धर्म को किसी परिभाषा में सीमित करना संभव नहीं

By: Nov 22nd, 2017 12:02 am

धर्म को किसी परिभाषा में सीमित करना संभव नहीं, परंतु इतना कहा जा सकता है कि धर्म का आध्यात्मिक पहलू मानवोद्धार से संबंधित है और इसका कर्मकांडिक पहलू आध्यात्मिक पहलू को प्राप्त करने का साधन है। परंतु इतिहास में तो कर्मकांडिक पहलू ही सर्वोपरि रहा है…

हिमाचल में धर्म और पूजा पद्धति- धर्म संस्कृति का अविभाजय अंग है, क्योंकि धार्मिक विश्वास और पूजा पद्धतियां जीवन के अन्य अंगों के साथ-साथ संस्कृति के सृजन और पनपने में सहयोग देती हैं। धर्म को किसी परिभाषा में सीमित करना संभव नहीं, परंतु इतना कहा जा सकता है कि धर्म का आध्यात्मिक पहलू मानवोद्धार से संबंधित है और इसका कर्मकांडिक पहलू आध्यात्मिक पहलू को प्राप्त करने का साधन है। परंतु इतिहास में तो कर्मकांडिक पहलू ही सर्वोपरि रहा है। जिस प्रकार पहाड़ों के रीति-रिवाजों की अलग ही विशेषताएं हैं, उसी प्रकार यहां के धर्म संबंधी विश्वासों और पूजा पद्धतियों का अपना अलग ही स्थान है। यहां की धर्मपद्धति किसी विशेष संप्रदाय तक सीमित नहीं। यहां कई विश्वासों और पद्धतियों का समन्वय हुआ है। आर्य और अनार्य दोनों पद्धतियों का मिश्रण हुआ है। भारतीय संस्कृति के प्रतीक ब्रह्मा, विष्णु व महेश की त्रिमूर्ति पूजा से लेकर असंख्या ही स्थानीय देवी-देवताओं और सूर्य, चांद, सितारों, पहाड़ों, नदियों और वृक्षों आदि सभी की पूजा की जाती है। मानवों का दैवीकरण और देवताओं का मानवीकरण किया गया है। प्रत्येक स्थानीय देवी-देवाता के पीछे कोई न कोई लोकगाथा जुड़ी होती है, जो आमतौर पर किसी दानव का देवी गुणों से युक्त होकर दानवों, भूत- प्रेतों आदि से आम लोगों को छुटकारा करवाकर देवता रूप में पूजा जाना बनाती है या फिर किसी मानव को असाधारण परिस्थितियों में मर जाने और बाद में स्थानीय जनता को आतंकित करके देवता के रूप में पूजा जाना आदि बताती है। किन्नौर आदि क्षेत्रों में यद्यपि बौद्ध धर्म के कुछ पहलुओं ने धर्म को प्रभावित किया है, परंतु यदि गौर से देखा जाए तो वहां का धार्मिक जीवन भी लगभग वही है जो राज्य के अन्य भागों का। किन्नौर में ब्राह्माणों की अपेक्षा लामाओं का अधिक प्रभाव रहा है। किन्नौर के मुख्य देवताओं में शुआ परगन की चंडिका हैं, जो वास्तव में हिंदू काली हैं। हिमाचली क्षेत्रों में देवी-देवताओं के नाम पशुओं की बलि चढ़ाने के कारण कुछ लोगों ने इसे पाश्विक धर्म भी कहा है, परंतु वह सत्य नहीं। हर संभावना से पहाड़ी लोगों का धर्म हिंदू धर्म की शाखा है, जिसमें  लोग अधिकतर शक्ति या काली के पूजक हैं, जिसका प्रमाण देवी के अधिकांश मंदिरों से मिलता है। काली पूजकों के बाद दूसरा स्थान शिव पूजकों का है, जिसका आभास महासू, श्रीगुल और महादेव आदि के पूजकों से मिलता है।

वैष्णव पूजा का प्रमाण नारसिंह और परशुराम की पूजा से मिलता है, परंतु विष्णु के पूजक कम हैं। हिमाचली क्षेत्रों में देवी-देवताओं की पूजा की योजनाबद्ध पद्धति है। निम्न क्षेत्रों में कुड भिन्नताएं हैं, लेकिन पूजा पद्धति और देवी-देवताओं का मूल स्वरूप एक जैसा ही है। निम्न क्षेत्रों को छोड़करदेवी-देवताओं के अधिकतर वर्गाकार मंदिर बने हैं और इनके निर्माण में लकड़ी का प्रयोग हुआ है। मंदिर में देवी-देवताओं की पत्थर की मूर्तियां कम और सोने-चांदी और धातुओं की ज्यादा हैं।   — क्रमशः


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