जीवन को वास्तविक भाव में जीएं

By: Nov 11th, 2017 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह भले ही पंजाब से थे, लेकिन उनका अधिकतर जीवन अंद्रेटा (हिमाचल) की प्राकृतिक छांव में सृजनशीलता में बीता। इन्हीं की जीवनी और उनके विविध विषयों पर विचारों को लेकर आए हैं प्रसिद्ध लेखक डॉ, कुलवंत सिंह खोखर। उनकी लिखी पुस्तक ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ में सोभा सिंह के दार्शनिक विचारों का संकलन व विश्लेषण किया गया है। किताब की विशेषता यह है कि इसमें कला या चित्रकला ही नहीं, बल्कि अन्य सामाजिक विषयों पर भी मंथन किया गया है। आस्था के विभिन्न अंकों में हम उन पर लिखी इसी किताब के मुख्य अंश छापेंगे जो आध्यात्मिक पहलुओं को रेखांकित करते हैं। इस अंक में पेश हैं

जीवन पर उनके विचार :

तृष्णा आदत पर छाई रहती है। यह महत्त्वपूर्ण है अगर कोई आदत बदलने का दृढ़ संकल्प कर ले। यह एक प्यारा सा एहसास देती है। ऐसा लगता है कि एक अमीर आदमी की छाया से कोई आजाद हो गया हो। यह ऐसा भरोसा दिलाता है जैसे हमारे कस्बे में मैत्री-भाव वाला कोई अधिकारी तबदील होकर आ गया हो। यह चाहे कुछ भी हो, सही बात यह है कि जीवन के वास्तविक मूल्य प्राप्त करने के लिए निर्णायक रुख अपनाया जाए। उच्चतर स्तर पर जीवन को जीने के लिए ऐसा करना जरूरी है। धार्मिक ग्रंथ हमें बताते हैं, ‘‘यह बहुमूल्य मानव जीवन पाना बहुत कठिन है।’’ फिर क्यों न इसे वास्तविक भाव में जीया जाए। अब तक का जीवन आपने जीवन के दूसरे पक्ष के साथ जीया होगा और अब आपको इसके आध्यात्मिक पहलू को अनुभव करना होगा। मेडिटेशन, समाधि-गहन एकाग्रता आदि प्रायः सत्य नहीं हैं और मात्र  पलायन हैं। भगवान का नाम सत्य है, सत्य विकास है और यह जीवन को इसके सार-आत्मा के सही बहाव में रखता है। भगवान को एक फूल बनाने में लाखों वर्ष लगे होंगे, एक आदमी बनाने में भी उसे काफी समय लगा होगा। आत्मा, जो मनुष्य के पास पहुंचने के लिए लंबा समय लेती है, के विकास के लिए सही दिशा दी जानी चाहिए। एक जॉकी को अपना घोड़ा तैयार करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इससे ऐसा कर सकने की उसकी योग्यता का भी विकास होता है। ऐसा माना जाता है कि डारविन के कुछ बंदर, आदमी बन गए क्योंकि उनका विकास सही दिशा में होता रहा। बंदर को यह पता नहीं था कि वह आदमी बन जाएगा। यह एक जगह स्थिर नहीं रहा और जीवन के बहाव में चलता रहा। उसने जीवन को विकास की सीढ़ी में डाल दिया और एक आदमी के रूप में इसे विकसित किया। आदर, प्यार व समर्पण अपना लक्ष्य पाने के लिए आपके प्रयास हैं। परोक्ष रूप से आप उस स्तर पर रहते हैं जहां आप अपनी सुरक्षा ढूंढते हैं। आप एक निश्चित भय के आवरण में काम करते हैं। व्यक्ति अपने पलायन की खोज में खुद को अनिश्चय की स्थिति में रखता है। जिस व्यक्ति की तालीम में शत्रुता व घृणा हो, वहां भय ही पैदा होगा। इस पेचीदा स्थिति से बचने के लिए हमें यह जानना होगा कि कोई भी सभी को खुश नहीं रख सकता। हमें, हमारा जो है, उसे स्वीकार करना चाहिए तथा इसके अलावा अन्य सब कुछ भूल जाना चाहिए व विकास करते रहना चाहिए। चरित्रगत विशेषताएं व लक्षण पहले से ही डिंब व शुक्राणु में दर्ज हैं। समय आने पर यह एक पुत्र को बाप तथा एक लड़की को मां बना देते हैं। यह उनके बीज में था। जब उनका जन्म हुआ, उस समय उन्हें अपने भविष्य का पता नहीं था। विकास की प्रक्रिया ने निर्दोष बच्चे बनाए, उनकी भूमिका का अज्ञान उन्हें एक आदमी व बच्चे जनने वाली महिला की ओर ले गया। जब एक लड़की बच्ची थी, तो उसे बिल्कुल पता नहीं था कि वह एक मां भी थी। विकास की तुलना में तथाकथित नैतिक जीवन कुछ भी नहीं है। अपने आप को जीवन के गड्ढों से बचाएं तथा अच्छा करते रहें। अंतर्ज्ञान, आत्मा की सरसराहट है। इसे ज्यादा श्रवणयोग्य बनाएं। यह आपको विकास के अपने पथ पर अग्रसर रखती है।


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