धार्मिक सदभाव का प्रतीक है मंजुनाथ मंदिर

By: Nov 4th, 2017 12:12 am

एक किंवदंति के अनुसार धर्म के संरक्षक देवदूत मानव का रूप धारण कर एक ऐसे स्थान की खोज में, जहां धर्म का आचरण और प्रसार किया जा सके, पेरगाडे के निवास नेलयाडी बीडू तक पहुंचे थे। अपनी आदत के अनुसार पेरगाडे दंपत्ति ने मानव शरीरधारी देवदूत का मनोयोग में सेवा-सत्कार किया…

मंगलौर के नजदीक धर्मस्थल गांव में स्थित मंजूनाथ मंदिर अपनी समृद्ध परंपरा, अभिनव प्रबंधन और समसामयिक दृष्टिकोण के कारण दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ  आकर्षित करता रहा है। यह मंदिर अपने सेवा कार्यों के लिए तो जाना ही जाता है, भक्तों को सुगम तरीके से दर्शन कराने और पूजा-पाठ की मानक प्रक्रिया के कारण भी इस मंदिर ने अनूठी ख्याति अर्जित की है। इस मंदिर की आठ सौ सालों की एक बेहद समृद्ध परंपरा और रोचक इतिहास है। मान्यता है कि 800 साल पहले धर्मस्थल गांव कडूमा के नाम से जाना जाता था। तब यहां पर बिरमन्ना पेरगाडे अपनी पत्नी अम्मू बल्लठी के साथ नेलयाडी बीडू नामक घर में रहते थे। सरल जीवनशैली, उदार-हृदय और सेवाभावी होने के कारण इस दंपत्ति की  क्षेत्र के लोगों में बहुत प्रतिष्ठा थी। एक किंवदंति के अनुसार धर्म के संरक्षक देवदूत मानव का रूप धारण कर एक ऐसे स्थान की खोज में, जहां धर्म का आचरण और प्रसार किया जा सके, पेरगाडे के निवास नेलयाडी बीडू तक पहुंचे थे। अपनी आदत के अनुसार पेरगाडे दंपत्ति ने मानव शरीरधारी देवदूत का मनोयोग में सेवा-सत्कार किया। उनके सेवा-सत्कार से प्रसन्न होकर उस रात धर्म के देवता बिरमन्ना पेरगाडे के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने अपना मंतव्य बताया और अपना घर छोड़ने का निर्देश दिया ताकि वहां पर देवों की पूजा-उपासना की जा सके। पेरगाडे को यह भी निर्देश दिया गया कि वह अपना संपूर्ण जीवन धर्मकार्य के लिए अर्पित कर दें। आज्ञानुसार पेरगाडे ने अपना घर देवताओं के पूजन के लिए छोड़ दिया। इस घर का अस्तित्व अभी तक बना हुआ है। कुछ समय बाद बिरमन्ना पेरगाडे के समक्ष धर्म देवता फिर प्रकट होते हैं और चार धर्म देवताओं-कालराहू , कालार्कि, कुमारस्वामी तथा कन्याकुमारी के लिए अलग-अलग मंदिर बनाने का आदेश देते हैं। पेरगाडे को यह भी निर्देश दिया गया कि वह दो ऐसे व्यक्तियों का चुनाव करें, जिनके जरिए देवता भविष्यवाणी कर सकें। चार अन्य ऐसे योग्य लोगों को भी चुनने के लिए कहा गया जो उनका मंदिर के सुगम संचालन में सहयोग कर सकें। आज्ञानुसार पेरगाडे ने विधि अनुसार पूजा-पाठ के संपादन के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया। इन पुरोहितों ने पेरगाडे से निवेदन किया कि वह स्थानीय देवताओं के बगल में एक शिवलिंग की स्थापना करें। देवताओं ने भी कादरी स्थित भगवान मंजूनाथेश्वर की मूर्ति को इस स्थान पर लाकर स्थापित करने की प्रेरणा दी। इस तरह नेलयाडी बीडू के बगल में मंजूनाथ मंदिर की स्थापना हुई। सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर के धर्माधिकारी देवराज हेगडे़ ने उडूपि के श्री वदिराजा को इस मंदिर को देखने के लिए आमंत्रित किया। स्वामी ने प्रसन्नतापूर्वक इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन यहां का प्रसाद लेने से मना कर दिया क्योंकि मंजूनाथ की मूर्ति की स्थापना वैदिक नियमों के अनुसार नहीं की गई थी। इस पर श्री हेगडे़ ने स्वामी जी से शिवलिंग को वैदिक विधि से पुनः प्रतिष्ठित करने का निवेदन किया। वैदिक नियमों के प्रति सम्मान भाव और हेगडे़ के उदार हृदय को देखकर स्वामीजी ने इस स्थान का नाम धर्मस्थल रख दिया। इसी के साथ यहां पर शैव-वैष्णव मतों में सौहार्द की एक मजबूत नींव पड़ी। धार्मिक सौहार्द की यह अनोखी परंपरा आज भी यहां पर कायम है। धर्मस्थल में स्थित मंजूनाथ मंदिर की पूजा-उपासना विधि-विधान से की जाती है क्योंकि यहां पर स्थित मूर्ति की पुनर्प्रतिष्ठा एक वैष्णव संत के हाथों हुई है और मंदिर का प्रशासनिक संचालन जैन धर्मावलंबी करते हैं। इस तरीके से मंजूनाथ मंदिर सर्वधर्म समभाव के आदर्श प्रतीक के रूप में हमारे सामने है। मंजूनाथ मंदिर के नजदीक ही जैन तीर्थंकर भगवान बाहुबली की विशाल मूर्ति है। इस मंदिर का मूल पुजारी अथवा धर्माधिकारी हेगड़े कहलाता है। अपनी जीवनशैली और विद्वता के कारण इस मंदिर के हेगडे़ को दैवीय आभामंडल प्राप्त हो गया है। इस मंदिर के हेगडे़ गृहस्थ जीवन में रहते हुए चार प्रकार की दान की परंपराओं के अनुसार अपना जीवन-यापन करते हैं। ये चार प्रकार के दान हैं-अन्न दान, औषध दान, विद्या दान व अभयदान। मंदिर के हेगडे़ को न्याय का अधिकारी माना जाता है। धर्मस्थल में लोग विभिन्न तरह के दीवानी मामलों को लेकर आते हैं और उचित न्याय के जरिए संतुष्ट होकर जाते हैं। इस मंदिर की एक प्रमुख खासियत यह है कि यहां पूजा-पाठ की प्रक्रिया बहुत ही मानकीकृत ढंग से और निर्धारित न्यूतनतम दरों पर होती है। उदाहरण के लिए शत रुद्राभिषेक 400 रुपए में, श्रीप्रसाद 70 रुपए में, बिल्व अर्चना 10 रुपए में और कर्पूर आरती दो रुपए में होती है। इसी तरह यहां 2000 रुपए में नारियल से, 2300 रुपए में फूलों से और 2000 रुपए में केले से तुलादान कराया जा सकता है। मंदिर के पुजारियों का त्यागपूर्ण और सेवाभावी जीवन तथा पूजा-पाठ की मानकीकृत प्रक्रिया के कारण धर्मस्थल के मंजूनाथ मंदिर को एक आदर्श मंदिर कहा जा सकता है।


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