देवी-देवताओं के नाम पर रखे जाते हैं जगराते

By: Nov 15th, 2017 12:03 am

जगराता रखने वाले परिवार के और अड़ोस-पड़ोस या गांव के व्यक्ति सारी रात जागर संबंधित देवी-देवता का कीर्तन-गान करते हैं। मध्य भाग में महासू देवता के नाम जागरा रखा जाता है। अन्य देवी-देवताओं के नाम भी जागरे रखे जाते हैं…

हिमाचल के मेले व त्योहार

जागरा या जगराता :  वैसे जगराता साल के किसी भी दिन किसी भी देवता की स्मृति में मनाया जा सकता है, परंतु भादों महीने में जगराता का विशेष महत्त्व है। जगराता किसी देवी-देवता के मंदिर में या देवता को घर में बुलाकर संपन्न किया जा सकता है। जगराता रखने वाले परिवार के और अड़ोस-पड़ोस या गांव के व्यक्ति सारी रात जागर संबंधित देवी-देवता का कीर्तन-गान करते हैं। मध्य भाग में महासू देवता के नाम जागरा रखा जाता है। अन्य देवी-देवताओं के नाम भी जागरे रखे जाते हैं। देवता को नहलाया जाता है और एक छोटी मूर्ति को छोड़कर बाकी सभी मूर्तियां मंदिर में पर्दे में रख दी जाती हैं। मंदिर के सामने आग जलाई जाती है, जो सारी रात जलती रहती है और देवता की स्तुति के गाने गाए जाते है। महासु देवता की स्तुति में ‘विड्स’ गान सामूहिक रूप में नृत्य करते हुए गाए जाते हैं।

भारथ : प्रदेश के निम्न भाग के क्षेत्रों में भादों महीने और साल के अन्य महीनों में भारथों का आयोजन किया जाता है। भारथ भी जगराते की भांति  हो गाए जाते हैं। अंतर इतना है कि भारथ में इस किस्म का गायन करने वालों की एक कुशल टोली होती है और उस टोली के सदस्य ही अपने अलग वाद्य यंत्रों जिनमें डमरू और थाली आदि का बजाना प्रमुख होते हैं के वादन के साथ गाते हैं। बाकी लोग उन्हें सुनकर मजा लेते हैं। भारथ गायन का आधार किसी वीर दैवीय पुरुष की गाथा होती है। हिमाचलीय क्षेत्रों में भागथों में गाई जाने वाली गूगा-गाथा प्रमुख है।

फुलेच : भादों केअंत या आसूज के शुरू के महीने में मनाया जाने वाला यह किन्नौर का प्रसिद्ध त्योहार है और मुख्यतः यह फूलों का त्योहार है। यह त्योहार अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। इसे उख्यांग भी कहते हैं। ‘उ’ फूल की कहते हैं और ‘ख्यांग’ देखने को। उख्यांग का अर्थ है फूलों की तरफ देखना यानि फूलों का आनंद लेना। यह त्योहार आमतौर पर गांव के पास पहाडि़यों की चोटियों से रंग-बिरंगे फूल चुनकर लाती है। त्योहार वाले दिन सारे ग्रामवासी, गांवों के चौराहे पर इकट्ठे होते हैं। ग्राम-देवता की मूर्ति को मंदिर से वहां ले जाया जाता है। लो गए फूलों के हार देवता को चढ़ाए जाते हैं और बाद में वे लोगों में बांट दिए जाते हैं। इस समय देवता का पुजारी आन वाले मौसम और फसलों आदि के बारे में भविष्य-वाणियां करता हैं। लोग ज्यादा सेज्यादा फूल घरों को ले जाते हैं।

सैर : यह त्योहार प्रथम आसूज (सितंबर) को मनाया जाता है। इसमें भी पकवान पकाए जाते हैं। पिछली रात यानि भादों महीने की अंतिम रात को नाई एक थाली में गलगल के खट्टे को मूर्ति के रूप में सजाकर, उसे फूल चढ़ाकर और दीपक जलाकर घर-घर ले जाते हैं। —क्रमशः


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App