क्या ध्यान लगाने में मदद करते हैं पेड़ ?

By: Nov 18th, 2017 12:10 am

पौधे आपकी भावनाओं और सोच के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं-खास तौर पर कुछ पौधे। माना जाता है कि फिकस नस्ल के पौधे, जैसे बरगद के पेड़ और उस परिवार के और दूसरे पेड़ बहुत संवेदनशील होते हैं। यही वजह है कि उन्हें भारत में ध्यान के लिए चुना जाता है क्योंकि अगर आप उस पेड़ के नीचे साधना करते हैं, तो यह एक माहौल तैयार कर देता है। यह अपने आप में एक ध्यान कक्ष बन जाता है। अगर आप जरूरी ऊर्जा पैदा करते हैं तो पौधे इसके प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। जब हम ध्यानलिंग तैयार कर रहे थे, तब मैंने पाया कि कुछ पौधे उस माहौल के लिए प्रतिक्रिया देते हुए अपना सहयोग दे रहे थे। यह वास्तव में अद्भुत था। अगर आपके पास बहुत सारे पेड़ हैं और वहां ध्यान होता है तो उस इलाके की ध्यानपरक खूबी को बनाए रखना आसान होगा, क्योंकि पेड़-पौधे उस खूबी को आसानी से संजोए रखते हैं। कुछ पेड़ ऐसे हैं जो आज भी इस लिहाज से बहुत ताकतवर माने जाते हैं। इसके बारे में कई तरह के किस्से हैं। कहा जाता है कि जब गौतम बुद्ध चलते थे तो बहुत सारे पौधे बेमौसम ही खिल उठते थे। हो सकता है कि यह एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति हो, पर यह सच भी हो सकता है क्योंकि ऐसा होना संभव है। दक्षिण भारत में कर्नाटक के बिलीगिरिरंगा पहाडि़यों में डोडा संपिगे नामक पेड़ है। यह एक संपांगी पेड़ है जो कुछ हजार साल पुराना कहा जाता है। कहते हैं कि उसे अगस्त्य मुनि ने लगाया था और उसकी बहुत सारी कथाएं हैं। अकसर इसका जीवनकाल कुछ सदियों का होता है, पर यह बहुत पुराना है। आपने ऐसा संपांगी पेड़ नहीं देखा होगा, यह अपने-आप में उलझ कर बहुत विशाल और विस्तृत हो गया है। भारतीय संस्कृति में, हजारों सालों से पेड़ों को बचाने और उन्हें जीवन और विवेक का रूप मानने की परंपरा रही है। इनमें से किसी भी पक्ष को आज सही तरह से बचाया नहीं जा सका है और उनमें से ज्यादातर खत्म हो चुके हैं। लेकिन पेड़ों को ऊंचा मानकर उनसे कुछ ज्ञान प्राप्त करने की परंपरा हमेशा रही है।

पेड़ हमारे फेफड़े हैं

एक बार मैं यूरोप में हो रहे एक इकोलॉजी समिट में मौजूद था। वहां एक जाने-माने प्रोफेसर ने पास आकर मुझसे कहा, ‘ओह, तो आप वही हैं-पेड़ लगाने वाले अद्भुत इनसान?’ मैंने कहा, ‘नहीं, मैं कोई पेड़ लगाने वाला नहीं हूं।’ ‘पर आपने लाखों पेड़ लगाए हैं?’  ‘फिर भी मैं पेड़ उगाने वाला नहीं हूं।’  उसने हैरानी से पूछा, ‘तब आप क्या करते हैं?’ मैंने कहा, ‘मैं इनसानों को खिलाने का काम करता हूं।’ अगर इनसान अपनी पूरी समझ व जागरूकता के साथ खिलेगा और अपने आसपास के पर्यावरण से जुड़ेगा, तब हमें पता चलेगा कि हम और पर्यावरण दो अलग शब्द नहीं हैं। सादे शब्दों में कहें तो जब आप सांस छोड़ रहे हैं तो पौधे उसे ले रहे हैं। पौधे जो सांस छोड़ रहे हैं, उसे आप ले रहे हैं। केवल आधा श्वसन तंत्र ही आपकी छाती में है। बाकी आधा तो पेड़ पर लटक रहा है। अगर आपने उस आधे को नहीं संभाला तो बाकी आधे का वजूद भी खतरे में आ जाएगा।

सभी जीवों के प्रति प्रेम रखना होगा

इस समय हम अपने इकोलॉजी से जुड़े मुद्दे को एक एहसान की तरह लेते हैं। जबकि यह केवल एक फर्ज नहीं, हमारा जीवन है। कहीं न कहीं हमें लगता है कि हम ही जीवन हैं। बाकी सब जीवन नहीं है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जीवन का सारा अनुभव जीवन की भौतिक संवेदना पर आ टिका है। लोग सोच रहे हैं कि उनका शरीर ही जीवन है, इसलिए उन्हें केवल अपने में ही जीवन दिखता है। अगर आप आध्यात्मिक तौर पर जगे हुए हैं, तो आपको पता होगा कि हर चीज में जीवन है। तब आपको कहना नहीं होगा कि आप पर्यावरण की रक्षा करें। लोग दूसरे जीवों के लिए प्रेम की वजह से पर्यावरण की बातें नहीं कर रहे, उन्हें एहसास होने लगा है, ‘मेरा जीवन खतरे में है। अगर ऐसा ही रहा तो मैं और मेरे बच्चे जीवित नहीं रहेंगे। हमें इसके लिए कुछ न कुछ करना होगा।’ किसी ने आपको याद दिला दिया है कि आपका जीवन संकट में है। अपने आसपास के जीवन की परवाह करने के लिए यह तरीका बदकिस्मत माना जा सकता है। हमारा जीवन एक-दूसरे से अलग नहीं, आपस में जुड़ा है। आज कीड़े जितने स्वस्थ होंगे, आने वाले कल हम उतने ही स्वस्थ होंगे। आध्यात्मिकता का मूल अर्थ है, सभी को साथ लेकर चलने का अनुभव। जब ऐसा अनुभव आपके पास होता है तो आप अपने आसपास की हर चीज की चिंता करते हैं। जो भी अपने भीतर देखता है, उसे कुदरती एहसास होता है कि वह और बाहरी अस्तित्व अलग नहीं हैं।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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