नेहरू ने कांशी राम को दी ‘ पहाड़ी गांधी ’ की उपाधि

By: Nov 29th, 2017 12:05 am

1937 ई. में गदरीवाला में एक राजनीतिक सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें ‘पहाड़ी गांधी’ की उपाधि से नवाजा। वह मधुर आवाज वाले बड़े गायक थे, इसलिए भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू ने 1927 ई. में दौलतपुर चौक में इन्हें ‘पहाड़ां दी बुलबुल’ पदक से प्रतिपादित किया…

बक्शी प्रताप सिंह

इनका जन्म 20 अक्तूबर, 1912 ई. को कागड़ा जिला के पालमपुर तहसील के चढियार गांव में हुआ। इन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। 1931 ई. में आजाद हिंद फौज (आईएनए) में शामिल हो गए। आजाद हिंद फौज के तीन लाख सिपाहियों में वह अकेले थे, जिन्होंनें पांच-छह फरवरी, 1944 ई. में आधी रात को ब्रिटिश शिविर में अकेले घुस कर ब्रिटिश अफसर के ऊपर पहला हमला किया, एक गार्ड को मारा, एक सेना के अफसर को घायल किया और खुद भी घायल हो गए। इस अलौकिक साहस के लिए उन्हें ‘तगमा-ए-शत्रुनाश’ से नवाजा गया। उनकी यूनिट 14 दिन तक बिना भोजन किए गुरिला युद्ध लड़ती रही, जो एक महीना तक जारी रहा। उन्हें 1952ई. में पालमपुर से कांग्र्रेस टिकट पर चुना गया। 1957 से 1962 ई. तक वह पंजाब में उपमंत्री रहे। 1966 ई. में पंजाब प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल में विलय होने पर वह राजस्व मंत्री बने और हिमाचल प्रदेश कांगड़ा कमेटी के उपाध्यक्ष भी रहे। 1972 से 1977 तक वह राष्ट्रीय बचत सलाहकार बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे।

बाबा कांशीराम (पहाड़ी गांधी)

इनका जन्म 11 जुलाई, 1882 ई. को देहरा गोपीपुर तहसील गांव डाडासीबा में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री लखनू राम था। 1902 ई. में यह लाहौर गए तथा उस समय के दो महान क्रांतिकारी स्वर्गीय हरदयाल एमएम तथा सरदार अजीत सिंह से मिले। उन्होंने इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने की प्रेरणा दी। 1919 ई. में इन्हें दो वर्ष की जेल हुई। 1937 ई. में गदरीवाला में एक राजनीतिक सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें ‘पहाड़ी गांधी’ की उपाधि से नवाजा। वह मधुर आवाज वाले बड़े गायक थे, इसलिए भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू ने 1927 ई. में दौलतपुर चौक में इन्हें ‘पहाड़ां दी बुलबुल’ पदक से प्रतिपादित किया। 1931 ई. में  जब सरदार भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी पर लटकाया गया, तो इन्होंने कसम खाई कि जब तक भारत आजादी प्राप्त नहीं कर लेता, वह काले कपड़े पहनेंगे। वह महात्मा गांधी के विश्वस्त अनुयायी थे और उनके नियमों को वास्तविक जीवन में भी अपनाया था। वह कांगड़ा क्षेत्र से देश की स्वतंत्रता के लिए कुर्बानी की भावना जगाने वाले अग्रणी प्रकाश थे। उन्हें कई बार जेल में डाला गया। 15 अक्तूबर, 1943 ई. को 61 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।

बालकी राम

इनका जन्म मंडी जिला की बल्ह घाटी की पंचायत चलाह में सफाडी गांव में चार अप्रैल, 1912 ई. को हुआ था। वह राजाओं  के शासनकाल से ही बाथरा के कलाकार थे। बाथरा मंडी क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य-ड्रामा है, जिसके द्वारा मनोरंजन के साथ लोगों की सामान्य समस्याओं पर भी प्रकाश डाला जाता है। वह एक संगीतकार भी थे और हिमाचल प्रदेश के लोक संपर्क विभाग द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लिया करते थे। पांच अप्रैल, 2013 ई. को 101 वर्ष की आयु में इनका देहांत हुआ।


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