छोटे कारोबारियों को राहत की तैयारी

By: Nov 6th, 2017 12:05 am

डा. अश्विनी महाजन

 लेखक, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

हालांकि जीएसटी को एक सरल कर प्रणाली के नाते प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन छोटे व्यापारी और लघु उद्योग वाले इसे अत्यंत पेचीदा कर प्रणाली मान रहे हैं। आसान इसलिए कहा गया था कि सभी टैक्सों के बदले में एक ही टैक्स देना पड़ेगा और फायदेमंद इसलिए कि किसी भी व्यापारी अथवा उत्पादक को उससे पूर्व के दौर में दिए गए तमाम टैक्स कर क्रेडिट मिल जाएगा और उसे केवल मूल्य संवर्द्धन पर ही कर देना पड़ेगा। लेकिन लघु उद्यमी और छोटे व्यापारी मानते हैं कि बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए यह सिस्टम बहुत आसान है, लेकिन लघु उद्योगों के लिए यह घाटे का सौदा है…

जीएसटी को एक बड़े आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा था। उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, सेवा कर, स्टांप ड्यूटी समेत कई किस्म के अप्रत्यक्ष करों के बदले एकमात्र कर जीएसटी लगाने का निर्णय लिया गया और उसे पहली जुलाई, 2017 से लागू कर दिया गया। हालांकि जीएसटी लागू होने के बाद कांग्रेस पार्टी जीएसटी के कारण होने वाले नुकसानों पर राजनीतिक बयानबाजी जरूर कर रही है, लेकिन वास्तव में जीएसटी लागू करने संबंधी शुरुआत कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के समय ही हुई थी। कांग्रेस के जमाने के वित्त मंत्री हों या वर्तमान सरकार के वित्त मंत्री, सभी जीएसटी के पक्ष में अनेक दलीलें देते रहे हैं। इस बाबत सबसे बड़ी दलील यह है कि पूरे देश में एक वस्तु पर कर की दर एक ही रहेगी। इसलिए न तो कोई असमंजस रहेगा और न ही विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कर की दर होने से कोई विसंगति पैदा होगी। दूसरी बड़ी दलील यह रखी गई कि लगभग सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में विलीन हो जाएंगे। इससे अलग-अलग पड़ावों पर कर लगने के कारण कीमतों में होने वाली बेजा वृद्धि, जिसे कास्केडिंग प्रभाव कहा जाता है, से भी बचा जा सकेगा।

वर्तमान में भारत का अप्रत्यक्ष कर ढांचा अत्यंत पेचीदा है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर तरह-तरह के अप्रत्यक्ष कर लगाए जाते रहे हैं। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच आर्थिक शक्तियों का बंटवारा किया गया है, जिसके अनुसार सीमा कर, शराब और कुछ स्थानीय स्तर पर बनने वाले उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को छोड़कर शेष सभी प्रकार के उत्पाद शुल्क लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास था। उसके अलावा केंद्र सरकार पिछले लगभग 15 वर्षों से सेवा कर भी लगा रही थी। उधर राज्य सरकारों के पास बिक्री कर, मनोरंजन कर, स्टांप ड्यूटी, बिजली के उपभोग, माल और यात्रियों के परिवहन इत्यादि पर कर लगाने का अधिकार रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद कुछ एक अपवादों को छोड़कर शेष सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में विलीन हो गए हैं। हालांकि जीएसटी को एक सरल कर प्रणाली के नाते प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन छोटे व्यापारी और लघु उद्योग वाले इसे अत्यंत पेचीदा कर प्रणाली मान रहे हैं। आसान इसलिए कहा गया था कि सभी टैक्सों के बदले में एक ही टैक्स देना पड़ेगा और फायदेमंद इसलिए कि किसी भी व्यापारी अथवा उत्पादक को उससे पूर्व के दौर में दिए गए तमाम टैक्स कर क्रेडिट मिल जाएगा और उसे केवल मूल्य संवर्द्धन (वैल्यू एडिड) पर ही कर देना पड़ेगा।

कम्प्यूटर द्वारा जीएसटी के बने नेटवर्क (जीएसटीएन) पर टैक्स रिटर्न भरकर पिछले समय में दिए गए करों का क्रेडिट भी मिल सकेगा। लेकिन लघु उद्यमी और छोटे व्यापारी ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए यह सिस्टम बहुत आसान है, लेकिन लघु उद्योगों के लिए यह भारी घाटे का सौदा है। उनकी पहली शिकायत यह है कि इस कर प्रणाली के अंतर्गत उन्हें तमाम प्रकार की कागजी कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिसके कारण खर्चा बहुत बढ़ जाएगा। इस बाबत उनका कहना है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ने जीएसटी की पेचीदगियों के कारण अपनी फीस खासी बढ़ा ली है। उनका यह भी कहना है कि बड़े उद्योगों में सौदे बड़े-बड़े होते हैं, इसलिए उन्हें टैक्स पेड बिल मिलना अपेक्षाकृत आसान होता है। बड़े व्यवसायों में आसानी से टैक्स क्रेडिट लिया जा सकता है, लेकिन छोटे उद्योगों के लिए यह इतना आसान नहीं होता। बिक्री करने पर टैक्स सरकारी खाते में जमा करना पड़ता है, जबकि टैक्स क्रेडिट मिलने में महीनों लग जाते हैं। इसके कारण उनकी पूंजी लंबे समय के लिए ब्लॉक हो जाती है। लघु उद्योगों की यह भी शिकायत है कि जहां लघु उद्योगों को पूर्व प्रणाली में डेढ़ करोड़ रुपए तक के उत्पादन के लिए उत्पाद शुल्क में छूट का प्रावधान था, अब ऐसा कोई प्रावधान नहीं बचा है।

छोटों के लिए मात्र एक ही प्रावधान शुरुआती जीएसटी में था कि 75 लाख रुपए तक वे कंपोजिट स्कीम में पंजीकृत होकर एक निश्चित दर पर टैक्स दे सकते हैं। इस स्कीम की सीमा डेढ़ करोड़ के उत्पाद शुल्क में सीमा से आधी ही थी। इसके अलावा 20 लाख सालाना से कम का व्यवसाय करने वाले छोटे उद्यमियों को जीएसटी में पंजीकरण से छूट थी। जीएसटी के आलोचकों का कहना है कि जीएसटी के कारण छोटे व्यापारियों और उद्योगों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि जीएसटी लागू होने से उनकी कठिनाइयां बढ़ रही हैं और धंधा भी चौपट हो रहा है। निर्यातकों की भी जीएसटी से कई प्रकार की शिकायतें रही हैं, क्योंकि अभी तक उन्हें बिना टैक्स के माल निर्यात करने की इजाजत थी, लेकिन अब उन्हें पिछले करों का क्रेडिट मिलने में कठिनाई हो रही है। इसके कारण चिंतित सरकार ने जीएसटी से संबंधी कठिनाइयों से निपटने के लिए कोशिशें तेज कर दी हैं। सात अक्तूबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक में छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारियों और निर्यातकों को राहत देने के लिए सबसे पहला कदम यह उठाया गया कि 75 लाख के बजाय एक करोड़ के टर्नओवर वाले उद्यमों पर कंपोजिट स्कीम लागू हो सकेगी और व्यापारी एक प्रतिशत, उत्पादक दो प्रतिशत और रेस्तरां वाले पांच प्रतिशत की दर से कंपोजिट टैक्स भर सकेंगे।

अनुपालन के दर्द को कम करने के लिए यह प्रावधान रखा गया है कि अब उन्हें मासिक रिटर्न के बजाय तीन महीने में एक रिटर्न भरनी होगी। इससे पहले गैर पंजीकृत विक्रेता से माल खरीदने पर रिवर्स चार्ज देना पड़ता था यानी उसका भी टैक्स खरीदने वाले को भरना पड़ता था। इस प्रावधान को 31 मार्च, 2018 तक स्थगित कर दिया गया है। इसके अलावा कई जिन ठेकों में श्रम का हिस्सा ज्यादा है, उन पर मात्र पांच प्रतिशत की दर से ही कर लगेगा। सरकार ने यह भी वादा किया है कि एक बार राजस्व ठीक-ठाक मिलना शुरू हो जाए, तो करों को और भी कम किया जा सकेगा। हालांकि अभी भी लघु उद्योगों की मुश्किलें पूरी तरह से हल नहीं हुई हैं। इसलिए मंत्री स्तरीय समिति ने 9-10 नवंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक के लिए यह सिफारिश की है कि कंपोजिट स्कीम के दायरे को मौजूदा एक करोड़ से बढ़ाकर डेढ़ करोड़ कर दिया जाए ताकि ज्यादातर छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को उससे लाभ मिल सके। वर्तमान में लघु उद्यमियों और रेस्तराओं के लिए कंपोजिट कर, जो अभी दो प्रतिशत और पांच प्रतिशत है, को घटाकर व्यापारियों के स्तर यानी एक प्रतिशत कर लाया जाए। कहा जा सकता है कि यह प्रस्ताव माने जाने पर अब कंपोजिट स्कीम के अंतर्गत आने वाले तमाम उद्योग, व्यापारी और रेस्तरां अब एक प्रतिशत ही कर देंगे। यही नहीं, लघु उद्यमियों की यह शिकायत है कि छोटे-बड़ों को एक ही जैसा व्यवहार दिए जाने के कारण उनकी प्रतिस्पर्द्धा शक्ति क्षीण हो रही है। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार इस प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है कि लघु उद्यमियों द्वारा दिए गए करों का कुछ हिस्सा उन्हें वापस किया जाए। ऐसा लगता है कि लघु उद्यमियों का जीएसटी दर्द पहले से काफी कम हो जाएगा।

ई-मेल : ashwanimahajan@rediffmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App