही स्वरूप में पहचान सकते हैं। यदि हमारा ध्यान इधर-उधर चलायमान रहता है, तो हम किसी भी विषय की गहराई में पैठकर यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर ही नहीं सकते। जिस प्रकार आतिशी शीशे से सूर्य की बिखरी किरणों को एकत्रित करके जब उसे किसी कागज या कपड़े पर फेंका जाता है, तो वह जलने लगता है, बिना एकत्रीकरण के उन बिखरी हुई किरणों में जलाने की सामर्थ्य नहीं होती। इसी प्रकार किसी समस्या विशेष पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर, एकाग्रतापूर्वक मनन करने पर उलझी गुत्थियों को भी सरलतापूर्वक हम सुलझा सकते हैं। हमें समस्या का समाधान मिल जाता है। एकता असीमित सामर्थ्य को एक निश्चित दिशा देती है।


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