अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन !

By: Nov 21st, 2017 12:05 am

108 साल पुरानी अमरीकी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ ने भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत आंके हैं, लिहाजा ‘बीएए3’ से बढ़ाकर ‘बीएए2’ रेटिंग दी है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग 2004 के बाद अब 2017 में बढ़ी है। यानी 13 लंबे साल हमने यथास्थिति के दौर के साथ गुजारे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारी अर्थव्यवस्था में उछाल के दौर नहीं आए। हमने आठ फीसदी से अधिक की विकास दर भी देखी है। औसतन यह दर सात फीसदी के आसपास या उससे अधिक रही है। फिलहाल कुछ अपरिहार्य कारणों से विकास दर लुढ़की हुई है, लेकिन 2017-18 में विकास दर करीब 6.7 फीसदी रहेगी और 2018-19 के दौरान यह 7.5 फीसदी तक जा सकती है। यह आकलन भी मूडीज का है। बेशक मूडीज के रेटिंग सुधार में 13 साल लग गए, लेकिन इस दौरान करीब 250 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया है और स्टॉक मार्केट में भी 225 अरब डालर से अधिक का निवेश हुआ है भारत 620 अरब डालर से 2.3 खरब डालर की अर्थव्यवस्था तक उभरा है। आने वाले समय में भारत जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। हम अमरीका और चीन के बाद की अर्थशक्ति होंगे! भारत का विदेशी मुद्रा कोष भी 110 अरब डालर से बढ़कर 402 अरब डालर तक पहुंच गया है। ये तमाम स्थितियां हवा-हवाई नहीं हैं, भारत की आर्थिक मजबूती और विकास की साक्ष्य हैं। सवाल है कि मूडीज ने रेटिंग सुधारने में 13 लंबे साल क्यों लगा दिए? दूसरी महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने अपनी रेटिंग जनवरी, 2007 से ही ‘बीबीबी’ क्यों रखी है? क्या भारत के बाजार में निवेश की संभावनाएं और स्थिरता में सुधार नहीं किए गए हैं? क्या हमारे आर्थिक सुधार विश्व स्तरीय कंपनियों और संगठनों के मानकों के मुताबिक नहीं हैं? एक एजेंसी का आकलन कुछ और है, तो दूसरी की रेटिंग अपेक्षाकृत कम है। वह न्यूनतम निवेश ग्रेड की ओर संकेत कर रही है। तो क्या अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों के सुधारात्मक आकलन अथवा यथास्थिति कोई मायने रखते हैं या नहीं? ऐसा नहीं है कि सारा कुछ फर्जी या किताबी है। मूडीज का भारत के प्रति दृष्टिकोण ‘सकारात्मक’ के स्थान पर ‘स्थिर’ हुआ है। मौजूदा दौर में रेटिंग का यह सुधार भारत के लिए सहायक साबित हो सकता है। बीते पांच-सात महीने हमारे लिए बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। कच्चे तेल की कीमतें 47-48 डालर से बढ़कर 60-62 डालर प्रति बैरल हो गई हैं। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह ने भी इस बिंदु पर अपना सरोकार जताया है। हमारा व्यापार घाटा बढ़ा है, औद्योगिक उत्पादन में कोई बढ़ोतरी नहीं है, उपभोक्ता मूल्य  मुद्रा-स्फीति भी कुछ बढ़ी है। यानी हम मूडीज की रेटिंग के बावजूद किसी मुगालते में जी नहीं सकते। करीब पांच करोड़ रजिस्टर्ड बेरोजगार हमारे देश में हैं। हालांकि वे किसी एक सरकार के कालखंड की देन नहीं हैं। सालों से यह आकड़ा फूलता जा रहा है, लेकिन मूडीज की रेटिंग से भारत के प्रति अंतरराष्ट्रीय मूड बदल सकता है। रेटिंग बढ़ने से भारतीय कंपनियों के लिए विदेश से पैसे जुटाना आसान हो जाएगा। उन्हें कम ब्याज पर कर्ज मिलेगा। एफडीआई और एफआईआई में भी बढ़ोतरी होगी। विदेशी निवेश बढ़ने से रुपया मजबूत होगा। स्टॉक, बांड और करेंसी मार्केट के लिए भी यह अच्छा है। यह रेटिंग और भी बढ़ सकती है, बशर्ते सरकार का घाटा कम हो और निवेश में स्थायी वृद्धि हो। घाटा कम करने के लिए राजस्व बढ़ाने और खर्च कम करने के उपाय करने होंगे। भूमि, श्रम सुधारों से भी रेटिंग बेहतर हो सकती है। लेकिन इससे उलट भी हो सकता है, जब घाटा बढ़ेगा, बैंकिंग सिस्टम और खराब होगा। जीएसटी लागू करने की दिक्कतें, निजी निवेश में कमी, बैंकों की एसेट क्वालिटी और भूमि, श्रम सुधारों में देरी भी अन्य चुनौतियां हैं। अलबत्ता हमारे लिए यह सुखद है कि मूडीज ने जीएसटी, नोटबंदी, आधार आदि आर्थिक सुधारों की सराहना की है और भविष्य की संभावनाएं  रेखांकित की हैं। लिहाजा इस पर राजनीति न की जाए।


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