नैतिक पतन से अपराध को मिलती पनाह

By: Nov 18th, 2017 12:02 am

इंदु पटियाल

लेखिका, बंजार, कुल्लू से हैं

पहाड़ी प्रदेश के हर गांव, शहर में बिटिया कांड जैसे घटनाक्रम घटित हो रहे हैं, जिसमें घटनाओं को अंजाम देने वाले अधिकतर सगे संबंधी ही होते हैं। जब बेटियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं होंगी, तो बाहरी माहौल से क्या उम्मीद की जा सकती है। इस माहौल को बिगाड़ने के लिए हम सब जिम्मेदार हैं…

भारतीय समाज में दिनोंदिन बढ़ रहे नैतिक पतन के कारण जहां परिवार में बड़े-बुजुर्गों व महिलाओं को  घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। हिंदू धर्म में पूजनीय गऊ माता आज लावारिस है। उस पर जुल्म-ओ-सितम की हद यह कि समाज उन्हें लावारिस छोड़कर आवारा पशु नामक संज्ञा देकर सरकार से गौसदन बनाने की मांग कर अपनी ही पैदा की गई समस्या का समाधान चाहता है। हिमाचल में तो उक्त समस्या सदा चुनावी मुद्दा भी बनती आई है और सरकारें भी झूठे आश्वासन देकर वोट हासिल कर सत्ता हथियाती रही हैं, लेकिन असल समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है। गत डेढ़ दशक से हिमाचल जैसे शांत राज्य में जहां पहले से ही चरस माफिया, वन माफिया व भू-माफिया सक्रिय हैं। इन्हें बाकायदा हर सरकार का संरक्षण भी मिलता रहा है। सत्ता व विपक्ष से जुड़े अनेक लोग स्टोन क्रशरों के मालिक हैं तथा हर नदी-नाले में बेखौफ खनन जारी है अर्थात सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का वाली कहावत यहां सर्वत्र चरितार्थ हो रही है। देवभूमि हिमाचल में अपनी कृषि-बागबानी को बढ़ाने में तथा संस्कृति व विरासत को बचाने की जद्दोजहद में जुटी भोली-भाली जनता न तो सरकार से मुखातिब है और न ही सियासतदानों से सीधे सवाल पूछने की आदी है। वह तो बस अपने गांव में आने वाले नेताओं के स्वागत व आवभगत के लिए ही बनी है। यही कारण है कि आज इस पहाड़ी प्रदेश के हर गांव, शहर में बिटिया कांड जैसे घटनाक्रम घटित हो रहे हैं, जिसमें घटनाओं को अंजाम देने वाले अधिकतर सगे संबंधी ही होते हैं। जब बेटियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं होंगी, तो बाहरी माहौल से क्या उम्मीद की जा सकती है। इस माहौल को बिगाड़ने के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। पारिवारिक परिवेश में हम अपने बच्चों को अब चरित्र, नैतिक आचरण, आज्ञापालक या उच्च संस्कारों का सबक ही नहीं देते। इससे वे भारतीयता के भावों से वंचित असंवेदनशील और उद्दंड बन रहे हैं। शिक्षा का उद्देश्य सभ्य, शिष्ट, उदार व उच्च संस्कारों एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत चरित्रवान व्यक्तित्व का निर्माण होना चाहिए, जबकि आज की शिक्षा प्रणाली व्यक्ति को स्वार्थी, दंभी, क्रोधी-लोभी तथा ऐयाश बना रही है। दुष्चरित्र का स्वामी व्यभिचार-दुराचार में संलिप्त तो होगा ही। समाज की इस बीमार मानसिकता को बदलने के लिए पहले की भांति परिवार में ही एक बच्चे को बेहतर इनसान बनाने के प्रयास होने चाहिएं।

महिला उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिए वैसे तो हर राज्य में महिला आयोग गठित किए गए हैं, जो कि राजनीतिक संस्था के रूप में कार्यरत हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि वह बताए कि क्या राज्यों में महिला आयोग वजूद में हैं? इस विषय पर छिड़ी एक बहस में सबने यह माना कि वर्तमान में देश की आधी आबादी हिंसा की शिकार है। असुरक्षा के इस माहौल को बदलने के लिए आयोग को संवैधानिक दर्जा देना जरूरी तथा इसे सीधे गृह मंत्रालय से जोड़ना चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश तथा राज्य महिला आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ही होने चाहिएं। इन्हें कैबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। उसी स्थिति में महिलाओं को आयोग में त्वरित न्याय मिल पाएगा, जबकि वर्तमान समय में आयोग की भूमिका डाकिए जैसी है या यूं कहें कि आयोग पूरी तरह से डाकखाना बन गया है। उस पर स्टाफ  की कमी, बजट की कमी तथा राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अनेक ज्वलंत घटनाक्रमों पर मूक-वधिर आयोग का होना या न होना बराबर है। माननीय सर्वोच्च ने केंद्र को निर्देश दिए हैं कि सभी राज्यों में महिला आयोगों का सर्वे तथा उनकी कार्यशैली का अध्ययन कर इनकी दशा में सुधार लाने के प्रयास करने चाहिएं, ताकि वे महिला उत्पीड़न को रोकने में समर्थ भूमिका निभाते हुए उनकी आबरू के संरक्षण की दिशा में सजग रहकर काम कर सकें। देश भर में चल रहे वृद्ध आश्रम, बाल आश्रम व विधवा आश्रम दयनीय स्थिति में हैं।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने माना कि राज्यों के महिला आयोगों तथा बेसहारा लोगों को आश्रय देने वाले विभिन्न आश्रम सुविधाओं के अभाव में असहाय हैं, जिनमें सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार के ध्यानार्थ सुझाव व प्रस्ताव भेजे हैं। यहां व्यवस्थागत खामियों को दूर करने के लिए उन सुझावों पर प्राथमिकता के आधार पर अविलंब विचार होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने माना कि वर्तमान समय में राष्ट्रीय महिला आयोग को राज्य महिला आयोगों पर किसी प्रकार का नियंत्रण रखने संबंधी कोई अधिकार नहीं है। वे राज्य सरकार के नियंत्रण में रहकर ही कार्य करते हैं। इससे कोई समन्वय न होने से राष्ट्रीय महिला आयोग राज्यों के महिला आयोगों की जवाबदेही तय करने में असमर्थ है। अतः केंद्र सरकार को चाहिए कि आयोग को एक स्वायत्त संस्था का दर्जा देकर इसे सीधा गृह मंत्रालय से जोड़ा जाए, ताकि महिला अधिकार व महिला सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में वृद्धा, बाल या बालिका आश्रमों में 18.25 रुपए प्रति महिला खर्च किया जा रहा है। इतने कम खर्च में क्या किसी महिला, वृद्धा या बालिका का जीवन स्तर व्यवस्थित व बेहतर हो सकता है? केंद्र सरकार को महिला आयोग को सशक्त करना होगा, ताकि इन केंद्रों में शोषण, दुराचार और भ्रष्टाचार को संरक्षण न मिल सके।


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