नई सरकार से कुछ स्वाभाविक उम्मीदें

By: Nov 15th, 2017 12:02 am

अरुण चौहान

लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं

हिमाचल की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों के ऊपर निर्भर है, फिर भी अधिकतर मतदाता मताधिकार का प्रयोग करने के लिए घर लौटे। लोगों ने एक बार फिर साबित किया कि वे कितने जागरूक हैं। प्रदेश में जो नई सरकार चुन के आएगी, उससे भी यही आशा रहेगी कि वह भी उनके लिए उतनी ही जागरूक रहेगी…

नौ नवंबर को हिमाचल प्रदेश में चुनाव समाप्त हो गए। हिमाचल में एक बार फिर चुनाव हमेशा की तरह शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया। इसके लिए हिमाचल के सभी निवासियों, सभी राजनीतिक दलों सरकार व चुनाव आयोग को बहुत-बहुत बधाई। यह बधाई इसलिए भी कि प्रदेश में मतदान अपेक्षा के अनुरूप शांतिपूर्ण और प्रदेश के इतिहास में सबसे ज्यादा करीब 75 फीसदी दर्ज किया गया। अब मतों की गणना 18 दिसंबर को होगी, जो एक बहुत लंबा समय है। उस समय तक राज्य में नाममात्र का शासन होगा। अब इसके लिए कुछ किया नहीं जा सकता, सिवाय इंतजार करने के। 18 दिसंबर भी बहुत जल्द ही आ जाएगा और हिमाचली जनता ने जो फैसला लिया है कि अब किसकी सरकार होगी, उस दिन सामने आ जाएगा। कांग्रेस पार्टी फिर से सत्ता हासिल करने में सफल रहेगी या फिर भारतीय जनता पार्टी इस बार बाजी मार लेगी, इस पर अब तमाम तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। सफल कोई भी दल रहे, पर जीत लोकतंत्र की ही होगी।

शुरुआती आंकड़ों के अनुसार इस बार 74.61 मतदान हुआ, जो आज तक हिमाचल के इतिहास में सर्वाधिक है। एक छोटा सा राज्य, जहां पर एक बड़ी आबादी काम-धंधे या रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों के ऊपर निर्भर है, उसमें अधिकतर मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए अपना काम छोड़ कर वापस अपने घर आए। हिमाचल के लोगों ने एक बार फिर साबित किया कि वे कितने जागरूक लोग हैं। प्रदेश में जो नई सरकार चुन कर आएगी, जनता की उससे भी यही आशा रहेगी कि वह भी उनके लिए उतनी ही जागरूक रहेगी। लोग एक बार फिर नई सरकार से आशा भरी निगाहों से देखेंगे। नई सरकार को सड़कों, स्वास्थ्य और शिक्षा की तरफ ध्यान देने की सबसे ज्यादा जरूरत है। सड़कें किसी भी राष्ट्र की जीवन रेखा होती हैं। हिमाचल की पिछली सभी सरकारों ने सड़कें बनवाने के लिए उल्लेखनीय काम किए हैं। इसी का नतीजा है कि किसी भी पहाड़ी राज्य की तुलना में हिमाचल में सड़कों का जाल काफी घना व विस्तृत है। प्रदेश आज विकास के अगर कई मापदंडों पर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अव्वल है, तो यहां होने वाले सड़कों के विकास की  अनदेखी नहीं की जा सकती।

हिमाचल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां सड़कें बनाना बहुत कठिन और खर्चीला काम है। आज हिमाचल के लगभग सभी गांव कच्ची या पक्की सड़कों से जुड़े हैं। हिमाचल की अर्थव्यवस्था पर्यटन, सेब या अन्य बागबानी फसलों के ऊपर निर्भर करती है। अगर हमारी सड़कें ही खराब होंगी, तो न सेब प्रदेश के बाहर जा पाएगा और न ही पर्यटक हिमाचल के अंदर। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में यातायात का कोई दूसरा विकल्प इतना विकसित नहीं हो सका है। हालांकि इस क्षेत्र में हमने निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिए हों, ऐसा भी नहीं है। कीरतपुर से नागचला फोरलेन का निर्माण कार्य काफी दिनों, दिनों क्या वर्षों से हो रहा है, लेकिन अभी तक कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। अगर इस कार्य की यही गति रही तो यह मार्ग दस सालों में भी पूरा नहीं हो पाएगा। नई सरकार को सड़कें जल्द से जल्द दुरुस्त करनी होंगी। अगला जो काम है वह है लोगों का स्वास्थ्य। प्रदेश में अब बहुत सारे मेडिकल कालेज व गांव-गांव में प्राथमिक उपचार केंद्र, सामुदायिक उपचार केंद्र आदि खुले हैं।

इसके अलावा जिला अस्पतालों और क्षेत्रीय अस्पतालों की भी स्थापना प्रदेश में की गई है। प्रदेश में स्वास्थ्य केंद्रों की कोई कमी नहीं है, लेकिन प्रदेश के लोग आज भी स्वास्थ्य लाभ के लिए बाहरी राज्यों का रुख करते हैं। इसके क्या कारण हैं, नई सरकार को इस बारे में देखना चाहिए। जहां डाक्टरों के पद खाली हैं, वे अतिशीघ्र भरने होंगे। कई बार यह भी देखने में आता है कि मरीज को बिना किसी ठोस वजह से पीएचसी से सीएचसी, सीएचसी से जिला अस्पताल, जिला अस्पताल से टांडा अस्पताल या आईजीएमसी शिमला रैफर कर दिया जाता है। स्वास्थ्य अधिकारियों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। नई सरकार से विशेष तौर पर उम्मीद रहेगी कि वह इस तरफ ध्यान देगी। हिमाचल प्रदेश का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सम्मान है। प्रदेश के विद्यार्थियों ने भारत तथा विदेशों में अपने सफलता के झंडे गाड़े हैं, लेकिन ऐसे विद्यार्थियों का अगर आप शैक्षणिक रिकार्ड देखेंगे, तो यह सामने आ जाएगा कि ज्यादातर विद्यार्थी या तो प्रदेश के बाहर पढ़े हैं या फिर निजी पाठशालाओं में।

नई सरकार को प्रदेश के सरकारी शिक्षण संस्थाओं को सुधारना होगा। इसके लिए सबसे पहले प्रारंभिक शिक्षा (पहली से कक्षा आठवीं तक) की तरफ ध्यान देना होगा। जो कम विद्यार्थियों वाली पाठशालाएं हैं, उन्हें बंद करना होगा। विद्यालयों में बिना शिक्षकों के शिक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है। दुर्भाग्यवश प्रदेश में आज भी जरूरत के हिसाब से शिक्षकों का बंदोबस्त नहीं हो सका है। नई सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। प्राथमिक पाठशालाओं में कम से कम पांच अध्यापक तो होने ही चाहिएं, ताकि कोई भी कक्षा बिना अध्यापक के न हो। अगर सरकारी पाठशालाओं का स्तर सुधरेगा, तो उससे सबसे ज्यादा लाभ हमारे गरीब परिवार के बच्चों को होगा। अंततः शिक्षा ही उन्हें गरीबी से बाहर निकालेगी।


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