जंगल के लिए जज्बा और जुनून

By: Nov 26th, 2017 12:08 am

सौम्य, सुमधुर और धीमे से बोलने वाली एक साधारण सी दिखने वाली महज 25 साल की युवती हिमाचली बालाओं के लिए आदर्श बनकर उभरी हैं। हमीरपुर में जंगलों की जिम्मेदारी के लिए जवाबदेह यह युवती जिला के सबसे अहम पद पर काबिज हैं। यही वजह है कि महज पच्चीस साल की उम्र में मेहनत, लगन और काबिलीयत के बूते सफलता का परचम लहराने वाली यह काबिल अफसर हिमाचली युवतियों के लिए रोल मॉडल बनी हैं। इंडियन फोरेस्ट सर्विसेज के बैच 2012 की प्रीति भंडारी हमीरपुर में डीएफओ के पद पर तैनात रहकर माफिया से जंगलों की हिफाजत में जुटी हुईं हैं। प्रीति भंडारी हिमाचली बालाओं के करियर को आईएफएस की ओर मोड़ने में भी अहम भूमिका अदा कर रही हैं। जहां भी मौका मिलता है, यह डीएफओ युवतियों को गाइड करना भूलती नहीं हैं। यही वजह है कि यह महिला अधिकारी आजकल सुर्खियों में हैं। जम्मू-कश्मीर की अखनूर तहसील के छोटे से गांव कलीठ में जन्मी प्रीति भंडारी के पति भी हिमाचली माटी की सेवा में डटे हुए हैं। इनके पति  कृष्ण कुमार वाइल्ड लाइफ में डीएफओ के ही पद पर कार्यरत हैं। हिमाचल से खासा लगाव रखने वाली प्रीति को ऐसा नहीं है कि  इतना बड़ा ओहदा और सफलता इतनी ही आसानी से मिल गई। इसके लिए सतत संघर्ष और मेहनत करनी पड़ी। शुरुआती दौर में हालांकि डीएफओ की राह मुश्किल भरी थी, पर बुलंद हौसले के दम पर प्रीति भंडारी निरंतर आगे बढ़ती गईं। प्रीति के पिता राजन भंडारी भारतीय सेना में रहे हैं। साधारण गृहिणी माता गीता भंडारी के साथ वक्त बिताने वाली प्रीति के अपनी हायर सेकेंडरी की शिक्षा जे एंड के के अखनूर स्कूल में मुकम्मल की । संगीनों के साए में पढ़ाई करने वाली प्रीति हमेशा कक्षा में अपने सहपाठियों के लिए आदर्श रही हैं। जमा दो की परीक्षा के बाद प्रीति आगे की पढ़ाई के लिए जम्मू वूमन कालेज चली गईं। 2007 में ग्रेजुएशन करने के बाद प्रीति ने 2010 में जम्मू से ही बाटनी में पोस्ट ग्रेजुएशन की। पीजी के बाद जम्मू में रहने के लिए प्रीति ने जीजीएम साइंस कालेज में पढ़ाना शुरू किया। यहां पढ़ाने के साथ-साथ वह तैयारी भी करती रहीं और  यही उनके जीवन का सबसे अहम दौर शुरु हो गया। पीजी कालेज में मैग्जीन और अखबारें पढ़कर प्रीति ने आईएफएस के संदर्भ में जानकारी जुटाई। इसी बीच प्रीति ने जम्मू में ही रहने का फैसला किया। मिशन आईएफएस की तैयारी में जुटी प्रीति ने अपना घर और परिवार छोड़ दिया। मां-बाप से अखनूर फोन पर बात तो होती थी, पर इतनी सी ही कि माहौल के साथ-साथ यहां सब ठीक है। दिन में पढ़ाने के साथ-साथ रात को पढ़ाई करने के लिए हालांकि शुरुआती दौर में तालमेल बिठाना मुश्किल था, पर मंजिल को पाने के जुनून के आगे जिद्द की ही जीत हुई। इसी बीच आतंकवाद के दारूण दौर से गुजर रहा जे एंड के का माहौल भी कभी पढ़ाई में बाधा बना, पर बुलंद हौसलों की धनी इस बाला ने पहाड़ सी चुनौतियों से दृढ़ इच्छा शक्ति के बलबूते पार पा लिया। दो साल की सतत साधना और कड़ी मेहनत के दम पर प्रीति के लिए 2012 वह सौगात लेकर आया ,जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था। इसी वर्ष प्रीति ने आईएफएस का एग्जाम पास कर लिया। अखनूर में मां-बाप और दो छोटे भाइयों को जब यह खुशखबरी सुनाई तो पूरा परिवार खुशी से झूम उठा। अब तीन साल की ट्रेनिंग के लिए प्रीति को देहरादून जाना था। परिवार बेटी को लेकर चिंतित हो उठा, पर प्रीति पर भरोसा सब परेशानियों पर भारी पड़ गया। प्रीति देहरादून चली गईं और ेट्रेनिंग के बाद प्रीति जब अफसर बनकर घर आईं तो परिवार के साथ-साथ गांव भी जश्न में डूब गया। मां-बाप का सिर ऊंचा करने वाली प्रीति की पहली पोस्टिंग सोलन जिला के नालागढ़ में हुए। शुरुआती दौर में हालांकि मुसीबतें भी आईं,पर प्रतिभा के आगे बौनी ही साबित हो गईं। प्रीति ने राष्ट्र स्तर पर सीएसआईआर नेट की परीक्षा भी क्वालिफाई कर अपनी प्रतिभा साबित कर दी। हमीरपुर में प्रीति की दूसरी पोस्टिंग है। यहां पर वह युवतियों को मोटिवेट कर रही हैं।  प्रीति की शादी 2016 में हुई। प्रीति के पति हमीरपुर में ही तैनात  हैं और इसी पहाड़ी प्रदेश की सेवा में जुटे हुए हैं। प्रीति का कहना है कि हिमाचल और जम्मू कश्मीर कमोबेश एक जैसे ही हैं। हिमाचल का शांत वातावरण अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां की युवतियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। बस उनके करियर को सही दिशा देने की जरूरत है। सही समय पर मार्गदर्शन हिमाचली बेटियों को सही जगह पहुंचाएगा, ऐसा विश्वास है।

मुलाकात

जल, जंगल और जमीन तीनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं…

जंगल के प्रति आपकी संवेदना कितने प्रतिशत प्रोफेशन में समाहित है?

जंगल के प्रति मेरी संवेदना 100 फीसदी प्रोफेशन में समाहित है।

आजादी के बाद हम केवल जंगल को दिखाने में लगे हैं, जबकि वनों से इनसानी रिश्ते टूट गए?

मेरे अनुसार इनसान चाहकर भी वनों से अपना रिश्ता तोड़ नहीं सकता, क्योंकि हर इनसान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनों के साथ जुड़ा हुआ है। फर्क है, तो केवल सोच का। हां, लेकिन यह भी सत्य है कि आजादी के बाद देश  लगातार प्रगति कर रहा है और इनसानों की निर्भरता वनों पर प्रत्यक्ष रूप से कम हुई है।

हिमाचल में वन के मायने केवल चीड़ पौधारोपण में सिमट गए?

ऐसा मैं नहीं समझती। पौधारोपण केवल चीड़ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि औषधीय प्रजाति के पौधे, चारे में उपयेग होने वाले एवं किसी भी जगह पर पाए जाने वाली स्थानीय वनस्पति की ओर भी भरपूर ध्यान दिया जा रहा है।

आधुनिक हिमाचल की परिभाषा में आप जल, जंगल और जमीन के बीच पर्यावरणीय संतुलन को किस हद तक देखती हैं?

जंगल, जल और जमीन तीनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जंगल है, तो जल है, जमीन है। पर्यावरण में संतुलन की परिभाषा को आधुनिकता के साथ जोड़ना हरेक शख्स पर निर्भर करता है।

ऐसा नहीं लगता कि हिमाचल की करीब 64 फीसदी जमीन जंगल के अधीन आने से मानवीय विकास के रास्ते तंग हो गए हैं?

राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के तहत पहाड़ी राज्यों के कुल क्षेत्रफल का 66 प्रतिशत क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए और इस नीति के गठन के पीछे का उद्देश्य लोगों की जरूरतों को पूरा करना पर्यावरण में संतुलन को बनाए रखना, मिट्टी के रिसाव को रोकना, लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना इत्यादि है, लेकिन इसके साथ-साथ विकास कार्यों को करने का प्रावधान भी है।

बंदर और वन्य प्राणी अगर किसान के दुश्मन बन गए, तो जंगल की इतनी क्षमता का फायदा है क्या?

इसका कारण जंगली जानवरों के आवास स्थल का खंडित होना है और इसका जिम्मेदार कहीं न कहीं मनुष्य ही है और शायद यह इसी का परिणाम है।

हमीरपुर में जंगलों के विस्तार को आप किस श्रेणी में देखती हैं और इसके बदले में जनता की मूल आवश्यकताओं के संघर्ष को कितना वास्तविक ठहराएंगी?

मुझे हमीरपुर वन मंडल का कार्यभार संभाले अभी थोड़ा ही वक्त हुआ है। इस बारे में कुछ कहना अभी संभव नहीं है।

बतौर वनाधिकारी हिमाचल के जंगल का नया अवतार किस तरह मानवता उपयोगी हो पाएगा?

एक स्वच्छ वातावरण हर इनसान की बुनियादी जरूरत है और यह वन ही हैं, जो हमारी हर जरूरत को पूरा करते हैं, चाहे वह आक्सीजन हो, स्वच्छ वायु हो, जल हो या वन उपज हो इत्यादि।

आपके क्षेत्रीय प्रचार की प्राथमिकताएं और इस लिहाज से ईको टूरिज्म की कोई विशेष योजना?

मेरी प्राथमिकता इनसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव की समस्या को समझना और उपाय ढूंढना है। वनों की सुरक्षा चाहे वह वन काटुओं से हो, आग से हो या और किसी प्रकार के खतरे से, हमीरपुर वन मंडल को एक मॉडल वन मंडल बनाना रहेगा। कुछ योजनाओं को आकार देने का प्रयास किया जा रहा है। मूल रूप देने पर विस्तार से बता पाऊंगी।

हमीरपुर व दियोटसिद्ध के शहरीकरण का जवाब अगर वन संपत्तियों में है, तो विभिन्न परियोजनाओं पर लटके ताले आपका विभाग तीव्रता से क्यों नहीं खोलता?

मैंने हाल ही में हमीरपुर का कार्यभार संभाला है। इस विषय पर फिलहाल मेरे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है और न ही ऐसा कोई मामला मेरे ध्यान में लाया गया है।

आपके लिए यह प्रोफेशन क्या मायने रखता है और इसके पीछे प्रेरणा और शक्ति के स्रोत क्या रहे?

मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे प्रकृति के साथ जुड़ने का मौका मिला है और यह सब इसी प्रोफेशन की वजह से है। मूक पशु-पक्षी और वनस्पति की सेवा बहुत ही पावन कार्य है और मैं खुद से इस प्रोफेशन में आई हूं। मैंने वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है और यह प्रेरणा वहीं से आई।

आपके लिए किसी औरत का सफल होना किन बातों पर निर्भर करता है?

एक औरत के खुद के विश्वास के ऊपर है कि वह अपने आपको कहां देखना पसंद करती है, साथ ही साथ परिवार के सहयोग और विश्वास पर भी, क्योंकि यही परिवार हर वक्त दीवार बन आपको समर्थन करता है और जीवन में कुछ खास दोस्तों के होने पर भी जो हर वक्त आपको उत्साहित करे।

कोई शौक, रिवाज या रिवायत जिसके तात्पर्य में आपकी रुचि का स्थान है?

उपन्यास पढ़ना, बागबानी करना और ऐतिहासिक जगहों का भ्रमण करना।

सन्नी पठानिया, हमीरपुर


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