जन्नत तेरे बाप की
( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
सिंहासन की भूख ने, बना दिया गद्दार,
अभिनेता बकने लगा, बना लंगोटी यार।
पथरावी का है सगा, उन पर लुटाता नोट,
रिश्तेदारी पाक से, नीयत में है खोट।
कुर्सी की इतनी तड़प, बकता ऊल-जलूल,
अमन-चैन, सुख-शांति की हिला रहा है चूल।
काल कोठरी दें इसे, सोच रहे क्या आप,
द्रोही है यह राष्ट्र का, अलगावी का बाप।
पैर धंसे हैं कब्र में, सिंहासन की चाह,
गर्दन हिलती, चल पड़े, पीओजेके की राह।
सीमा पर अंधा हुआ, नजर आ रहा पाक,
नाक कटी, मुस्करा रहा, जल्दी होगा खाक।
पहले निगला भानजा, हैं सेना के शेर,
आज भतीजा भी किया, योद्धाओं ने ढेर।
मना रहे मातम मिले जब कपूर-फारूख,
टब के टब सौ-सौ भरे, अश्रु गए अब सूख।
खपे भतीजे-भांजे, खत्म हो रहा खेल,
मामा-चाचा कांपते, अब निकलेगा तेल।
जन्नत तेरे बाप की, क्या है तेरा राज,
चींटी के पर लग गए, बहुत उठ रही खाज।
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