दिवाली है रोशनियों और लक्ष्मी पूजन का त्योहार

By: Nov 22nd, 2017 12:02 am

दिवाली रोशनियों का त्योहार है, जिसमें लक्ष्मी-पूजन का विशेष महत्त्व है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन घरों को अधिकाधिक संवार कर व अधिकाधिक रोशनियां जलाकर यदि लक्ष्मी पूजन किया जाता है, तो लक्ष्मी प्रसन्न होगी और सारा साल खुशहाली से बीतेगा…

हिमाचल के मेले व त्योहार

दिवाली :  दीवाली पहाड़ों का ही नहीं, बल्कि सारे देश का अत्यंत प्रसिद्ध त्योहार है, जो कार्तिक अमावस्या को, जो महीने की सबसे अंधेरी रात होती है, मनाया जाता है। पौराणिक तौर पर इस त्योहार का संबंध भगवान राम को 14 वर्ष के वनवास काटने के बाद अयोध्या वापस आने के साथ जोड़ा जाता है। वैसे यह रोशनियों का त्योहार है, जिसमें लक्ष्मी-पूजन का विशेष महत्त्व है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन घरों को अधिकाधिक संवार कर व अधिकाधिक रोशनियां जलाकर यदि लक्ष्मी पूजन किया जाता है, तो लक्ष्मी प्रसन्न होगी और सारा साल खुशहाली से बीतेगा। लक्ष्मी सौभाग्य और समृद्धि की देवी है। गांवों में बच्चे दीवाली का त्योहार असली दीवाली से आठ दिन पहले ही शुरू कर देते हैं। बच्चे घास-फूस का एक गट्ठा बनाकर जिसे ‘घेरसू या ‘कहारू’ कहकर पुकारा जाता है, इकट्ठे होकर अंधेरा हो जाने के बाद घरों से दूर खेतों में ‘आई दियाली (दिवाली), जल वे मेरेया घेरसुआ’ आदि लयात्मक गीत गाते हुए जलाते हैं। यह कार्यक्रम आठ दिन पहले शुरू करके दिवाली की रात्रि तक चलाया जाता है। अंतिम दिन जहां ‘धरेस’ जलाए जाते हैं, वहीं प्रसाद वगैरह भी बांटा जाता है। दिवाली के दिन निम्न इलाकों में पकाया जाने वाला चावल के आटे का विशेष पकवान ‘ऐंकली’ या ‘ऐंकलू’ है। चावल का आटा खुले बरतन में घोल दिया जाता है। ‘ऐंकली’ चपाती की तरह तवे पर डाल कर बनाई जाती है और ‘ऐंकलू’ बनाने के लिए पत्थर का एक विशेष प्रकार का सांचा बना होता है, जिसमें 40/50 छोटे-छोटे गोल खाने बने होते हैं। इसे बिलासपुर, हमीरपुर-कांगड़ा में ‘चुआंसी’ कहा जाता है। दिवाली के समय नवविवाहित लड़कियां अपने मायके जाती हैं। अब धीरे-धीरे परंपरागत पकवानों के स्थान पर मिठाई इत्यादि का प्रचलन चल पड़ा है।

बलराज : दिवाली के दूसरे या तीसरे दिन बलराज और उसके अगले दिन भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें भी उपरोक्त पकवान पकाए जाते हैं। बलराज वाले दिन कारीगर कोई काम नहीं करते- न ही जमींदार हल वगैरह चलाते हैं। इसे विश्वकर्मा दिवस भी कहते हैं। भैयादूज वाले दिन बहनें भाइयों के माथे पर उनकी भलाई और समृद्धि की कामना करते हुए टीका लगाती हैं।

बूढ़ी दिवाली :  यह त्योहार दिवाली के ठीक एक मास बाद मंधर अमावस्या को मनाया जाता है। सारे लोग इकट्ठे होकर अपनी बोली में रामायण या महाभारत का गायन करते हैं और अंगीठी के चारों और नाचते हैं। देवताओं और राक्षसों के मध्य बनावटी लड़ाई दिखाई जाती है, जिसमें अंततः विजय देवताओं की बताई जाती है। लाहुल में इस त्योहार को ‘खोजाला’ भी कहते हैं                               —क्रमशः


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App