चुनाव प्रक्रिया में सुधार की गुंजाइश

By: Nov 16th, 2017 12:02 am

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक, राजकीय महाविद्यालय नगरोटा बगवां में सह प्राध्यापक हैं

चुनावी ड्यूटी के दौरान मानसिक दबाव बना रहता है। चुनावी कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए व्यक्ति को सभी सुखों का त्याग करके राष्ट्र निर्माता की भूमिका को अपनाना होता है। चुनावी कर्त्तव्यों का निर्वहन एक सुखद एहसास होना चाहिए, ताकि व्यक्ति बार-बार यह कार्य करने के लिए स्वयं प्रेरित हो सके…

हिमाचल में विगत नौ नवंबर को विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। इसके सफल आयोजन का श्रेय जहां प्रदेश निर्वाचन आयोग को जाता है, वहीं शांत प्रदेश की जागरूक जनता भी प्रशंसा की पात्र है। इस चुनावी महायज्ञ को निष्पक्ष, शांतिपूर्वक तथा पारदर्शी ढंग से संपन्न करने के लिए निर्वाचन आयोग ने पर्याप्त संवेदनशीलता दिखाई। इसके अलावा चुनाव में नियुक्त हजारों अधिकारियों तथा कर्मचारियों के बिना यह महाआयोजन संभव नहीं था। निश्चित रूप से लोकतंत्र के इस पर्व में सभी का सहयोग अपेक्षित होता है और सामूहिक भागीदारी से ही लोकतंत्र मजबूत होता है। भारतवर्ष में चुनाव सुधारों की आम तौर पर चर्चा होती रहती है, वहीं चुनाव आयोग को भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता है। यह सही है कि घोड़ा घास के साथ दोस्ती नहीं कर सकता तथा प्रशासनिक पकड़ के बिना दोस्ताना व्यवहार से लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया जा सकता। कार्यों की निश्चितता तय करना प्रशासन का दायित्व होता है। लेकिन, जहां हम लोकतंत्र की बात करते हैं, वहीं बिना दबाव तथा तनावपूर्ण तरीके से कार्य करने वाले व्यक्तियों को सौहार्दपूर्ण व प्रेमपूर्वक जागरूक, संवेदनशील व जिम्मेदार बनाने के लिए प्रशासन प्रेरक व मार्ग दर्शक की भूमिका निभा सकता है।

किसी भी चुनाव को संपन्न करवाना सभी की राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छा से आगे बढ़कर कार्य करने के लिए तैयार रहना चाहिए। चुनावी कार्यों में प्रतिनियुक्ति का स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु ऐसा होता नहीं है। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पत्र मिलते ही उसका स्वागत न करते हुए सर्वप्रथम इस जिम्मेदारी से विमुक्त होने के लिए चुनाव विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों के चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। किसी तरह से इस कार्य से निजात पाने के लिए सच्चे-झूठे बहाने बनाकर चुनावी ड्यूटी से नाम कटवाकर टलने की कोशिश की जाती है। प्रतिनियुक्ति पत्र मिलते ही कर्मचारी एक तरह के मानसिक दबाव में आ जाते हैं। यद्यपि चुनाव आयोग एक ही क्षण में एक सामान्य कर्मचारी को भी अफसर का पदनाम दे देता है, लेकिन फिर भी प्रत्येक व्यक्ति इस झंझट से बचना चाहता है। इसी कारण कर्मचारी व्यक्तिगत तथा संगठनों के माध्यम से वाद-विवाद, तर्क-वितर्क तथा बहस करते नजर आते हैं। इस राष्ट्रीय पर्व के महायज्ञ को संपन्न करने के लिए सभी को जिम्मेदारी व संवेदनशीलता से कार्य करना चाहिए। निश्चित रूप से इस कार्य को करते हुए मानसिक दबाव बना रहता है व व्यक्तिगत सुख व जीवनशैली भी प्रभावित होती है। चुनाव कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए व्यक्ति को सभी सुखों का त्याग करते हुए राष्ट्र निर्माता की भूमिका को अपनाना होता है। चुनावी कर्त्तव्यों का निर्वहन एक सुखद एहसास व अविस्मरणीय अनुभव होना चाहिए, ताकि व्यक्ति बार-बार यह कार्य करने के लिए स्वयं प्रेरित हो सके। लेकिन प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी निर्वाचन आयोग से भी निम्नलिखित सुधारों की अपेक्षा करता है-

  1. चुनाव में प्रतिनियुक्ति के समय प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी की वरिष्ठता व वेतनमान को ध्यान में रखकर उसकी गरिमा व पद के अनुरूप उसे कार्यनियुक्ति दी जानी चाहिए।
  2. चुनावी प्रक्रिया में कर्मचारियों की नियुक्ति बिना पक्षपात के होनी चाहिए। जान-पहचान व प्रभाव के कारण किसी की प्रतिनियुक्ति रद्द नहीं होनी चाहिए।
  3. झूठे चिकित्सा प्रमाण पत्रों, बहानों व अन्य कारणों के आधार पर नहीं, बल्कि सच में बीमारी की हालत में ही चुनावी कर्त्तव्य से मुक्त किया जाना चाहिए।
  4. यद्यपि चुनाव दल में सभी सदस्य महत्त्वपूर्ण व जिम्मेदार होते हैं, परंतु चुनाव सही तरीके से संपन्न करवाना पीठासीन अधिकारी की अंतिम जवाबदेही होती है। अपने चुनाव बूथ पर निश्चित कार्यों को सुनिश्चित करते हुए एक समय सीमा के भीतर उस पर आवश्यकता से अधिक दस्तावेज तैयार करने का दायित्व भी होता है। कार्यों की अधिकता से पीठासीन अधिकारी की पीठ ही टूट जाती है। इसलिए भारी-भरकम अनावश्यक लेखन कार्य को कम किया जाना चाहिए।
  5. चुनाव संपन्न करवाना एक जिम्मेदारी का कार्य है। आए दिन कोई न कोई चुनाव होता ही रहता है। निर्वाचन आयोग के पास कोई नियमित स्टाफ तो होता नहीं। चुनाव के समय ही विभिन्न विभागों के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की जाती है। चुनाव से कुछ दिन पूर्व ही इन्हें चुनाव प्रशिक्षण दिया जाता है। सही चुनाव प्रशिक्षण चुनाव विभाग की कार्यप्रणाली का महत्त्वपूर्ण व नियमित हिस्सा होना चाहिए। चुनाव विभाग को वर्ष में एक या दो बार कार्यशालाएं आयोजित कर सभी विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों को चुनाव संबंधित नवीन जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
  6. चुनावी कर्त्तव्य निर्वहन के समय एक भय का वातावरण बन जाता है। चुनाव कार्य संपन्न करवाना एक प्रशासनिक, सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। इसलिए इसमें स्वेच्छा से भाग लेने के लिए कर्मचारियों को प्रेरित किया जाना चाहिए।
  7. चुनाव के समय कर्मचारियों के खाने-पीने व ठहरने की यथासंभव सही व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद रिटर्निंग अफसर के स्तर पर चुनाव सामग्री को जमा करने के स्थान पर सही व्यवस्था होनी चाहिए तथा कर्मचारियों की सम्मानपूर्वक अगवाई होनी चाहिए। किसी भी तरह की अव्यवस्था व किसी का अपमान नहीं होना चाहिए।

हम सभी चुनाव सुधारों की बात करते हैं, परंतु इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग को भी उचित परिवर्तन कर अपने आप में सुधार लाना चाहिए। चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए और सभी को चुनावी कर्त्तव्य के निर्वहन के लिए भी तैयार रहना चाहिए।


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